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जुलपित्ती

 

परिचय-

          जुलपित्ती का रोग पानी में अधिक भीगने के कारण से होता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर की त्वचा पर लाल रंग के हल्के चकत्ते के समान दाने हो जाते हैं। इस रोग के होने पर रोगी व्यक्ति को कभी-कभी बुखार हो जाता है तो कभी बुखार नहीं भी होता है।

जुलपित्ती रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

  • इस रोग से पीड़ित रोगी को यदि बुखार नहीं है तो रोगी व्यक्ति को अपने शरीर पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए और जब यह सूख जाए तो उसे स्नान करना चाहिए और इसके बाद ठंडे जल की मालिश करनी चाहिए। रोगी व्यक्ति को दिन में कटिस्नान तथा मेहनस्नान भी करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
  • जुलपित्ती रोग से पीड़ित रोगी को यदि बुखार नहीं है तो उसे भाप स्नान करना चाहिए तथा फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। रोगी व्यक्ति को उपवास तब तक रखना चाहिए जब तक कि उसका जुलपित्ती का रोग ठीक न हो जाए।
  • जुलपित्ती रोग से पीड़ित रोगी को यदि बुखार भी साथ में हो तो दिन में 3 बार तौलिया-स्नान करना चाहिए तथा इसके बाद 2 बार कटिस्नान करना चाहिए और शरीर के रोग वाले स्थान पर 2-2 घण्टे के बाद 3-4 बार भाप देनी चाहिए। रोगी के जुलपित्ती वाले भाग पर गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए तथा इस पट्टी को कम से कम 20 मिनट के बाद बदलते रहना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।


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