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कष्टकारी प्रसव

 

परिचय-

          वैसे देखा जाए तो गर्भवती स्त्रियों को प्रसव होने के समय में थोड़ा बहुत दर्द (पीड़ा) तो होता ही है, लेकिन कुछ गर्भवती स्त्रियों को प्रसव (बच्चे को जन्म देना) होने के समय में बहुत अधिक पीड़ा (दर्द) होती है। जिसके कारण कई स्त्रियां तो बेहोश (मूर्च्छित) हो जाती हैं। ऐसी अवस्था (स्थिति) हो जाने पर गर्भवती स्त्रियों का उपचार करना आवश्यक हो जाता है।

कष्ट तथा ज्वलनकारी प्रसव का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

  • यदि प्रसव के दौरान अधिक दर्द होने का कारण कब्ज हो तो गर्भवती स्त्री को एनिमा क्रिया के द्वारा पेट साफ कर लेना चाहिए।
  • गर्भाशय की कठोरतापन के कारण यदि दर्द तेज हो रहा हो तो गर्भाशय द्वार में धीरे-धीरे पिचकारी की सहायता से गर्म पानी पहुंचाकर उसे नरम कर देना चाहिए। ऐसा करने से कष्ट दूर होकर प्रसव (बच्चा का जन्म) जल्दी हो जाता है।
  • यदि प्रसव (बच्चे का जन्म होना) के दौरान दर्द किसी और कारण से हो रहा हो तो गर्भवती स्त्री को मेहनस्नान कराना चाहिए या फिर एक-एक या फिर दो-दो घण्टे के बाद गर्भवती स्त्री के पेडू पर ठंडी पट्टी करनी चाहिए। जिसके परिणामस्वरूप दर्द होना कम हो जाता है।
  • यदि प्रसव (बच्चे का जन्म होना) के समय में यदि स्त्री को अकड़न या बेहोशी की बीमारी हो जाए तो गर्भवती स्त्री को आराम से किसी हवादार कमरे में बिस्तर पर लिटा देना चाहिए।
  • प्रसव (बच्चा का जन्म होना) के समय में यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गर्भवती स्त्री के हाथ-पैर पटकने से उसे चोट न आ जाएं।
  • गर्भवती स्त्री के चेहरे पर प्रसव के समय ठंडे पानी के छींटे मारना चाहिए और उसके पेडू (नाभि के नीचे का भाग) पर पानी या गीली मिट्टी की ठंडी पट्टी तीन से चार मिनट तक करनी चाहिए तथा यह पट्टी कुछ समय के बाद बदलते रहना चाहिए तथा इसके साथ-साथ ही उसके गले पर जलपट्टी देकर, सिर के पिछले भाग से शुरू कर पूरी रीढ़ पर ठंडे जल से मालिश करनी चाहिए। सबसे अच्छा तो यह है कि स्त्री को एनिमा क्रिया के द्वारा पेट साफ कराया जाए क्योंकि इससे स्त्री को बहुत अधिक लाभ मिलता है।


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