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प्रसूताज्वर (सूतिका रोग)

 

परिचय-

          इस रोग के कारण गर्भवती स्त्रियों या बच्चे को जन्म दे चुकी स्त्रियों को 103 डिग्री से 105 डिग्री  के बीच ज्वर (बुखार) रहता है और यह बुखार बीच-बीच में घटता-बढ़ता रहता है। इस रोग के कारण स्त्रियों के गर्भाशय में दर्द भी होता है तथा स्त्रियों को दस्त और उल्टियां भी होती हैं। स्त्रियों के जोड़ों में दर्दहाथ-पैरों में ऐंठन तथा कभी-कभी स्त्रियों को बेहोशी की समस्या भी होने लगती है।

प्रसूताज्वर (सूतिका रोग) को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

  • यह रोग उन स्त्रियों को होता है जो गर्भावस्था (गर्भकाल के दौरान) के समय में गर्भावस्था के नियमों का सही तरीके से पालन नहीं करती है या फिर यह रोग उन स्त्रियों को होता है जिनके शरीर में बच्चे को जन्म देने के बाद, रोग को उत्तेजना देने के लिए कुछ मात्रा में विजातीय द्रव्य (दूषित मल) शेष रह गया होता है।
  • यह रोग उन स्त्रियों को भी हो जाता है जो प्रसवावस्था (बच्चे को जन्म देने के समय) में चलने-फिरने की क्रिया करती है।
  • यह रोग उन स्त्रियों को भी हो जाता है जिन स्त्रियों का प्रसव के तुरंत बाद रक्तस्राव बंद हो जाता है।
  • अधिक ठंडी वायु लग जाने कारण भी यह रोग स्त्रियों को हो जाता है।
  • अधिक ठंडे जल का प्रयोग करने के कारण भी सूतिका रोग स्त्रियों को हो जाता है।
  • प्रसव के बाद गर्भाशय में किसी प्रकार के मल के रुक जाने या फिर गर्भाशय में घाव हो जाने भी यह रोग हो सकता है।
  • सूतिका रोग उन स्त्रियों को भी हो जाता है जो बच्चे को जन्म देने के बाद अधिक यात्रा करती है तथा मल-मूत्र त्याग के वेग को रोकती है।

प्रसूताज्वर (सूतिका रोग) को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

  • इस रोग को ठीक करने के लिए 15 से 30 मिनट के लिए पीड़ित स्त्री को प्रतिदिन 4 बार मेहनस्नान करना चाहिए।
  • सूतिका रोग से पीड़ित स्त्री यदि अधिक कमजोर हो तो उसे मेहनस्नान ठंडे पानी से नहीं कराना चाहिए बल्कि थोड़ा गुनगुना पानी से करनी चाहिए।
  • यदि सूतिका रोग से पीड़ित स्त्री की अवस्था साधारण है तो उसे प्रतिदिन 2 बार मेहनस्नान करनी चाहिए तथा इसके बाद अपने पेडू (नाभि से थोड़ा नीचे का भाग) पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए।
  • सूतिका रोग से पीड़ित स्त्री को पीले रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 2 भाग और गहरे नीले रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 1 भाग लेकर, इसे आपस में मिलाकर तथा फिर इसमें से लगभग 25 मिलीलीटर की प्रति मात्रानुसार प्रतिदिन 6 बार सेवन करने से स्त्री को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।


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