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गुप्तांगों के रोग

 

परिचय-

          गुप्तांगों में रोग अधिकतर संक्रमण के कारण होता है। वैसे देखा जाए तो गुप्तांगों में कई रोग हो सकते हैं जिनमें मुख्य दो रोग होते हैं जो इस प्रकार हैं-

आतशक (सिफलिश)-

          इस रोग में स्त्री-पुरुषों के गुप्तांगों (स्त्रियों में योनिद्वार तथा पुरुषों में लिंग) के पास एक छोटी सी फुंसी होकर पक जाती है तथा उसमें मवाद पड़ जाती है। इस रोग की दूसरी अवस्था में योनि अंग सूज जाते हैं। शरीर के दूसरे अंगों पर भी लाल चकते, घाव, सूजन तथा फुंसियां हो जाती हैं। तीसरी अवस्था में यह त्वचा तथा हडि्डयों के जोड़, हृदय तथा स्नायु संस्थान को प्रभावित कर रोगी को अन्धा, बहरा बना देता है।

          इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण संक्रमण होना है जो इस रोग से पीड़ित किसी रोगी के साथ संभोग या चुम्बन करने से फैलता है। इस रोग से पीड़ित रोगी जिन चीजों को इस्तेमाल करता है उस चीजों को यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इस्तेमाल करता है तो उसे भी यह रोग हो सकता है।

सुजाक (गिनोरिया)-

          इस रोग के हो जाने पर रोगी के मूत्रमार्ग में खुजली होना, पेशाब करते हुए बहुत दर्द तथा जलन होना, पेशाब के साथ पीला पदार्थ या मवाद बाहर आना, अण्डकोष में सूजन होना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं।

          जब यह रोग स्त्रियों को हो जाता है तो पहले उसकी योनि से पीला स्राव निकलने लगता है तथा जब वह पेशाब करती है तो उस समय बहुत तेज दर्द होता है। उसकी योनि की मांसपेशियां सूज जाती हैं। यह सूजन बढ़ते-बढ़ते गर्भाशय तक पंहुच जाती है। ऐसी अवस्था में यदि स्त्री गर्भवती होती है तो उसका गर्भपात हो सकता है। पहले यह रोग योनि तथा लिंग तक सीमित रहता है और बाद में यह शरीर के अन्य भागों में भी हो जाता है। आतशक में घाव बाहरी होते हैं तथा सुजाक में घाव आंतरिक होते हैं।

गुप्तांग रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

  • इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी किसी दूसरे के साथ संभोग से दूर रहना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी-भी अपने वस्त्र तथा अपने द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों को किसी दूसरे व्यक्ति को इस्तेमाल न करने देने चाहिए नहीं तो यह रोग दूसरे व्यक्तियों में भी फैल सकता है।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को अपना भोजन दूसरों को नहीं खिलाना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को अपना उपचार करने के लिए सबसे पहले अपने शरीर के खून को शुद्ध करने तथा दूषित विष को शरीर से बाहर करने के लिए उपवास करना बहुत जरूरी है जो आवश्यकतानुसार 7 से 14 दिन तक किया जा सकता है।
  • गुप्तांगों के रोग से पीड़ित रोगी को रसाहार पदार्थों जैसे- पालक, सफेद पेठे का रस, हरी सब्जियों का रस, तरबूज, खीरा, गाजर, चुकन्दर का रस आदि का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए।
  • नारियल का पानी प्रतिदिन पीने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को इस रोग का उपचार कराने के साथ-साथ अधिक मात्रा में फल, सलाद, अंकुरित चीजें खानी चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को गेहूं के जवारे का रस पीना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • चौलाई के साग के पत्ते 25-25 ग्राम दिन में 2-3 बार खाने से गुप्तांग रोग से पीड़ित रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  • आंवले के रस में थोड़ी सी हल्दी तथा शहद मिलाकर सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  • गुप्तांगों के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले पेट को साफ करना चाहिए और पेट को साफ करने के लिए रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करनी चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को नीम की पत्तियों को उबालकर उस पानी से घाव को धोना चाहिए।
  • इस रोग के कारण हुए घाव तथा सूजन और फुंसी वाले स्थान पर प्रतिदिन मिट्टी की पट्टी रखने से गुप्तांगों के रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं।
  • प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म कटिस्नान प्रतिदिन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।


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