JK healthworld logo icon with JK letters and red border

indianayurved.com

Makes You Healthy

Free for everyone — complete solutions and detailed information for all health-related issues are available

इमर्शन स्नान

 

परिचय-         

          इमर्शन स्नान पूरे नहाने को कहते हैं यह चीनी मिट्टी, इनैमल फाइबर ग्लास से बने टब में किया जाता है। टब में नहाते समय ठंडे पानी का कनैक्शन सही तरीके से करें, जिससे कि रोगी को ठंडे, न्यूट्रल, गर्म, कम ज्यादा तापमान और ग्रेज्युएटेड जल से स्नान कराया जा सके।

ठंडा इमर्शन स्नान-

पानी का तापमान- ठंडे इमर्शन स्नान करने के लिए पानी का तापमान 18 से 24 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।

स्नान का समय-   इस स्नान को लगभग 15 मिनट तक करना चाहिए।

विधि-

          टब में नहाने से पहले अपने सीने, गर्दन और सिर को ठंडे पानी से गीला कर लें और सिर पर भीगा हुआ तौलिया बांध लें। इमर्शन का साधारण स्नान करने के लिए रोगी को टब में बैठाना आवश्यक होता है। नहाते समय रोगी के शरीर को जोर-जोर से रगडे़। अगर रोगी को ठंड लगे तो स्नान न कराएं। नहलाने के तुरंत बाद रोगी के शरीर को अच्छी तरह से साफ करें फिर उसे गर्म कंबल से ढक दें और मौसम के अनुसार उसे नहलाएं।

लाभकारी-

          ठंडे इमर्शन स्नान को रोजाना सही से करें। यह स्नान बुखार के समय शरीर के तापमान को सही करता है। बदहजमी और मोटापे के समय यह स्नान बहुत उपयोगी है। इस स्नान को करने से रक्तसंचार भी सही रहता है। इस उद्देश्य से स्नान करते समय इसकी अवधि 3 से 15 मिनट की होनी चाहिए।

सावधानी-

          यह स्नान छोटे बच्चे या बूढे़ व्यक्तियों को नहीं करना चाहिए।   ओफेराइटिस, ऐन्डोमेट्राइटिस, ऐन्टेराइटिस, पेरिटोनाइटस, गैस्ट्राइटिस, आदि के कारण होने वाले या ठंड लगकर हुए बुखार में भी यह स्नान नहीं करना चाहिए।

          मधुमेह के रोगी को भी यह स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि यह स्थिति पेशाब या गुर्दों में रोग की सूचक है। इस स्थिति में कुछ समय का गर्म स्नान करें, इसके बाद ठंडा फ्रिक्शन, भीगी चादर से रगड़ाई तथा ठंडे लपेट का इस्तेमाल कई बार करें। साइनसाइटिस और दमा के रोगी को यह स्नान नहीं कराना चाहिए।

फ्रिक्शन के साथ ठंडा इमर्शन स्नान-

पानी का तापमान-  18 से 24 डिग्री सेल्सियस।

स्नान का समय-  स्नान केवल दो से पांच मिनट तक करें।

विधि-

          रोगी को टब में लिटाएं और परिचारक को टर्किश तौलिए या टर्किश कपडे़ से बने दस्तानों से रोगी के शरीर की पैरों की ओर से ऊपर की तरफ मालिश करनी चाहिए। यह मालिश दो से पांच मिनट तक या त्वचा के लाल पड़ने तक करनी चाहिए। इसके बाद रोगी को तीस सैकंड तक नहलाना चाहिए और साथ ही उसका सिर धोना चाहिए। फिर जल्दी से उसका शरीर पोंछ कर सुखाकर कंबल उढ़ा देना चाहिए। त्वचा की नाजुकता 15 से 30 मिनट तक बनी रहती है। यह विधि पूरी होने तक रोगी को अपने शरीर को ठंडे पानी या ठंडी हवा से बचाना चाहिए।

लाभकारी-

          इस विधि के द्वारा रोगी का तेज बुखार भी आसानी से चला जाता है। ज्यादा धूप या गर्मी से ग्रस्त होने पर शरीर द्वारा सोखी हुई गर्मी की मात्रा कम करने के लिए दो या तीन बार यह स्नान करें। यह स्नान रक्त संचार को ठीक करने में बहुत लाभकारी है। इसके द्वारा हमारे शरीर की त्वचा सुंदर हो जाती है। इसलिए सोरायसिस सरीखे त्वचा से जुडे़ सभी रोग व कष्टों को जिसमें त्वचा पर सूजन नहीं आती आदि रोगों में यह स्नान करना चाहिए। यह पक्षाघात, मांसपेशियों का क्षय आदि जैसे तंत्रिकाओं और मांसपेशियों से जुड़े कष्टों को दूर करता है।

सावधानी-

          बहुत कमजोर रोगी, दिल के रोगी और गुर्दे के कष्टों से ग्रस्त रोगी को यह स्नान नहीं कराना चाहिए।

न्यूटल इमर्शन स्नान-

पानी का तापमान- 32 से 36 डिग्री सेल्सियस।

स्नान का समय- यह स्नान लंबे समय तक भी किया जा सकता है क्योंकि इसमें पानी का और शरीर का तापमान बराबर होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने अनिद्रा रोग का इलाज इस विधि से कर रहा हो तो वह 15 मिनट से लेकर एक घंटे तक अपना इलाज कर सकता है और बुखार का इलाज करने वाला व्यक्ति 26 से 28 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाले पानी से नहाए।

विधि-

          इलाज से पहले रोगी को एक या दो गिलास पानी पीना चाहिए। फिर उसके सिर पर ठंडा कपड़ा लपेट कर टब में लिटा देना चाहिए। नहलाने के बाद रोगी को जल्दी से अपना शरीर सुखा लेना चाहिए।

लाभ-

          इस स्नान के द्वारा सभी प्रकार के रोगों से जल्दी मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। न्यूट्रल स्नान से शरीर की त्वचा और गुर्दे दोनों के काम बढ़ जाते हैं, इसलिए इस बीमारी में रोगी को यह स्नान करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा दिमाग लोकोमोटर अटैक्सिया, मस्तिष्क और मेरुरज्जु में पुरानी सूजन मेरुरज्जु पैरेप्लेजिया, रूमेटिज्म आर्थराइटिस तथा ऐसे कई पुराने रोगों में यह स्नान करना जरूरी होता है।

          जब यह स्नान 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 30 से 60 मिनट या इससे भी ज्यादा समय तक कराया जाता है, तो इससे जलोदर रोग के इलाज में अधिक सहायता मिलती है जो दिल या गुर्दे संबधी रोगों की वजह से ही हो जाता है और जिसमें अन्य दूसरे इलाजों का सहारा लेना ठीक नहीं रहता है। इसके न्यूट्रल स्नान से मिल्टपिल-न्यूराइटिस, शराब अन्य नशीली दवाओं की लत, न्यूरैस्थीनिया, पुरानी उल्टियां, पेरिटोनाइटिस तथा पेट के पुराने संक्रमण आदि से निपटने में भी सहायता मिलती है, जिसके द्वारा गर्म या ठंडे पानी से इलाज करना सही नहीं होता है। ऐसी स्थिति में यह स्नान रोजाना 15 से 30 मिनट तक करना चाहिए। यह स्नान प्रराइटिस में भी जरूरी होता है, भले ही रोगी को पीलिया हो या न हो। यह बदहजमी के कारण होने वाले रोग में भी काफी लाभकारी होता है।

सावधानी-

          त्वचा और एक्जिमा तथा अन्य रोगों से ग्रस्त रोगियों को न्यूट्रल स्नान नहीं करना चाहिए। यह विकार पानी लगने से और ज्यादा बढ़ जाता है। दिल की कमजोरी तथा न्यूरैस्थीसिया के कुछ एक मामलों में रोगी को यह स्नान नहीं करना चाहिए।

गर्म इमर्शन स्नान-

पानी का तापमान- गर्म इमर्शन स्नान करने के लिए पानी का तापमान 40 से 42 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।

स्नान का समय- इसका समय रोगी की अवस्था के अनुसार ही तय किया जाता है। वैसे इसका समय दो से दस मिनट तक का होता है। इस समय को ज्यादा नहीं बढ़ाना चाहिए।

विधि-

          यह स्नान 37 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी के साथ आरम्भ किया जाता है और गर्म पानी मिलाकर तापमान धीरे-धीरे निश्चित स्तर तक बढ़ाया जाता है। स्नान आरम्भ करने से पहले रोगी को निश्चित मात्रा में ठंडा पानी पीना चाहिए और अपने सिर, गर्दन व कंधों को ठंडे पानी से गीला कर लेना चाहिए। इलाज के समय रोगी को पूरे समय तक ठंडा कपड़ा सिर पर लपेटे रखना चाहिए।

लाभ-

          इस स्नान को दस मिनट तक करें और 40 डिग्री से 44 डिग्री सेल्सियस तापमान के पानी से नहाएं। यह शरीर में पसीना लाने के लिए काफी लाभकारी है इस स्नान से ब्रोंकाइटिस और बच्चों के होने वाले ब्रोंकियल निमोनिया से भी छुटकारा मिलता है। 40 से 42 डिग्री तापमान वाले पानी से 5 से 15 मिनट तक स्नान करने से फेफड़ों की रक्त संकुलता ठीक हो जाती है।

          यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को निमोनिया हो गया हो या महिलाओं का मासिकस्राव ठीक से न हो तो 37 से 40 डिग्री के तापमान वाले पानी से 30 या 45 मिनट तक नहाएं। यह स्नान रोगी स्त्री को मासिकस्राव शुरू होने के समय 2-3 दिन तक कराया जा सकता है। डिस्मेंनोरिया रोग का इलाज करने के लिए लगभग 40 से 44 डिग्री के तापमान वाले पानी से 15 मिनट तक नहाना चाहिए।

लाभकारी-

         इस स्नान को 10 मिनट तक करना चाहिए और पानी का तापमान 40 से 44 डिग्री तक रखना चाहिए। स्नान करने के बाद शरीर पर सूखा कपड़ा लपेट लें। यह शरीर में पसीना लाने के लिए बहुत उपयोगी है। इस स्नान से केपिलहरी ब्रोंकाइटिस और बच्चे के होने वाले ब्रोंकियल निमोनिया से मुक्ति मिलती है। 40 से 42 डिग्री तापमान वाले पानी से 5 से 15 मिनट तक नहाएं इससे फेफड़ों के खून की संकुलता ठीक होती है।

          निमोनिया तथा मासिकस्राव के समय रक्तस्राव खुलकर न होने पर 37 से 40 डिग्री के पानी से नहाएं यह स्नान 30 से 45 मिनट तक करें। यह स्नान रोगी को मासिकस्राव आरम्भ होने के समय पर करना चाहिए। यह विधि दो से तीन दिन तक करें। डिस्मेनोरिया का इलाज करने के लिए 38 से 44 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाले पानी से 15 मिनट तक स्नान करें।

          लगभग 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाले पानी से गर्म स्नान करना पुराने रूमेटिज्म और मोटापे में बहुत जरूरी रहता है। यह स्नान रोजाना दस से पन्द्रह मिनट तक किया जा सकता है। पीलिया, पित्ताशय व गुर्दों में पथरी बन जाने की वजह से दर्द होने पर गर्म पानी से स्नान करने से तुरंत आराम मिलता है।

सावधानी-

          माइलाइटिस और रिक्लओरोसिस, मेरुरज्जु से जुडे़ कष्ट, हाई ब्लडप्रेशर और दिल की बीमारी के रोगियों को यह स्नान नहीं करना चाहिए। यह उनके लिए लाभदायक नहीं है।

आधा न्यूट्रल स्नान-

           यह स्नान इमर्शन स्नान टब में आसानी से किया जाता है।

पानी का तापमान- पानी का तापमान  32 से 36 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।

स्नान का समय- इस स्नान को 15 मिनट तक ही करें।

विधि-

          इस स्नान को करने के लिए अपने टब में करीब 6 से 8 इंच की ऊंचाई तक ही पानी भरें। रोगी को एक या दो गिलास पानी पीकर सिर पर ठंडा कपड़ा बांधना चाहिए। फिर टब में बैठकर अपने दोनों पैरों को फैलाना चाहिए। इसके बाद अपनी बाहों व हाथों को पानी से अलग टब के किनारों पर रखना चाहिए।

लाभकारी-

          हाई ब्लडप्रेशर के रोगी को यह स्नान करते समय छाती पर ठंडा कपड़ा लपेट लेना चाहिए। इस स्नान से सीने में आराम आता है और सीने के नीचे के हिस्से में खून का संचार भी अच्छा रहता है। इससे पैरों में मौजूद रिप्लेक्स जोन में लाभ होता है जिससे दिल, फेफडों व प्रमस्तिष्कीय वाहिकाओं पर अच्छा असर होता है। हाई ब्लडप्रेशर, वेरिकोस वेन्स, पैरों में नस चढ़ जाना, अनिद्रा, ब्रोकियल, अस्थमा रोग और शरीर के निचले हिस्सों में आर्थराइटिस आदि रोगों में यह स्नान काफी लाभदायक होता है।

एप्सम साल्ट के साथ ग्रेजुएटेज इमर्शन स्नान-

पानी का तापमान- इस स्नान को करने के लिए पानी का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए।

स्नान का समय- यह स्नान कम से कम 30 मिनट का होना चाहिए।

विधि-

          नहाते समय टब में चार से छ: इंच की ऊंचाई तक पानी भर लें। पानी में एक पौंड एप्सम साल्ट घोल लें। रोगी को एक गिलास ठंडा पानी पिलाने और सिर पर ठंडा कपड़ा लपेटने के बाद टब में लिटा दें। अब गर्म पानी की टोंटी खोलकर पानी का स्तर बढ़ाकर 8 से 10 इंच कर दें। पानी का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस रखें। इसके बाद रोगी को आराम की अवस्था में आ जाना चाहिए और ठंडे पानी की टोंटी खोल देनी चाहिए। जिससे पानी धीरे-धीरे ठंडा हो जाता है। टब में पानी से भर जाने पर इसका तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस होगा। रोगी को टब में 10 से 20 मिनट तक आराम करने दे।

लाभकारी-

          यह स्नान सभी तरह के आर्थराइटिस रोगों में सहायता करता है बशर्ते इसके साथ बुखार न हो। इस स्नान को करने के बाद पेशाब सही से आता है इसलिए यह सूजन, पेट में पानी भरना, गुर्दे से जुडे़ सारे रोगों में यह लाभकारी होता है। इस विधि से नहाने से हमारे पूरे शरीर को आराम मिलता है।

सावधानी-

          हाई ब्लडप्रेशर, कमजोरी, बुखार आदि के रोग होने पर यह स्नान नहीं करना चाहिए।

अस्थमा स्नान-

          इमर्शन टब में आधा पानी भरें और उसका तापमान 37 से 38 डिग्री होना चाहिए। फिर गर्म पानी डालें जिससे कि पानी का तापमान कम से कम 40 से 42 डिग्री हो जाए। इस काम की शुरूआत बाएं पैर से करें इसके बाद क्रमवार बाईं बांह, पेट, छाती, दाहिनी पीठ, पैर, और रीढ़ को रगड़ें। रगड़ने के बाद गर्म पानी की टोंटी बन्द कर दें। इसके बाद रोगी को सीधा बिठाकर उसे कुछ देर लंबी सांस छोड़ने को कहें। उसके ऐसा करने के बाद एक बाल्टी पानी उसकी छाती पर डालें। इसके बाद रोगी को दोबारा 2-4 मिनट तक टब में लेटने को कहा जाता है।

          इस विधि को 2 या 3 बार दोहराना पड़ता है। टब के पानी को हमेशा 37 से 38 डिग्री के तापमान पर लाना होता है। रोगी को अंत में 2 मिनट तक ठंडे पानी से नहलाना चाहिए।

लाभकारी-

          इस विधि से सांस की गहराई बढ़ाने में सहायता मिलती है और यह फेफड़ों के खून के संकुचन को दूर करता है।

हार्लपूल (भंवर) स्नान-

पानी का तापमान- ठंडा पानी 18 से 24 डिग्री सेल्सियस, न्यूट्रल पानी 32 से 36 डिग्री सेल्सियस।

स्नान का समय- यह स्नान कम से कम 15 मिनट तक करें।

विधि-

          इस स्नान में पानी एक बडे़ टब में भंवर की तरह घूमता है। मरीज के टब में उतरते ही भंवर की तरह बहने वाले पानी से उसके शरीर की धीरे-धीरे मालिश होती है। अच्छी सेहत वाला एक आम व्यक्ति ठंडे पानी से नहा सकता है।

लाभकारी-

          यह स्नान रक्तसंचार, मांसपेशियों एवं सभी अंगों के लिए लाभकारी है। पानी से स्नान करने के बाद शरीर का रक्त संचार ठीक हो जाता है परन्तु इस विधि से पसीना बहुत आता है दिल और शरीर के अन्य दूसरे अंगों की कार्य प्रणाली में सुधार होता है। ठंडे पानी से नहाने से रक्त संचार बढ़ जाता है। अत: हाई ब्लड प्रेशर के रोगी को गर्म पानी से ही नहाना चाहिए।

          गुर्दे और जिगर के कष्टों में यह स्नान बहुत उपयोगी है। शरीर में पोषक तत्वों का पूरी तरह परिपाचन न हो पाने के कारण कमजोर हो गए व्यक्तियों को इस स्नान से लाभ प्राप्त होता है। भाप, स्नान, सूर्य स्नान, सौना बाथ जैसे गर्म पानी के स्नान के बाद थोडे़ समय के लिए यह स्नान हर्लपूल किया जा सकता है।

          दूसरे न्यूट्रल स्नानों की तरह न्यूट्रल भंवर स्नान करने से शरीर को लाभ होता है और परिसरीय रक्तवाहिकाएं फैल जाती हैं। इस स्नान का मांसपेशियों के ऊतकों में निहित विषैले पदार्थ तेजी से बाहर आ जाते हैं। यह स्नान दिमाग तंत्रिका एवं मांसपेशीय प्रणालियों में जलन आदि अवस्था में काफी लाभ देती है।

पानी के नीचे प्रैशर स्नान-

          जल के द्वारा इलाज करने में यह स्नान अभी नया आया है। यह स्नान करने से शरीर का तापमान सही रहता है जो पानी की जोरदार धार के कारण शरीर पर पड़ता है।

पानी का तापमान- ठंडा पानी 18 से 24 डिग्री या न्यूट्रल पानी का तापमान 32 से 36 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।

विधि-

          यह स्नान विशेष रूप से बनाए गए टब में किया जाता है इसके अंदर एक जेट पाइप लगा होता है। पानी के नीचे न्यूट्रल मालिश करते समय मरीज इलाज आरम्भ करने से पहले एक या दो गिलास ठंडा पानी पीता है। इसके बाद रोगी का शरीर पानी में उठने वाले हल्के कम्पन से आकर्षित होता है। इसके बाद जेट पाइप से उसकी कमर व छाती पर पानी का प्रेशर करें।

          पानी के नीचे न्यूट्रल मालिश हो जाने के बाद रोगी के सिर पर ठंडा पानी डाला जाता है। इसके बाद रोगी को 30 से 40 मिनट तक आराम करने की सलाह दें।

लाभकारी-

          पानी के नीचे ठंडी प्रेशर की मालिश खून की गति को परिसरीय नसों की ओर मोड़कर त्वचा की गति को संविर्धत करने में सहायता करता है। इससे मांसपेशियों की गर्मी खत्म हो जाती है और मांसपेशियां मजबूत होती है।

          पैरेप्लीजिया, पोलियोमाइलाइटिस और पक्षाघात के मामलों में पानी के नीचे ठंडी मालिश एक बहुमूल्य इलाज है। इससे त्वचा ही कार्य नहीं करती है बल्कि पूरी तंत्रिका-प्रणाली की गतिविधियों को बढ़ाता है। इसलिए यह मालिश तंत्रिकाओं को हर तरह की कमजोरी से बचाता है। पानी के नीचे ठंडी मालिश से पाचन क्रिया भी अच्छी होती है और इसे पाचक रस ज्यादा मात्रा में पैदा होते हैं। इसलिए यह मालिश उन रोगियों के लिए लाभकारी है जिसके शरीर में गैसीय रसों का बहाव कम होने से उन्हें भूख कम लगने लगती है।

          लगभग 32 से 36 डिग्री तापमान पर पानी के नीचे मालिश करें अधिक शारीरिक गतिविधियों के बाद शरीर को आराम दें जैसे व्यायाम, सैर इत्यादि। खेलकूद में भाग लेने के बाद यह इलाज करने से थकी हुई मांसपेशियों को आराम मिलता है। यह अनिद्रा की स्थिति में लाभकारी है और इससे मांसपेशियों व तंत्रिका प्रणाली को मजबूत बनाने में सहायता मिलती है। स्पोडिलोसिस हडि्डयों, स्कालिओसिस, शियाटिक व आर्थराइटिस, जैसे दूसरे कष्टों में भी पानी के नीचे न्यूट्रल मालिश जरूरी है।


Copyright All Right Reserved 2025, indianayurved