परिचय-
कटि का अर्थ कमर होता है। इसलिए जब कटि स्नान कहा जाता है तो उसे कमर के नीचे का स्नान मान लिया जाता है। परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा में कटि का अर्थ कमर से नीचे का भाग न होकर नाभि के नीचे का भाग होता है। इस कटि स्नान में नाभि के नीचे से लेकर जांघ आदि निचले अंगों को धोया जाता है। इस स्नान को कटि स्नान, पेड़ू स्नान, उदर स्नान आदि नामों से जाना जाता है। पेड़ू का यह स्नान घर्षणयुक्त होना आवश्यक है। इसलिए इस स्नान का नाम ´घर्षण स्नान´ है।
घर्षण स्नान के लिए एक लकड़ी या मिट्टी का बर्तन अथवा कटि स्नान के लिए एक टब की आवश्यकता होती है। टब की गहराई इतनी होनी चाहिए कि उसमें आराम से बैठा जा सके तथा पानी डालने पर पानी नाभि तक पहुंच सके। इस स्नान में केवल कमर को ही पानी में भिगोकर स्नान किया जाता है, इसलिए इसे कटि-स्नान कहते हैं। इस टब की गहराई डेढ़ से दो फुट होती है। इस टब में पीठ को टिकाने के लिए सपाट लम्बाई होती है। इस टब में बैठकर ही घर्षण कटि स्नान किया जाता है।
घर्षण कटि स्नान की विधि-
इस स्नान के लिए पहले टब में पानी भरें, ध्यान रखें कि पानी की मात्रा टब में उतनी होनी चाहिए, जितने में बैठने पर पानी रोगी की नाभि और जांघों तक पहुंच जाए। टब में पानी भरने के बाद कपड़े निकालकर कुर्सीदार सिरे से पीठ को टब से लगाकर आराम से बैठ जाएं। ऐसा करने से कटि स्नान के साथ-साथ रीढ़ का स्नान भी हो जाता है। पैरों को रखने के लिए लगाए स्टूल पर पैरों को टब से बाहर रखें। टब में बैठने के बाद शरीर के जिस भाग पर पानी न पहुंचा हो उस भाग को, सिर और मुंह को छोड़कर अच्छी तरह से कपड़े से ढक दें। गर्मी के दिनों में इस स्नान को रोगी नंगे बदन कर सकता है। बुखार में रोगी यदि कमजोर न हो तो गर्मी के दिनों में बिना कम्बल ओढ़े अथवा शरीर के सूखे स्थान को बिना कपड़ों से ढके कटि स्नान कर सकता है क्योंकि टब के पानी में बैठकर कटि स्नान करने से सूखे स्थान से खून खिंचने लगता है, जिससे उस अंग में खून की कमी हो जाती है। कभी-कभी कमजोर व्यक्ति के पैर हमेशा ठंडे होते हैं अत: ऐसे रोगी को पैरों में मौजे पहनकर या पैरों को कपड़े से ढककर ही कटि-स्नान करना चाहिए। ध्यान रखें कि नाभि से जांघ तक का भाग पानी में डूबा रहना चाहिए। पानी में बैठने से पहले नाभि के नीचे के भाग को सूखी मालिश के द्वारा गर्म कर लेते हैं। इससे बहुत से रोगों में लाभ होता है। नाभि के नीचे के भाग को गर्म करने के बाद टब में बैठ जाएं। इसके बाद एक छोटे तौलिये से अपने पेट को धीरे-धीरे मालिश करने की तरह रगड़ें। मालिश करते समय तौलिये को दाएं से बाएं घुमाएं। इसमें कपड़े से दाईं ओर नीचे से रगड़ना शुरू करके नाभि के ऊपर तक ले जाकर दूसरी ओर से फिर नीचे रगड़ना चाहिए। साथ ही दोनों पुटठों को गुदाद्वार तक और जननेन्द्रिय के बाहरी भाग को भी अवश्य ही रगड़ें। घर्षण स्नान में शरीर को रगड़ने की क्रिया दबाकर करनी चाहिए। ध्यान रखें कि दबाव इतना अधिक न हो की त्वचा छिल जाए। यह स्नान तब तक करते रहें जब तक रोगी को पूर्ण आराम न मिल जाए। यदि स्नान करते समय रोगी को नींद आ जाएं तो रोगी को नींद खुलने तक वैसे ही टब में पड़ा रहने दें।
घर्षण कटि-स्नान का समय-
घर्षण कटि-स्नान शुरू-शुरू में 5 से 10 मिनट तक करना चाहिए। फिर 2 या 3 दिनों पर 1 या 2 मिनट स्नान का समय बढ़ाते जाएं। इस तरह स्नान का समय धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 10 मिनट तक स्नान करने का अभ्यास करें। इसके बाद स्नान का समय बढ़ाते हुए 15 मिनट तक करें। ध्यान रखें कि स्नान का समय 30 मिनट से अधिक न करें। यदि रोगी कमजोर हो तो स्नान केवल 20 मिनट तक ही करना चाहिए। अधिक वृद्ध, कमजोर और छोटे बच्चे को यह स्नान कुछ मिनट तक ही करना चाहिए। इस स्नान से पुराना रोग उत्पन्न होने लगता है। यदि 3-4 सप्ताह तक स्नान करते रहने पर रोगों का उभार न हो तो 5 वें सप्ताह में स्नान को बन्द कर दें। इसके बाद छठे सप्ताह से इस स्नान के नियम आदि का सख्ती से पालन करते हुए पुन: स्नान करें। स्नान कर चुकने पर टब से निकलने से पहले रोगी के गले से कमर तक के भाग को ठंडे जल से धो लेना चाहिए। फिर बारी-बारी से दोनों हाथों, सिर और अंत में टब से निकलकर पैरों को धोना चाहिए। यदि रोगी कमजोर न हो तो इस प्रकार सभी अंगों को धो लेने के बाद तो स्नान भी कर सकता है। कमजोर व्यक्ति, छोटे बच्चों और बूढ़े व्यक्तियों को केवल ठंडे पानी में कपड़े को भिगोकर शरीर पोंछना चाहिए। कटि स्नान के बाद पूर्ण स्नान करने के बाद तौलिया से शरीर को पोंछ कर कपड़े पहन लें। इसके बाद खुली हवा में हल्का व्यायाम, टहलना तथा हल्की सूखी मालिश आदि करनी चाहिए।
स्नान के लिए टब में आवश्यकता के अनुसार पानी भर लें। इसके बाद टब में इस तरह बैठे कि पानी नाभि के पास से लेकर कमर से नीचे जांघ के ऊपरी भाग तक आए। टब में बैठने के बाद पैरों को टब से बाहर किसी छोटे टेबल पर रखें ताकि जांघ का दूसरा भाग सूखा रहे। पीठ को टब से लगाकर रखें। अब टब में बैठने के बाद एक खुरदरे तौलिये से पेट को दाईं ओर से बाईं ओर धीरे-धीरे रगड़ें। इस तरह टब में बैठकर इस क्रिया को 5 से 10 मिनट तक करें। धीरे-धीरे स्नान का समय बढ़ाते जाएं। स्नान करने के बाद भीगे हुए शरीर को सूखे कपड़े से पोंछकर जल्दी से कपड़े पहनकर टहलने के लिए निकल जाएं। इस स्नान के बाद शरीर को गर्म करने के लिए टहलने के स्थान पर कोई हल्का व्यायाम भी किया जा सकता है। यदि शरीर में कमजोरी हो तो कम्बल ओढ़कर लेट जाएं। कटि स्नान करने के लगभग 25 मिनट बाद सामान्य स्नान करें।
कटि स्नान के सम्बंध में कुछ याद रखने हेतु बातें :
- यह स्नान प्रतिदिन 3 बार किया जा सकता है।
- भोजन करने से 3-4 घंटे पहले यह स्नान करें और स्नान के 1 घंटा बाद भोजन करें।
- सर्दी के दिनों में कटि-स्नान के 2 घंटे बाद और गर्मियों के दिनों में कटि-स्नान के 1 घंटे बाद या पहले साधारण स्नान करें।
- मासिकधर्म वाली स्त्री को साधारणत: 4 दिनों तक यह स्नान नहीं करना चाहिए।
- कटि-स्नान करने के बाद एनिमा क्रिया ली जा सकती है परन्तु कटि-स्नान के कम-से-कम 2 घंटे बाद यदि एनिमा लिया जाए तो अधिक लाभ होता है।
- प्रतिदिन नियमित समय पर ही कटि-स्नान करें और रोग में आने वाली कमी या अधिकता के अनुसार इसके समय को जारी रखें। केवल 2-4 दिन कटि-स्नान करने के बाद ही रोग में सुधार होने पर ही कटि-स्नान को छोड़ देना रोग को पूर्ण रूप से ठीक करने में लाभकारी नहीं होता।
- कटि-स्नान के प्रयोग के समय प्राकृतिक आहार पर रहना और खान-पान एवं रहन-सहन संबन्धी अन्य प्राकृतिक नियमों का पालन करना लाभकारी होता है।
- स्नान प्रयोग के दौरान ब्रह्राचर्य का पालन करना चाहिए और सम्भोग क्रिया आदि से दूर रहना चाहिए।
- सर्दी के दिनों में कटि-स्नान में परेशानी न हो इसलिए स्नान करने वाले कमरे में 1 या 2 जलते हुए कोयले की अंगीठी रखकर स्नान किया जा सकता है।
- नाभि पर मिट्टी बांधने के बाद कटि-स्नान लेना अधिक लाभकारी सिद्ध होता है।
- कुछ रोगों की अवस्था में कटि-स्नान के बदले मेहनस्नान करना अधिक लाभकारी होता है।
- उपवास के दिनों में यह कटि-स्नान शरीर के दूषित तत्वों को अधिक तेजी से बाहर निकालता है और इससे अधिक लाभ मिलता है।
- 1 महीने तक नियमित रूप से नियत समय पर यह स्नान करने से स्नान से मिलने वाले लाभ को देखने के लिए 6-7 दिनों तक स्नान को बन्द करना आवश्यक होता है। इसके बाद पुन: स्नान शुरू कर देना चाहिए।
- अधिक तेज रोगों में यह स्नान जल्दी-जल्दी तथा कई बार करना चाहिए। जीर्ण रोगों में 1-2 बार ही कटि-स्नान करना चाहिए। इस स्नान से लगभग सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं क्योंकि इस स्नान से आंतों व मलाशय की मालिश होती है और शरीर के सभी दूषित तत्व बाहर निकल जाते हैं। यह स्नान पेड़ू की बढ़ी हुई गर्मी को कम करता है तथा कटिप्रदेश में खून के संचालन की क्रिया को तेज करता है।
कटि-स्नान करने से दूषित द्रव्य पहले आंत में एकत्रित होते हैं और फिर चारों ओर फैलते हैं। कटि-स्नान करते समय जब पेड़ू को रगड़ा जाता है तो उससे वहां की मांसपेशियां शक्तिशाली होती हैं और आंतों में भरा व चिपका हुआ मल खिसककर बाहर निकल जाता है। नाभि के निचले अंगों में ठंडक पहुंचने से वहां की स्नायुपेशियां कुछ सिकुड़ती हैं, बाद में उनमें नए रक्त के आ जाने से वे शक्तिशाली बन जाती हैं, जिससे आंतों में मल अधिक समय तक नहीं रह पाता है। आंतों में किसी भी प्रकार की खराबी, उसमें एकत्रित मल आदि को दूर करने के लिए प्रतिदिन 2 बार कटि-स्नान करने से लाभ होता है। कटि-स्नान पेट को साफ करने के साथ-साथ जिगर, तिल्ली एवं अंतड़ियों के रक्तस्राव को भी बढ़ाता है, जिससे रोगी की पाचनशक्ति में सुधार होता है।
कटि-स्नान केवल नाभि के निचले भाग पर ही लिया जाता है परन्तु इसका प्रभाव शरीर के समस्त स्नायुमण्डल पर पड़ता है। कटि-स्नान को सुबह शौच आदि से आने के बाद खाली पेट करना चाहिए। कटि-स्नान सप्ताह में 2 बार करना चाहिए। इस स्नान को लगभग आधे घंटा से 45 मिनट तक किया जाता है।
विशेष-
टब में पानी का तापमान 64 से 68 फारेनहाइट तक हो या कुंए का पानी हो या मिट्टी के घड़े में ठंडा किये हुए पानी का प्रयोग स्नान के लिए करें। कटि स्नान के लिए पानी यदि शीतल हो तो ठीक होता है क्योंकि पानी में क्षारीय तत्व जितने कम होते है पानी से लाभ उतना अधिक मिलता है। कटि-स्नान के लिए नल तथा शहरों में सप्लाई के पानी को लाभकारी नहीं माना जाता क्योंकि उस पानी में क्लोरीन तथा फिटकरी जैसे तत्वों को मिलाया जाता है। बर्फ का पानी या बर्फ की तरह ठंडे पानी का प्रयोग इस स्नान के लिए कभी नहीं करना चाहिए। इस स्नान में पानी का तापमान शरीर के तापमान की अपेक्षा थोड़ा कम रखना चाहिए।
सावधानी-
कटि-स्नान के लिए पहले सामान्य हल्के तापमान वाले पानी में रोगी को स्नान कराना चाहिए। ठंडे पानी से स्नान करने पर हानि हो सकती है। 2-3 दिन तक स्नान का अभ्यास होने के बाद ही हल्के ठंडे पानी से कटि-स्नान करना चाहिए। यदि रोगी को बुखार आदि हो तो पहले दिन से ही ठंडे पानी का कटि-स्नान करना चाहिए। अधिक कमजोर रोगी को शारीरिक तापमान में कमी आ गई हो तो ऐसी स्थिति में शारीरिक तापमान बनाए रखने के लिए गुनगुने पानी से भरे बर्तन में दोनों पैरों को रखना चाहिए। पानी का तापमान स्नान के शुरू से अंत तक एक समान बनाए रखने के लिए उस पानी में बार-बार ठंडा पानी मिलाते रहें। इस तरह जब तक पैर गर्म रहें, तब तक सिर को ठंडा रखें। इसके लिए एक तौलिये को ठंडे पानी में भिगोकर निचोड़ लें और उसे रोगी के सिर पर बांध दें। जब तौलिया सूख जाए तो उसे पुन: ठंडे पानी में भिगोकर और निचोड़कर रोगी के सिर पर बांध दें।
विशेष-
घर्षण कटि-स्नान के लिए नाभि के नीचे का भाग इसलिए चुना गया क्योंकि पेट के इसी भाग में भोजन का पाचनतंत्र रहता है। शरीर के सभी दूषित तत्व बहकर इस भाग में आते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों से निकलकर आए दूषित तत्वों को बाहर निकालने के लिए घर्षण कटि-स्नान से अच्छा अन्य कोई स्नान नहीं है। इस स्नान से मल आंतों से निकलकर गुर्दों के द्वारा बाहर हो जाता है और आंतों को निर्मल व कोमल बनाता है।
घर्षण कटि-स्नान से रोगों में लाभ-
शरीर में उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों का मुख्य कारण कब्ज ही है। इस स्नान से कब्ज दूर होती है। इस स्नान को करने से शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार का लाभ प्राप्त होता है क्योंकि नाड़ी-संस्थान एवं अंत:स्रावी ग्रंथियों पर इस स्नान का अच्छा प्रभाव पड़ता है। पेट के रोग, कब्ज, भोजन का अच्छा न लगना (अरुचि), कोलायटिस, वायु विकार तथा गुदा के रोग जैसे बवासीर व भगन्दर आदि रोगों में कटि-स्नान लाभकारी है। इस स्नान से पाचनक्रिया मजबूत होती है और यह प्रजनन अंग के रोग जैसे मासिकधर्म की अनियमितता, पेड़ू का दर्द, कमर दर्द आदि में आरामकारी प्रभाव डालता है। यह मूत्र नली के संक्रमण और पेशाब की रुकावट को दूर करता है और पेशाब को खुल कर लाता है। यह तनाव, उत्तेजना आदि को दूर करता है। इस स्नान से नींद अच्छी आती है और सिर व शरीर का भारीपन दूर होकर शरीर हल्का, स्फूर्तिदायक और प्रसन्न बना रहता है। यह इन्द्रियों की शक्ति को बढ़ाता है। इस स्नान से पेट के सभी प्रकार के विकार दूर होते हैं तथा यह विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोगों को दूर करता है। कटि-स्नान से शरीर में स्फूर्ति व ताजगी का संचार होता है। शरीर के अन्दर के दूषित द्रव्य को कटि स्नान बाहर निकलता है। कटि स्नान का लाभ सभी प्रकार के रोगों में होता है।
कटि-स्नान की दूसरी विधि-
कटि-स्नान की दूसरी विधि में नाभि के निचले भाग के अतिरिक्त शरीर के अगल-बगल तथा पीठ के भाग को भी रगड़ कर धोया जाता है। इस विधि से कटिस्नान करते समय एक तौलिये को ठंडे पानी में भिगोकर उसे अच्छी तरह से निचोड़कर रोगी के सिर पर रखना चाहिए।