परिचय-
एनिमा क्रिया में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के द्रव को ही एनिमा द्रव कहते हैं। इन द्रव को पानी में रोग तथा आवश्यकता के अनुसार मिलाकर एनिमा लिया जाता है। कब्ज को दूर करने तथा आंतों को साफ करने के लिए पानी में मिलाये जाने वाले द्रव निम्न हैं- 1. छाछ 2. शहद 3. गेहूं 4. नीम का पत्ता 5. लहसुन का रस।
मल को साफ करने वाला एनिमा द्रव-
1. नीबू का रस और पानी का एनिमा-
इस एनिमा का प्रयोग शौच खुलकर न आने पर किया जाता है, क्योंकि शौच खुलकर न आने पर पेट में कब्ज बन जाती है और अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। शौच को खुलकर लाने के लिए 1.25 लीटर पानी में 1 नींबू के रस मिला दिया जाता है और फिर उस पानी से एनिमा लिया जाता है। इस एनिमा से आंतों की सफाई होती है और कब्ज दूर होता है। इससे शौच नियमित रूप से खुलकर आती है।
2. नमक और पानी का एनिमा-
शौच खुलकर लाने और कब्ज को दूर करने के लिए पानी में नमक मिलाकर एनिमा लिया जाता है। इसमें 1 लीटर पानी में 15 ग्राम नमक मिलाकर एनिमा लिया जाता है। इस एनिमा से आंतों में सूखा हुआ मल आसानी से घुलकर बाहर निकल जाता है और आंतें साफ हो जाती हैं।
3. सादे पानी का एनिमा-
सादे पानी की एनिमा क्रिया रोगी व्यक्ति की आंतों को साफ करने के लिए करते हैं। इस एनिमा में ताजे पानी से एनिमा लिया जाता है, जिससे मलाशय उत्तेजित होकर मल को बाहर निकालता है। सादा पानी का एनिमा पोषक एनिमा देने से पहले भी लिया जाता है, जिससे कमजोर व्यक्ति की शारीरिक शक्ति बनी रहे।
4. छाछ का एनिमा-
छाछ का एनिमा विभिन्न रोगों में लिया जाता है, जैसे- डिसेण्ट्री (पेचिश), पतला दस्त, पेट में मरोड़, आन्त्र प्रदाह (आंतों में जलन), आंत का सूजन, अमीबाओसिस, मधुमेह, यकृत संबन्धी रोग तथा सभी पेट रोग में छाछ का एनिमा प्रयोग किया जाता है। इससे आंतों एवं शरीर को पोषण मिलता है। इस एनिमा में 250 से 500 मिलीलीटर छाछ का एनिमा लिया जाता है। इस क्रिया से आंतों का घाव ठीक होता है।
5. शहद का एनिमा-
पानी में शहद मिलाकर एनिमा लिया जाता है। एनिमा क्रिया में शहद का प्रयोग करने से शहद मिला हुआ पानी आंतों में सूखे मल को ढीला करके निकालता है। इस एनिमा का प्रयोग ऐसे रोगी के लिए किया जाता है, जिसका शरीर कमजोर हो और भोजन नहीं कर सकता। ऐसे रोगी को आधा लीटर पानी में 3 चम्मच शहद मिलाकर एनिमा दिया जाता है। इससे मल ढीला होकर निकल जाता है और रोगी में शारीरिक शक्ति बनी रहती है।
रोकने वाला पोषण एनिमा-
इस तरह का एनिमा ऐसे रोगी को दिया जाता है, जिसे भोजन करने तथा पानी पीने में कठिनाई होती है। रोगी को पोषक एनिमा देने से पहले सादे पानी का एनिमा देना आवश्यक है। सादे पानी का एनिमा देने के बाद ही पोषक एनिमा देना चाहिए। यह एनिमा दिन में 2-3 बार रोगी को दिया जा सकता है। पोषक एनिमा बूंद-बूंद करके धीरे-धीरे देना चाहिए।
गेहूं के पत्ते के रस का एनिमा-
पोषक एनिमा के लिए गेहूं के पत्ते का रस निकालकर प्रयोग किया जाता है। एनिमा के लिए स्वच्छ स्थान पर पशु के गोबर की खाद से उगाये गये 7 दिन के गेहूं के पत्ते का रस 50 से 100 सी.सी. निकालकर इसका एनिमा लें। इससे एनिमा लेने से शरीर व आंतों को पोषण मिलता है। इस एनिमा से शरीर के दूषित द्रव्य बाहर निकलकर शरीर को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाते हैं। यह एनिमा दिन में 2-4 बार या हर 4 घंटे में पानी के एनिमा देने के बाद दिया जा सकता है। यह एनिमा आंतों में एकत्रित विष को उदासीन कर देता है। यह खून को साफ करके उसके प्रवाह को तेज करता है।
कीटाणुनाशक एनिमा द्रव-
पेट के कीड़ों को नष्ट करने के लिए पानी में विभिन्न प्रकार के पदार्थों का प्रयोग किया जाता है और उससे एनिमा लिया जाता है, जिसे कीटाणुओं को नष्ट करने वाला एनिमा द्रव कहते हैं।
1. नीम के पत्ते और पानी का एनिमा-
कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए पानी में नीम के पत्तों को डालकर उबाल लें। फिर उस पानी का एनिमा लें। इससे सभी प्रकार के चर्मरोग, आंतों के कीड़े तथा घाव समाप्त हो जाते हैं।
2. लहसुन का रस और पानी का एनिमा-
इस एनिमा में 4-5 लहसुन की कली का रस निकालकर लगभग 1 लीटर पानी में अच्छी तरह से मिला लेते हैं फिर उससे एनिमा लिया जाता है। इससे आंतों के कीड़े मरते हैं और साथ ही यह आंतों के लिए लाभकारी जीवाणुओं को बढ़ाता है।
सावधानी-
ध्यान रखें कि एनिमा के लिए लहसुन की कली 4-5 से अधिक न हो। इससे आंतों में जलन, आंतों की रूक्षता और शरीर में गर्मी बढ़ जाती है।