संसार का प्रत्येक व्यक्ति जिस प्रकार की भावना अपने मन में रखता है उसी प्रकार का हो जाता है। प्रत्येक का स्वभाव स्वयं ही उसके अपने विचार होते हैं। प्रारम्भ से ही हम जिस वातावरण में रहते हैं उसी के अनुसार ढल जाते हैं। वास्तव में प्रसन्नता एक अद्भुत शक्ति होती है जो हतोत्साहित होने पर हमें धैर्य प्रदान करती है। प्रसन्नता गरीबों को धनवान बना देती है तथा असहाय होने पर सच्ची मित्र होती है।
प्रसन्नता प्राप्त करने के सरल उपाय :
हंसना हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। खिलखिलाकर हंसने से हमारा शरीर, शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है तथा भूख खुलकर आने लगती है। जो व्यक्ति हंसमुख स्वभाव के होते हैं उन्हें कब्ज का रोग नहीं होता है। ऐसे व्यक्ति अधिक भोजन करते हैं और उसका पाचन भी अधिक करते हैं। हंसने के कारण पेट की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है जिससे भोजन का आसानी से पाचन होता है। इसके फलस्वरूप हमारे शरीर में रक्त का संचार अधिक होने लगता है जोकि हमारे शरीर के स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही आवश्यक है।
हंसना :
हंसना भी एक प्रकार का लाभकारी व्यायाम है। इस क्रिया के करने से मुंह, गर्दन, सीना और पेट के बहुत से स्नायुओं को एक भाग लेना पड़ता है जिससे वे मजबूत और क्रियाशील बनते हैं। मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं तथा मुंह और पेट की मांसपेशियों, नसों और नाड़ियों का हंसने से एक अच्छा व्यायाम हो जाता है। हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति के गाल गोल, सुन्दर और चमकीले होते हैं और उसका चेहरा गुलाब के फूल के भांति खिला रहता है। जो व्यक्ति हंसमुख होते हैं उन्हें फेफड़ों से सम्बंधित रोग नहीं होते हैं।
खुलकर हंसने से विभिन्न रोग स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं। टी.बी. जैसे खतरनाक रोग भी खुलकर हंसने से ठीक हो जाते हैं। पुराने कब्ज के रोगी का कब्ज भी हंसने से ठीक हो जाता है।
यदि हम अकेले बैठे हों तो हमें किसी हास्याप्रद घटना को याद करके मन ही मन हंसना चाहिए तथा शीशे के सामने बैठकर हंसना चाहिए। हमें छोटे-छोटे बच्चों से बातें करनी चाहिए क्योंकि उनसे बाते करने से हमें हंसी का मौका मिलता है। हमें प्रतिदिन कम से कम दो बार अवश्य ही खिलखिलाकर हंसना चाहिए, ताकि हम रोगों से अपने शरीर को सुरक्षित रख सकें। हंसने से हमारे गालों पर झुर्रियां नहीं पड़ती हैं और बुढ़ापा भी दूर रहता है।
मुस्कराना :
मुस्कराते हुए व्यक्ति को सभी पसन्द करते हैं और मुस्कराने से स्वयं को असीम प्रसन्नता का अनुभव प्राप्त होता है। किसी प्रकार की परेशानी होने पर हमें मुस्कराहट के साथ उसका सामना करना चाहिए। इससे हमारी आधी परेशानी स्वयं ही नष्ट हो जाएगी।
स्कूलों में बच्चों को हमेशा मुस्कराते रहने की सलाह दी जाती है। किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति से मुस्कराकर ही बात करनी चाहिए। इससे रोगी को अधिक राहत मिलती है तथा उसका दर्द बंट जाता है। जो व्यक्ति सुख और दु:ख दोनों ही परिस्थितयों में मुस्कराता रहता है, वह धन्य है। कहा गया है कि मृदुल स्वभाव, होंठों की हल्की मुस्कान और कुछ स्नेह भरे शब्द किसी को इतना अधिक सुख दे सकते हैं जितना कि लाखों रुपये से भी नहीं खरीदा जा सकता है। हंसने और मुस्कराने में किसी भी प्रकार का खर्च नहीं होता है तथा इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है।
गुनगुनाना:
प्रसन्नता का तीसरा साधन गुनगुनाना होता है। मुंह से सीटी बजाना, अथवा किसी मनपसन्द गीत को गाने से हमारे मन को काफी शांति मिलती है और हम विभिन्न मानसिक विकारों से दूर रहते हैं।
गाना :
गाना प्रसन्नता का अचूक साधन होता है किन्तु यह नहीं कि हम सभी अपने कामों को छोड़कर सिंगर बनने के लिए चल पड़ें। हमें जिस प्रकार से भी टूटा-फूटा गाना आता हो उसी गाने को गाना चाहिए। इससे हमारा मन प्रसन्न रहता है।
मनोरंजन :
मनोरंजन, हंसी-मजाक और आमोद-प्रमोद सभी प्रसन्न रहने के विभिन्न तौर-तरीके हैं। यदि हमारे जीवन में मनोरंजन का अभाव होता है तो इससे हम शारीरिक और मानसिक रूप से कुंठित हो जाते हैं। इसलिए हमें छुटि्टयों के समय किसी न किसी प्रकार का मनोरंजन अवश्य ही करना चाहिए। संसार का कोई भी कार्य चाहे कितना भी प्रिय क्यों न हो, उसे लगातार देर तक करते रहने से थकान आना स्वाभाविक ही होता है। इसलिए हमें अपना मन बहलाने के लिए किसी न किसी प्रकार का मनोरंजन अवश्य ही करना चाहिए।
मनोरंजन करने से हमारा शारीरिक और मानसिक दोनों विकास होते हैं तथा मनोरंजन के बाद कार्य करने से जल्दी से थकान नहीं आती है। 40 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों को चाहिए कि उन्हें अपने मनोरंजन के लिए किसी न किसी साधन को अवश्य अपनाना चाहिए। इससे उनका शेष जीवन सुखमय व्यतीत होता है। बहुत से बूढ़े व्यक्ति भजन, कीर्तन, पूजा आदि के द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं। कुछ लोगों का शौक तैरने का होता है।
महिलाएं यदि पुरुषों के साथ उनके मनोरंजन के तरीकों में भाग नहीं ले सकती हैं तो उन्हें शिक्षाप्रद किताबों का अध्ययन करना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं ढोलक पर गीत गाकर अपना और अपनी सहेलियों का मनोरंजन करती हैं तथा झूलों में झूलती हैं। विभिन्न प्रकार के खेल भी मनोरंजन के साधनों में आते हैं। खेलते समय हमारे मस्तिष्क से सभी प्रकार के दु:ख, शोक, चिन्ता आदि दु:ख आदि गायब रहते हैं।
मनोरंजन और उसके द्वारा रोगों को दूर करना :
स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में रोगियों को मनोरंजन या मन-बहलाव के लिए अधिक साधनों की आवश्यकता होती है। एक अच्छा चिकित्सक सदैव इस बात की कोशिश करता है कि उसका रोगी अपनी बीमारी के सम्बंध में कुछ भी सोच-विचार न करे। यह तभी हो सकता है जब उसका मन किसी न किसी मनोरंजन से बहलता रहे। बीमारी की हालत में रोगियों के लिए सांत्वना, आशा, दिल बहलाव, तथा मनोरंजन आदि की सामग्री इकट्ठा करके उनके रोगों के दर्द को कुछ कम कर सकते हैं।
संसार का सबसे बड़ा सुख है शरीर का निरोगी होना :
एक कहावत है कि संसार का सबसे बड़ा सुख निरोगी होना होता है। यदि स्वास्थ्य को तलाशे तो हम पायेंगे कि निरोग होना हमारी दैनिक दिनचर्या में छिपा होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक स्वस्थ होते हैं। इसका कारण प्रकृति होती है जिसमें वह रहते हैं। स्वस्थ रहना किसी भी प्रकार से हमारे लिए मुश्किल नहीं होता है। इसके लिए इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। इसके लिए हमें प्राकृतिक दिनचर्या को अपनाना चाहिए। इसके लिए सुबह के समय जल्दी उठकर थोड़ी देर तक अवश्य ही टहलना चाहिए। इसके बाद स्नान आदि करके नाश्ते में अंकुरित अनाज, मौसमी फल और दूध का सेवन करना चाहिए। दोपहर के भोजन में हमें रोटी, हरी सब्जियां, दही, मट्ठा और सब्जी को फल का रस या सब्जी का सूप और शाम के समय भोजन में रोटी, हरी सब्जियां, का सेवन करना चाहिए। शाम को जल्दी सो जाना चाहिए। इस प्रकार की दिनचर्या अपनाने से हमारा स्वास्थ्य बहुत अधिक उत्तम होता जाता है। इससे शरीर में चुस्ती-फूर्ती आती है और कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। इससे बात-बात पर क्रोध और चिड़चिड़ापन दूर हो जाएगा। यदि हम प्राकृतिक दिनचर्या का पालन नियमित रूप से करें तो इससे हमारा शरीर स्वस्थ और निरोग रहेगा।
हमारे खाने-पीने की आदतों का हमारे पूरे परिवार पर प्रभाव पड़ता है। यदि हम असमय भोजन करते हैं अथवा अधिक मिर्च-मसालों से युक्त भोजन करते हैं तो हमारी इस आदत का प्रभाव हमारे बच्चों पर भी पडे़गा और वे भी अपना स्वास्थ्य खराब कर लेंगे। यदि हम संतुलित आहार का सेवन करते हैं तो इससे भी हमारे बच्चों पर भी इसका प्रभाव पडे़गा और वे भी संतुलित आहार का सेवन करने लगेंगे। वर्तमान में हमारे समाज में प्रचलित बीमारियों जैसे मोटापा, कब्ज, हृदय रोग, गैस आदि बीमारियों का कारण खान-पान में की गई असावधानियां होती हैं। प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुसार हमारे शरीर में रोगों का प्रारम्भ हमारे घर की रसोई से ही शुरू होता है। रसोई ही वह स्थान होता है जहां पर हम अपने स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन तैयार कर सकते हैं।
वर्तमान समय में हमारे आधुनिक जीवन की दिनचर्या बिल्कुल ही बदल गई है। आजकल की दिनचर्या का प्रारम्भ सुबह के समय देर से उठने से शुरू होता है। इसके बाद चाय पीना, चाय पीने के बाद शौच जाना, शौच के बाद पुन: चाय पीना, ब्रश करना, नहाना-धोना, इसके बाद नाश्ते में ब्रेड, टोस्ट, मटर-छोले, खस्ता, कचौड़ी, पकौड़ी, जलेबी, बिस्कुट के साथ चाय भी होता है। इसके बाद व्यक्ति नौकरी के लिए निकल जाता है। दोपहर को लंच में फास्ट फूड का अधिक सेवन, शाम को ऑफिस अथवा अपने व्यवसायिक कार्यों से लौटकर फिर चाय और रात को दोपहर के समान ही भोजन करके फिर टेलीविजन आदि देखकर 11 बजे के लगभग सो जाना होता है। उपर्युक्त दिनचर्या वाला व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी स्वस्थ नहीं रह सकता है। इस प्रकार की दिनचर्या में हमारे जीवन के लिए लाभकारी व्यायाम और विश्राम के लिए कोई भी समय नहीं है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति कब्ज से पीड़ित हो जाता है जो दूसरे रोगों को पैदा करता है।
हमें हमेशा स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए। यूरोपीय देशों के नागरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक मेहनत करते हैं। पहले हमारे देश में टहलने और व्यायाम करने को व्यर्थ का कार्य और समय को नष्ट करने का कार्य समझा जाता था लेकिन आधुनिक समय में इस विचारधारा में परिवर्तन आ रहा है। जगह-जगह पर ``हेल्थ क्लब´´ तथा ``प्राकृतिक चिकित्सालय´´ खुल जाने से लोग इसका उपयोग अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए करने लगे हैं। इतना होने के बावजूद भी अभी हमारे देश में इस प्रकार की जानकारी केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
स्वास्थ्य और दृष्टिकोण :
हमारा स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि स्वास्थ्य के प्रति हमारा दृष्टिकोण किस प्रकार का है। बहुत से लोग मोटा होने को अच्छे स्वास्थ्य की निशानी मानते हैं तो कुछ मोटापे को एक बीमारी समझते हैं। उनके अनुसार मोटापे के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियां जैसै मधुमेह (डायबटीज), उच्चरक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) आदि विभिन्न प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त आवश्यकता से अधिक मोटा व्यक्ति सभी की हंसी का कारण होता है। मोटा व्यक्ति तेज नहीं दौड़ पाता है तथा किसी भी कार्य को चुस्ती और फुर्ती के साथ नहीं कर पाता है। वह थोड़े से परिश्रम के बाद ही हांफने लगता है। इससे स्पष्ट होता है कि मोटापा हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है।
इसी प्रकार हमारे खान-पान का हमारे शरीर पर व्यापक प्रभाव पड़ता है जैसे बहुत से लोग छोले-चाट, पकौड़ी आदि खाद्य-पदार्थों को अधिक मात्रा में खाकर अपना स्वास्थ्य खराब कर लेते हैं तथा जितना पैसा वह चाट-पकौड़ी को खाने में लगा देते हैं उससे भी अधिक धन उन्हें डॉक्टर को देना पडता है। जबकि कुछ लोग इस प्रकार के होते हैं कि वे किसी भी बीमारी के उत्पन्न होने से पहले उसे रोकने का प्रयास करते हैं। उनके अनुसार जब लोग बीमार ही नहीं होंगे तो डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यह हमारे ही दृष्टिकोण का अंतर होता है कि एक व्यक्ति पैसे खर्च करने के बाद बीमारी का कष्ट उठाता है जबकि दूसरे दृष्टिकोण का व्यक्ति पैसा भी खर्च नहीं करता है तथा बीमार भी नहीं होता है और उसका स्वास्थ्य बना रहता है। इसी प्रकार की हमारे दैनिक जीवन की छोटी-छोटी लापरवाहियां हमें भयंकर रोगों से ग्रस्त कर देती हैं और अंत में हमें पश्चाताप करने के अतिरिक्त कुछ भी मिलता है।
यदि हमें अपनी बीमारी का प्रमुख कारण पता चल जाए तो हम अपने स्वास्थ्य को ठीक रख सकते हैं। हमारे शरीर की अधिकांश बीमारियों का कारण हमारा असंतुलित तरीके से खान-पान, रहने के गलत तौर-तरीके और गलत सोच तथा जीवन का तनावपूर्ण होना होता है। इन रोगों से अपने शरीर की रक्षा करना ही हमारा कर्त्तव्य होता है। अधिकांश बीमारियों को ठीक करने के लिए परहेज करने की अधिक आवश्यकता होती है। असमय चाय-काफी का अधिक मात्रा में सेवन करना, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, पान मसाला आदि का सेवन करने से हमारा शरीर विभिन्न भयानक रोगों से घिर जाता है।
यदि हम हमारे शरीर की प्रकृति के विपरीत वस्तुओं का सेवन करते हैं तो इससे हमारा शरीर स्वस्थ नहीं रह सकता है। हमारा पेट जोकि भोजन के लिए बना है, यदि हम केवल तले-भुने खाद्य-पदार्थ और अन्य विपरीत प्रकृति का भोजन करते हैं तो इससे हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इतना होने के बावजूद हम इस प्रकार का भोजन बंद करके, उपवास या हल्का भोजन करें तो इससे हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा और शरीर पहले की तरह ही पुन: कार्यशील हो जाएगा। हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि अपने शरीर को स्वस्थ रखना हमारे ही हाथों में होता है। यदि हम चाहे तो उचित प्राकृतिक दिनचर्या के अनुसार अपना जीवन बिताकर शरीर को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रख सकते हैं अथवा विभिन्न प्रकार गलत तरीकों को अपनाकर अपना स्वास्थ्य खराब कर सकते हैं।