परिचय-
शिथिलीकरण विज्ञान और हठयोग का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। मन और शरीर को शिथिल करने की क्रिया को `शिथिलीकरण क्रिया´ कहते हैं। इस क्रिया को करने से बहुत से रोग तो दूर हो ही जाते हैं साथ में इसको करने से मनुष्य बहुत ज्यादा क्रियाशील और ताकतवर बन जाता है।
यौगिक शिथिलीकरण करने का तरीका-
यौगिक शिथिलीकरण करने के लिए 2 आसन काम में लाए जाते हैं-
शवासन और प्राणधारण आसन।
शवासन-
शवासन में व्यक्ति का शरीर किसी शव (मरे हुए व्यक्ति) की तरह दिखाई देता है। इसलिए इस आसन को शवासन कहते हैं। जो व्यक्ति रोजाना आसन करते हैं वे किसी भी आसन की समाप्ति के बाद आराम करने के लिए इस आसन को जरूर करते हैं।
शवासन करने का तरीका-
सबसे पहले जमीन पर एक चादर या कपड़ा बिछाकर पीठ के बल बिल्कुल सीधे लेट जाएं। दोनों हाथों को शरीर के दोनों तरफ बिल्कुल सीधा रखना चाहिए। दोनों पैर भी बिल्कुल सीधे रहने चाहिए, एड़ियां सटी हुई होनी चाहिए और पैरों के पंजे खुले होने चाहिए। इसके बाद आंखों को बंद करके पूरे शरीर को ढीला छोड़ देना चाहिए। फिर धीरे-धीरे सांस लें। शरीर को ढीला छोड़ने की क्रिया, पैरों के अंगूठों से शुरू करके क्रमश: पैरों की पिण्डली, पीठ, छाती, गर्दन और सिर की मांसपेशियों तक होनी चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि नींद नहीं आनी चाहिए। इस आसन को लगभग 5 मिनट तक करना चाहिए। शवासन को करने से आसन करने वाले व्यक्ति को बहुत ज्यादा आराम मिलता है और उसमें शक्ति तथा चुस्ती-फुर्ती आती है। इस आसन को करने से स्नायुमंडल क्रियाशील बनता है और दिल में नया उत्साह और उमंग पैदा होती है, जिससे व्यक्ति का किसी भी काम को करने में पूरी तरह से मन लगता है।
एक महान योगी के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति चाहे तो शवासन को आराम करने वाली कुर्सी पर लेटकर या मन को एक जगह लगाकर कहीं भी कर सकता है। जो शरीर को शिथिल करने का तरीका जानता है वह किसी भी समय, किसी भी स्थान पर इस आसन को करके अपने शरीर में ताकत और चुस्ती-फुर्ती पैदा कर सकता है। मन को शिथिल करके कहीं पर भी आराम किया जा सकता है। शवासन करने वाले व्यक्ति को कभी भी मानसिक और शारीरिक किसी प्रकार की थकावट महसूस नहीं होती।
प्राणधारण-
जब कोई व्यक्ति शवासन से शिथिलीकरण की दिशा में कुछ बड़ा कर लेता है तब वह दूसरे आसन `प्राणधारण´ का फायदा उठाता है। इसके लिए आसन करने वाला व्यक्ति शरीर की मांसपेशियों को शिथिलीकरण के साथ-साथ सांस के बाहर निकलने और अन्दर आने की क्रिया पर ध्यान रखते हुए धीरे-धीरे सांस को लेने और बाहर छोड़ने की क्रिया के बीच में पूरा सामंजस्य बैठा लेता है। इस आसन को करने से न सिर्फ दिल और फेफड़ों को पूरी तरह शिथिलता प्राप्त होती है, बल्कि शरीर की मांसपेशियों में हर भाग का पूरी तरह से शिथिलीकरण हो जाता है।