परिचय-
विश्राम का मतलब होता है किसी भी शारीरिक या मानसिक काम को समाप्त करने के बाद आराम करना। यह बात तो स्वाभाविक है कि पूरे दिन मेहनत करने के बाद व्यक्ति विश्राम करना चाहता है। एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि विश्राम का मतलब सिर्फ शारीरिक विश्राम ही नहीं, बल्कि शारीरिक विश्राम का मानसिक विश्राम से मेल होने पर ही शरीर को पूरा विश्राम मिलता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति आराम करता है तो वह उस समय विश्राम की मानसिक दशा को भूल जाता है और आराम करते समय भी दिमाग से काम लेता रहता है। लेटे-लेटे भी हमारे दिमाग में तनाव बना रहता है जो विश्राम की चंचलावस्था के कारण होता है। लेकिन यह विश्राम नहीं है। अगर विश्राम की असली अवस्था को देखना है तो किसी छोटे बच्चे को सोते हुए देखना चाहिए। तब पता चलेगा कि विश्राम असल मे वैसे ही करना चाहिए। सिर्फ कुछ दिनों की कोशिश से हमारे शरीर को शिथिल करके (ढीला छोड़कर) आराम करने की आदत पड़ सकती है। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इसे आरोग्यमूलत शिथिलता (क्रेटिव रिलेक्शन) कहा जाता है। यह आकाश चिकित्सा का एक प्रमुख साधन है।
विश्राम और आलस्य में फर्क-
किसी व्यक्ति के रोगी होने पर या स्वस्थ रहने पर आराम की पूरी जरूरत होते हुए भी यह जानना जरूरी है कि `विश्राम और आलस्य´ दोनों एक ही चीज नहीं हैं। किसी ज्यादा मेहनत के काम को करने के बाद आराम करके मेहनत करने के समय लगाई हुई शक्ति को दुबारा पाना आराम कहलाता है, लेकिन जो आराम मेहनत के बाद नहीं किया जाता, वह शरीर और मन की निष्क्रिय अवस्था को बढ़ाता है, इसलिए इसे आलस्य कहते हैं विश्राम नहीं। आलसी व्यक्ति को काम करने की इच्छा ही नहीं होती और विश्राम करने वाला व्यक्ति काम करने हेतु सदा तत्पर रहता है। ऐसा व्यक्ति विश्राम करने के बाद नये उत्साह और नये जोश के साथ काम में लग जाता है।
बहुत से लोगों का मानना है कि सुबह से शाम तक कारखानों, दुकानों आदि में काम करने के बाद रात को भोजन करके सो जाना ही विश्राम कहलाता है, लेकिन यह सोच भी गलत है। जिस तरह विश्राम और आलस्य दोनों ही अलग-अलग चीजें हैं, उसी तरह नींद को विश्राम समझना भी एक भारी भूल है। सोना तो मानव स्वभाव ही है। एक मेहनती व्यक्ति के लिए नींद उतनी ही जरूरी है जितनी कि एक कर्मठ व्यक्ति के लिए अर्थात विश्राम की जरूरत मनुष्य को तभी तक होती है, जब वह मेहनत करता है, लेकिन नींद की जरूरत उसे दोनों ही स्थितियों में होती है। मेहनत करने के बाद भी और मेहनत न करने पर भी नींद लेना एक प्रकार का सूक्ष्म स्नान है जिससे मनुष्य के शरीर में ताजगी अथवा चुस्ती-फुर्ती आ जाती है। नींद और विश्राम में यही अन्तर है। यह नींद और विश्राम दोनों ही शरीर की काम में खर्च हुई ताकत को दुबारा प्राप्ति के साधन हैं।
विश्राम की जरूरत क्यों?
शरीर के लिए विश्राम उतना ही जरूरी है, जितना कि भूख के लिए भोजन। अगर कोई मनुष्य सारे दिन तेज गति से मेहनत ही करता रहे तो यह निश्चित है कि कुछ ही घंटों में उसका शरीर विश्राम न मिलने के कारण थककर चूर-चूर हो जाएगा और ऐसे मनुष्य का शरीर बहुत दिनों तक नहीं टिक पाएगा। मनुष्य तो क्या निर्जीव रेलगाड़ी के इंजन तक को भी सही तरह से आराम न मिले तो वह भी आगे नहीं चल सकता। दुनिया के सारे जीव-जंतु, पशु-पक्षी आदि सारे दिन मेहनत करने के बाद आराम करना चाहते हैं। यह सृष्टि भी अपने विनाश काल में एक दिन विश्राम करती है।
हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग अर्थात दिल 24 घंटे में 1 लाख बार से ज्यादा बार धड़कता है और हमारी 12000 मील लंबी खून की नलियों से लगभग 5000 गैलन खून को दौड़ाता है, पर इतना ज्यादा खास और मुश्किल काम दिल भी विश्राम लिए नहीं करता और न ही कर सकता है। लूप और डप के बीच का जो समय होता है, वही दिल के आराम करने का समय होता है। सिर्फ इतने से समय में ही वह विश्राम करके इतनी ज्यादा शक्ति प्राप्त कर लेता है जिससे वह लगातार क्रियाशील रहकर मनुष्य को जिंदा रख सकता है। इसलिए विश्राम के सम्बंध में जो बात दिल के लिए सच है वही मनुष्य के शरीर के अवयव के लिए भी सच है। विश्राम एक औषधि है, जिससे थकान दूर होती है और नष्ट हुई ताकत दुबारा मिल जाती है।
विश्राम द्वारा रोगों की चिकित्सा-
अगर मनुष्य विश्राम के महत्व को समझकर विश्राम करना सीख लेता तो आज के समय में रोगियों की बढ़ती हुई संख्या कम होती। स्नायु की कमजोरी के कारण ही नपुंसकता, भोजन का न पचना, कब्ज, नींद न आना, हाई ब्लडप्रेशर,और पागलपन आदि रोग हो जाते हैं। स्नायु की कमजोरी जरूरत से ज्यादा स्नायविक शक्ति खर्च करने से होती है। अब अगर हम यह चाहते हैं कि हमें कोई रोग न हो तो हमें अपने शरीर को बराबर तनाव की अवस्था में न रखकर उसे नियम के मुताबिक विश्राम देना ही होगा। विश्राम के लिए दिए गए समय को भविष्य के शक्ति भंडारण की जमा पूंजी ही समझना चाहिए और यह गलत नहीं है कि दिमागी काम करने वाले शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों की अपेक्षा मेहनत करने के बाद आराम करने के महत्व को अधिक समझते हैं। कितने ही अभागे लोग तो ऐसे मिलेंगे कि जो रात और दिनभर मेहनत करके अपने स्वास्थ्य को बर्बाद कर लेते हैं। यहां यह बात भी ध्यान देने वाली है मनुष्य काम के बोझ से उतना नहीं दबता है, जितना कि वह अपनी परेशानियों से दब जाता है।
मेहनत करना और सही तरह से आराम करना भी एक तरह की कला होती है, जिसका पूरी तरह से मनुष्य को ज्ञान होना चाहिए। बहुत से लोग किसी भी काम को करते समय बीच-बीच में बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चिलम, तंबाकू आदि पीने लगते हैं या चाय-कॉफी पीकर अपनी थकान को दूर करने की कोशिश करते हैं। काम करने के दौरान ज्यादा थकान न हो इसके लिए यह जरूरी है कि हम चलने-फिरने, उठने-बैठने आदि में अपने शरीर के अवयवों को सही स्थिति में रखें। चलते समय गर्दन को झुकाकार चलना, खड़े होते समय सिर्फ एक पैर पर ही भार देकर खड़ा होना, बैठते समय एक पैर को दूसरे पैर पर रखकर बैठना तथा इसी तरह की दूसरी आदतों से बचना चाहिए जो शरीर को संतुलित होने में रुकावट पैदा करते हैं और शरीर में थकान भी जल्दी आती है। बिस्तर पर लेटे-लेटे किसी चीज के बारे में सोचना बहुत बुरी बात है। इससे व्यक्ति को नींद न आने का रोग हो जाता है। सुबह ताजी हवा खाने के लिए घूमने के समय मन में किसी उलझन को पाले रखने से सुबह की ताजी हवा का लाभ शरीर को नहीं मिल पाता है। इन दशाओं में तथा विश्राम की दूसरी दशाओं में भी जब हमारा मन अलग-अलग विचारों में मग्न रहता है तो उस समय हमारे खून का, शरीर की नसों में उछलना तो स्वाभाविक है। यह शरीर के लिए विश्राम नहीं बल्कि मेहनत ही होती है।
कोई भी व्यक्ति जब बीमार होता है तो उसका शरीर खुद ब खुद चाहता है कि उसको आराम मिले। इसलिए विश्राम के द्वारा ज्यादा से ज्यादा जीवनी शक्ति प्राप्त करें और उस शक्ति को शरीर को स्वस्थ रखने में लगाएं। अगर व्यक्ति को कोई नया रोग होता है तो उसे आराम की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं होती जितनी कि रोग के पुराने होने की दशा में होती है। पुराने रोगों की हालत में अगर रोगी को पूरी तरह से आराम नहीं दिया जाए तो उसका रोग शरीर में ही रम जाएगा और उसको दूर करने में बहुत ज्यादा समय लगता है। इसलिए पुराने रोगों के रोगियों की औषधि उनका पूरी तरह से विश्राम करना ही है।
सावधानी-
अगर किसी रोगी को रोगों से छुटकारा पाना है तो उसके लिए सबसे जरूरी है कि रोगी को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से विश्राम मिलें। सिर्फ पूरी तरह से आराम के जरिये किसी भी बड़े से बड़े रोग को दूर किया जा सकता है। जिन लोगों के मन में अपने रोग को लेकर हर समय चिन्ता, डर और चिड़चिड़ापन रहता है वे अपने रोग से छुटकारा नहीं पा सकते।
बहुत से लोग शायद इस बात को नहीं जानते कि दुनिया में जितने भी रोग हैं उनका कहीं न कहीं सम्बंध थकावट से जरूर है। जिस समय तक हमारा नाड़ी संस्थान ठीक तरीके से काम करता रहता है, तब तक हमारे शरीर के हर अंग में लचीलापन सा बना रहता है, जिससे पता चलता है कि हमारे शरीर के वे अंग बिल्कुल स्वस्थ अवस्था में काम कर रहे हैं। लेकिन जब उन अंगों में जहरीला पदार्थ जमा हो जाता है तो उनमें कठोरता आ जाती है, जिसके कारण नाड़ी संस्थान के काम में अपने आप ही रुकावट पैदा हो जाती है, इससे पता चलता है कि उन अंगों में कोई न कोई रोग है। इसलिए इन अंगों के लचीलेपन को जीवन कहते हैं और सख्तपन को मौत कहते हैं।
अगर शरीर के किसी अंग में कड़ापन आ जाए तो उसमें जरूर ही सूजन होगी और फिर उसमें दर्द और बुखार पैदा हो जाएगा। अगर सूजन आने पर उस अंग में खून का प्रवाह सही तरह से हो रहा हो, तो उस अंग के विश्राम और शिथिलीकरण द्वारा धीरे-धीरे वहां जमा जहरीला खून समाप्त हो जाता है। किसी अंग में कड़ापन आ जाने पर पता चलता है कि उस उस अंग में थकावट जरूर है। यह थकावट मानसिक और शारीरिक किसी भी तरह की हो सकती है जैसे- एक चिड़चिड़े व्यक्ति की भौंहे हमेशा ही ऊपर चढ़ी हुई रहती हैं, जिसके कारण आंख की मांसपेशियों में थकावट आ जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि व्यक्ति की आंखें कमजोर हो जाती हैं और किसी-किसी मामले में व्यक्ति अंधा भी हो सकता है।
बहुत से लोग होते हैं जो स्वस्थ होते हैं लेकिन आराम पूरी तरह से नहीं करते। ऐसे व्यक्ति कुछ दिनों के बाद अपने आप ही बीमार हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक नियम है। किसी भी रोग के होने पर जब व्यक्ति का मन किसी काम को करने का नहीं करता या करने के लायक नहीं रहता तो यह इसलिए होता है कि उस समय रोग की हालत में हमारा शरीर सिर्फ आराम करना चाहता है और कुछ नही।
विश्राम करने के सबसे आसान तरीके-
- जो व्यक्ति पूरे साल बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं उन्हें थोड़े दिनों की काम से छुट्टी लेकर किसी अच्छी और खूबसूरत जगह पर घूमने जरूर जाना चाहिए।
- व्यक्ति को पूरे दिन काम करके घर आने के बाद विश्राम करने के लिए चटाई या पलंग पर लेट जाना चाहिए और शरीर को पूरी तरह से ढीला छोड़ देना चाहिए। दिमाग से सारी बातें निकाल देनी चाहिए। फिर आंखों को बंद करके 10 से 15 मिनट तक इसी हालत में लेटे रहें। लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि सिर्फ आंखें बंद हो नींद न आने पाए।
- अपना काम समाप्त करने के बाद अपनी पंसद का कोई खेल खेलना चाहिए या पैदल ही घूमना चाहिए, नहीं तो अपनी पसंद की कोई किताब या कुछ भी पढ़ने के लिए ले लें।
- पूरे हफ्ते में 6 दिन तक काम करने के बाद एक दिन के लिए काम से छुट्टी जरूर लेनी चाहिए और उस दिन किसी खूबसूरत जगह पर घूमने जाना चाहिए।
जानकारी-
एक बहुत ही मशहूर चिकित्सक ने अपने शरीर की सारी मांसपेशियों को ऐच्छिक शिथिलीकरण करने का तरीका बताया है-
सबसे पहले चारपाई पर पीठ के बल बिल्कुल सीधे लेट जाएं। फिर धीरे-धीरे से अपने शरीर के किसी अंग जैसे- दाहिने हाथ की मांसपेशियों को सिकोड़ लें, इसके साथ ही उस सिकुड़न को उस समय तक महसूस करने की कोशिश करें जब तक कि वह सिकुड़न मिट न जाए और मांसपेशियां पूरी तरह से शिथिलीकरण न हो जाएं, ऐसे ही बाएं हाथ, दाएं पैर, बाएं पैर आदि शरीर के सारे अंगों की मांसपेशियों का शिथिलीकरण करना चाहिए। इस शिथिलीकरण को साधारण शिथिलीकरण कहा जाता है।
शरीर के दूसरे अंगों को सक्रिय बनाते हुए भी किसी एक अंग का पूरी तरह से शिथिलीकरण किया जा सकता है जैसे कोई व्यक्ति अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखकर बैठ सकता है और साथ ही शरीर के दूसरे अंगों को पूरी तरह से शिथिल भी बनाकर रख सकता है। इस शिथिलीकरण को स्थानीय शिथिलीकरण कहा जाता है।
एक चिकित्सक ने शरीर के स्नायुओं को ढीला करके इन्हें आराम करने की विधि इस तरह से लिखी है-
पहले पीठ के बल उल्टा लेट जाएं। फिर सिर, गर्दन और घुटनों के नीचे छोटे-छोटे नर्म से तकिये रख लें। अपनी बाजुओं को सहारा देने के लिए पीठ के नीचे भी तकिया भी रख लें। पहले बाजुओं को शिथिल करने के लिए उनको तकिए में घुस जाने दें। फिर मन में सोचें कि वे धीरे-धीरे भारी होते जा रहे हैं जब उंगलियों के आगे के भाग में कुछ चुभने जैसा महसूस हो जो समझिये कि बाजुओं को शिथिल करने की क्रिया पूरी हो गई। इसी तरह शरीर के दूसरे अंगों जैसे सीना, पीठ, पैर आदि को भी ढीला करने की कोशिश करें। जब तक पूरी तरह कामयाबी न मिल जाए तब तक इसे रोजाना लगभग आधे घंटे तक करते रहें। इससे स्नायु की थकावट दूर होकर स्वास्थ्य भी अच्छा हो जाता है। इस अभ्यास के पूरा हो जाने पर फिर कभी भी मौका मिले जैसे गाड़ी चलाते समय, टाइप करते समय कभी भी इसे किया जा सकता है। इस तरह से शरीर की थकावट मिट जाती है और काम करने की शक्ति और भी बढ़ जाती है।