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कटि स्नान

 

परिचय-

          कटि स्नान एक बहुत ही बहुत ही प्रभावी विधि है। इसे ठंडे न्यूटल और ऑल्टरनेट तापमान पर किया जाना सही रहता है जिससे हमारे शरीर को बहुत लाभ होता है। इस स्नान को करने में टब की आवश्यकता पड़ती है।

ठंडे पानी से धूप में नहाना-

सामग्री- कटि-स्नान टब, मोटा कपड़े का एक टुकड़ा।

पानी का तापमान- पानी का तापमान 18 से 24 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए।

नहाने की अवधि- जब तक कोई अवधि न बताई जाए तब तक 15 मिनट तक यह स्नान करें।

विधि-

          टब में इस मात्रा में ठंडा पानी लें जिसमें नितंब पूरी तरह डूब जाएं और रोगी के टब में बैठ जाने पर पानी उसकी नाभि तक आ जाए।

          वैसे इस स्नान में 4 से 6 गैलन पानी की आवश्यकता होती है। मरीज को ठंड लगने या मौसम ठंडा होने पर या उसके कमजोर होने की अवस्था में ठंडे पानी से धूप में नहाएं और साथ में पैरों को गर्म पानी से नहलाएं।

          अब रोगी को भीगे हुए कपडे़ से नाभि की तरफ पेट बांयी ओर से दायीं ओर को धीरे-धीरे रगड़ना चाहिए। यह विधि नहाने के पूरे समय तक जारी रखनी चाहिए। जरूरी है कि टांगे पैर और शरीर का ऊपरी भाग पूरी तरह सूखा लें अब नहाने के बाद अपने शरीर को भीगने न दें।

          रोगी को टब में बैठने से पहले जूते पहन लेने चाहिए। ठंडा कटि-स्नान करने के बाद रोगी को थोड़ा बहुत व्यायाम करना चाहिए जैसे तेजी से घूमना, योगासन, सूर्यनमस्कार आदि।

          अगर रोगी को ज्यादा कमजोरी हो तो उसे कंबल ओढ़ाकर लिटा देना चाहिए।

लाभकारी-

          कटि-स्नान को करने से शरीर की जितनी भी बीमारियां होती हैं वह सभी दूर होने में मदद मिलती है। इस विधि का मतलब कब्ज, बदहजमी, मोटापे से मुक्ति पाना है और इससे शरीर के अंगों को ठीक तरीके से काम करने में सहायता मिलती है। यह स्नान गर्भाशय से जुडे़ रोग, पेल्विक रीजन के अंगों में सूजन, बवासीर, जिगर और तिल्ली की सूजन, खून की कमी, छोटे बच्चों में पेशाब से जुड़ी अनियमितताओं, गर्भाशय से जुड़े पुराने रोग, पुर:स्थ ग्रंथि में खून की कमी, वीर्य दौर्बल्य, पुरुषों व औरतों में गुर्दे की कमजोरी, नामर्दी, बांझपन, पेट और कोलन के बढ़ जाने की स्थितियों में बहुत जरूरी है।

सावधानी-

          पेल्विक क्षेत्र और पेट के अंगों में सूजन और तंत्रिकाओं की कमजोरी और पेशाब, मलाशय या योनि में दर्द संकुचन, कमर के निचले हिस्से में दर्द होने पर और रजोधर्म का समय, उल्टियों, दस्त और बुखार में यह स्नान नहीं करना चाहिए।

न्यूट्रल कटि- स्नान-

सामग्री- सिर के लिए ठंडा लपेट और 1 कटि-स्नान टब।

पानी का तापमान- पानी का तापमान 32 से 36 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए।

समय- यह स्नान लगभग 15 मिनट तक करना चाहिए।

विधि- रोगी 1-2 गिलास पानी पीएं और टब में बैठकर पेट को फ्रिक्शन (घर्षण) से बचाएं। सिर पर ठंडा कपड़ा लपेट लें इसके बाद आधे घंटे तक आराम करें।

लाभकारी-

          न्यूट्रल कटि-स्नान पेशाब और पेशाब के रास्ते, गर्भाशय, डिंबाशय व नसों और अंडकोषों में तंत्रिकाओं की कमजोरी तथा योनि में उठने वाले दर्द, ऐंठन, गुदा और योनि में खुजली तथा पेट में हाइपरस्थीसिया की स्थिति से छुटकारा पाने में सहायता मिलती है। इससे व्यक्ति और महिलाओं दोनों में एरोटोमैनिया (कामोन्माद) शांत होता है। यह स्पर्मेटोरिया का अच्छा और सुगम इलाज है।

गर्म कटि-स्नान-

सामान- धूप में नहाना, टब और एक गीला तौलिया लपेट।

पानी का तापमान- पानी का तापमान 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए।

स्नान की समय- इस स्नान को 10 मिनट तक करना चाहिए।

विधि-

          इलाज करने से पहले मरीज को 1-2 गिलास ठंडा पानी पिलाना आवश्यक होता है। रोगी को 40 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी से नहाना चाहिए और पानी का तापमान धीरे-धीरे अच्छे स्तर तक बढ़ना चाहिए। गर्म या ठंडा पानी मिलाकर इसका तापमान एक जैसा रखना चाहिए। गर्म कटि-स्नान करते समय रोगी को पेट पर फ्रिक्शन नहीं कराना चाहिए। इलाज के समय उसके सिर पर ठंडा लपेट रखना चाहिए। फिर रोगी को 1-2 मिनट तक ठंडे पानी से नहाना चाहिए।

लाभकारी-

          गर्म कटि-स्नान करने से मासिकधर्म का देर से आना, पेल्विक क्षेत्र के रोग, पेशाब करते समय होने वाले दर्द, में लाभ मिलता है। यह पुरस्थ ग्रंथि के बढ़ जाने, पेशाब में दर्द ऐंठन या दर्द की लहर, शियाटिका, डिंबाशय और पेशाब की तंत्रिकाओं की कमजोरी इत्यादि के मामलों में भी असरदार होता है तथा मासिकधर्म आने के समय में यह स्नान नहीं करना चाहिए।

सावधानी-

  • हाई ब्लडप्रेशर होने पर, कमजोरी और बुखार की स्थिति में यह स्नान नहीं करना चाहिए।
  • ध्यान रखें कि मरीज को नहाने के बाद ठंड न लगने पाए क्योंकि इससे रोगी को उल्टा असर हो सकता है और स्नान के लाभ ही खत्म हो जाते हैं। अगर रोगी को उल्टी आए, कमजोरी लगे या ज्यादा दर्द हो तो इस स्नान को जल्दी बंद कर दें।

ऑल्टरनेटिव कटि-स्नान-

सामग्री- 2 कटि-स्नान बाथ टब और एक ठंडा लपेट।

पानी का तापमान- गर्म पानी 40-50 डिग्री सेल्सियस और ठंडा पानी 18 से 24 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।

विधि-

          इस स्नान को करने के 2 तरीके होते हैं। दोनों ही तरीकों में इलाज कराने से पहले रोगी को 1-2 गिलास पानी पिलाना चाहिए। सिर पर ठंडा लपेट रखकर इसे शीतल रखना चाहिए। इसके बाद में रोगी को ठंडा कटि-स्नान करना चाहिए। 

  • इस स्नान में सबसे पहले 5 मिनट तक गर्म पानी के टब में और इसके बाद 5 मिनट तक ठंडे पानी के टब में बैठता है। इससे पाचनतंत्र का पैरिस्टैल्टिक (क्रमाकुंचक) संचालन बढ़ता है और कब्ज तथा गैस से राहत मिलती है। इससे गुर्दे और जननांगों व पेशाब के रोगों की क्रियाशीलता भी बढ़ती है।
  • इस स्नान के दूसरे तरीके में रोगी को गर्म पानी के टब में 3 मिनट तक और ठंडे पानी के टब में 1 मिनट तक बैठाया जाता है। इस क्रिया को 4-5 बार करना होता है।

लाभकारी-

          इस स्नान को करने से गैस या कब्ज के कारण होने वाले पुराने दर्द से भी मुक्ति मिल जाती है। इससे लंबेर स्पोंडिलोसिस का दर्द भी खत्म हो जाता है। इस स्नान को करने से पेशाब से जुड़ी परेशानियों और गुर्दे की पथरी जैसे कई रोगों के इलाज में सहायता मिलती है। इससे पेल्विक रीजन के अवयवों सैल्फिन्जाइस, ओफैराइटिस और सेल्युराइटिस जैसे भागों में तंत्रिकाओं की कमजोरी की वजह से बहुत समय से बनी हुई सूजन दूर करने में, जननांगों के हाइपराएस्थीसिया, शिआटिका, लुम्बैगों, आदि के रोगों को दूर करने में सहायता मिलती है।

कोहनी का फ्रिक्शन सिट्ज स्नान-

सामग्री- कटि-स्नान टब, इस स्नान के लिए खास रूप से बनाया गया एक स्टूल और एक सूती कपड़ा।

पानी का तापमान- ठंडा पानी 18 से 24 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए।

स्नान की समय- इस स्नान को 2 से 20 मिनट तक करना चाहिए।   

विधि-

          सबसे पहले कटि-स्नान टब में स्टूल को रखा जाता है और इस टब में ठंडा पानी भर दिया जाता है। ध्यान रहे कि स्टूल का ऊपरी हिस्सा सूखा रहे। इसके बाद रोगी को स्टूल पर बैठा दिया जाता है लेकिन उसके पैर बाहर रहने चाहिए। अगर कोई स्त्री रोगी है तो उसे सूती कपड़े को पानी में भिगोकर हल्के-हल्के से अपने जननांगों को धोना चाहिए। ध्यान रहे कि जननांग ऊपर-ऊपर से ही धुलने चाहिए न कि अंदर से और अगर स्नान करने वाला कोई पुरुष हो तो उसे अपने लिंग की ऊपरी त्वचा को ठंडे पानी से धोना चाहिए।

          इस स्नान के बाद हल्का व्यायाम करें ताकि शरीर में कुछ गर्माहट आ जाए।

लाभकारी-

          इस इलाज से तंत्रिका प्रणाली क्रियाशील हो जाती है क्योंकि जननांगों को केन्द्रीय तंत्रिका प्रणाली का एक जरूरी केन्द्र समझा जाता है। अवसामान्य तापमानों में इस स्नान से शरीर में जरूरी गर्मी पैदा होती है। और यह शरीर की अंदर की गंदगी को दूर करता है।


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