खुली आंखों से सूर्य स्नान करना स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक लाभकारी होता है। परन्तु यह स्नान उन्हीं लोगों को करना चाहिए जिनकी आंखे पूर्ण रूप से स्वस्थ हो अथवा उन लोगों को करना चाहिए जिन्होंने आंखों को बंद करके सूर्य का स्नान किया हो तथा जिन लोगों को चकाचौंध से कष्ट न होता हो। यदि आंखों में किसी भी प्रकार का विकार हो तो सूर्य स्नान नहीं करना चाहिए। खुली आंखों से सूर्य स्नान सुबह के समय अथवा शाम के समय ही करना चाहिए क्योंकि इस समय सूर्य की लालिमा कम और धूप की तेजी नहीं रहती है। खुली आंखों से सूर्य स्नान हेतु हमें आराम से बैठ जाना चाहिए। इसके बाद आंखों से नीचे पृथ्वी की ओर देखते हैं और फिर आंखों को ऊपर की ओर इस तरह से उठाना चाहिए कि पलकें ऊपर की ओर न उठे, केवल ठोड़ी ही ऊंची होती है तथा सिर पीछे की ओर झुकता जाता है। हमें ठोड़ी को इतना उठाना चाहिए कि आंखे सूर्य के समान्तर हो जाए। इस दौरान आंखों की पलकों को धीरे-धीरे झपकाते रहना चाहिए। इसके बाद घड़ी की सुई की भान्ति आंखों को हल्का-हल्का हिलाना चाहिए। आंखों को हिलाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे सामने की प्रत्येक वस्तु चलती हुई प्रतीत हो। हिलते हुए जब हम बायीं ओर को घूमते हैं तो दाहिनी ओर की वस्तुएं हिलते हुए दिखाई देनी चाहिए तथा दाहिनी ओर हिलते समय बायीं ओर की वस्तुएं हिलती हुई दिखाई पड़ती हैं।
इस प्रकार एकाग्रचित होकर सूर्य स्नान करने से आंखों से सूर्य भी दिखाई देता रहता है और सूर्य के प्रकाश से आंखों को भी किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है। इस स्नान को करते समय एकटक (लगातार) सूर्य की ओर नहीं देखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से सूर्यान्ध रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। सूर्य स्नान के समय बीच-बीच में आंखों को लगभग 1-2 मिनट के लिए बंद कर लेना चाहिए। नियमित रूप से कुछ दिनों तक सूर्य स्नान करने से आंखों की शक्ति और क्षमता बढ़ जाती है और चेहरे से तेज झलकने लगता है।
खुली आंखों से सफल सूर्य-स्नान की विशेषता है कि इस स्नान को करने से आंखों के सामने धुंधलापन नहीं आता है तथा आंखों की रोशनी साफ रहती है। यदि खुली आंखों से सूर्य स्नान के बाद आंखों में धुंधलापन आ जाए तो लगभग 5 मिनट तक आंखों को हथेलियों से ढके रहना चाहिए। इस सूर्य स्नान को करते समय ध्यान सूर्य में अपने आराध्य ईश्वर को देखा जा सकता है अथवा उनको देखने का प्रयास कर सकते हैं। कुछ दिनों तक लगातार यह स्नान करने से हमें स्पष्ट दिखाई पड़ने लगता है। इसके साथ ही हमारे हृदय में विद्यमान सूर्य चक्र जागृत हो जाता है और हृदय के स्थान का सूर्य भी चमकने लगता है। इसकी चमक धीरे-धीरे बढ़ती रहती है। इससे सूर्य की किरणें निकलेंगी और इसके बाद सूर्य में भी ईश्वर का स्वरूप दिखाई देगा। इस दौरान हमें अद्भुत आनन्द की प्राप्ति होगी और हृदय को आश्चर्यजनक आनन्द मिलेगा होता है तथा शरीर और मन दोनों ही पवित्र हो जाएंगे। इस प्रकार ध्यानमय होकर सूर्य स्नान करने से हमारे शरीर की मानसिक शक्तियां विकसित होती हैं। विभिन्न प्रकार के शारीरिक विकार नष्ट हो जाते हैं और मन को अधिक शांति मिलती है।