गुनगुने (हल्के गर्म) पानी के जल स्नान को `निमज्जनस्नान` के नाम से जाना जाता है। यह स्नान 55 डिग्री फारेनहाइट से 90 डिग्री फारनेहाइट के जल में लगभग 5 से 10 मिनट तक किया जाता है। यदि इसके स्नान के साथ शरीर को रगड़ते भी रहें तो यह स्नान कई घंटों तक किया जा सकता है। इस स्नान से तेज बुखार, फेफड़ों के विकार, सन्निपातिक मन्थर और टायफाइड बुखार में शरीर में गर्मी का बढ़ना दूर होता है। ऐसी स्थिति में जैसे ही रोगी व्यक्ति के शरीर का तापमान लगभग 101 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर पहुंचे, उसे शीघ्र ही यह स्नान कराना चाहिए। स्नान प्रारम्भ करते ही शरीर का तापमान कम होने लगता है जब तक स्नान करते रहते हैं तब तक शरीर का तापमान बढ़ नहीं पाता है। रोगों की तीव्रता की स्थिति में आवश्यकता पड़ने पर इस स्नान को लगातार किया जा सकता है। इस स्नान को करते समय रोगी के सिर को सदैव ठंडे पानी से भीगे हुए तौलिये से बांध देना चाहिए तथा तौलिये के सूखने पर उसे बार-बार ठंडे पानी से भिगोते रहना चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति को यह स्नान 15 से 20 घंटे तक देना हो तो स्नान टब के ऊपर एक चादर इस प्रकार से टांगते हैं जिससे रोगी उससे पूरी तरह से ढक जाए। इस स्नान की प्रतिक्रिया शरीर की रगड़ पर ही निर्भर है। यह स्नान बड़ी ही सावधानीपूर्वक करना चाहिए। असावधानीपूर्वक स्नान करने पर रोगी व्यक्ति के शरीर में ठंड लगने की संभावना बनी रहती है। इस स्नान में जल के तापमान को शरीर के तापमान के बराबर कर लिया जाता है। इसे गर्म जल स्नान की तरह ही करते हैं। इस स्नान के बाद शरीर को ठंडे जल से धोने की आवश्यकता नहीं होती है।
जानकारी-
इस स्नान को करने से शारीरिक थकान दूर हो जाती है।