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सौरमण्डल और सूर्य

  सूर्य समस्त सौर मण्डल में सबसे अधिक प्रकाशपूर्ण और आकार में सबसे अधिक बड़ा होता है। ऋग्वेद में सूर्य की तुलना सृष्टि के पालन कर्त्ता विष्णु भगवान से की गई है। सूर्य को विश्वात्मा कहा जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार- सूर्य के आस-पास के समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं।

          पुराणों में जो सप्तऋषियों के बारे में उल्लेख मिलता है, वह सूर्य भगवान की किरणों के ही सात रंग हैं। सातों रंगों के एकत्र होने से सफेद रंग बनता है। इसी कारण से सूर्य की किरणें सफेद रंग की दिखाई देती हैं। स्वयं सूर्य का रंग पारे के समान सफेद होता है।

सौरमण्डल में नौ ग्रह होते हैं जिनका वर्णन नीचे दिया जा रहा है।

  1. बुध : बुध ग्रह हरे रंग का और नपुंसक होता है।
  2. सूर्य: सौरमण्डल के सारे ग्रहों में सूर्य पारे के समान सफेद होता है। इसके प्रकाश में सात रंगों का मिश्रण होता है तथा इसके प्रकाश में ऊष्मा होती है।
  3. चन्द्रमा : चन्द्रमा चांदी के समान रुपहला होता है तथा यह शीतलता प्रदान करता है।
  4. मंगल : सौरमण्डल में स्थित मंगल ग्रह तांबे के समान लाल होता है। यह गर्म होता है।
  5. ब्रहस्पति : ब्रहस्पति ग्रह सोने के समान सुनहरे रंग का होता है तथा यह मोटापा युक्त होता है।
  6. शुक्र : सारे ग्रहों में शुक्र ग्रह नीले रंग का होता है तथा यह शक्तिवर्द्धक होता है।
  7. शनि : शनि ग्रह आसमानी और गहरे नीले रंग का होता है।
  8. राहु : यह हमारी पृथ्वी है। इसका रंग काला होता है। यही कारण है कि पृथ्वी में दूसरे प्रकाशमान ग्रहों से प्रकाशित करने की शक्ति होती है।
  9. केतु :  केतु हमारी पृथ्वी की छाया होती है इसका रंग हल्का आसमानी होता है।

         उपयुर्क्त सभी ग्रह, सूर्य के चारों ओर घूमते हुए उससे अपने-अपने रंग प्राप्त करते हैं। जब इन ग्रहों की रंगीन किरणें सीधी या तिरछी होकर सूर्य की किरणों से टकराकर पृथ्वी पर आती है तब सूर्य राशियों में इन ग्रहों की अतिरिक्त रंगीन किरणों के बढ़ जाने से पृथ्वी अथवा उस पर रहने वाले प्राणियों पर किसी ग्रहविशेष के अतिरिक्त रंगीन किरणों का विशेष प्रभाव पड़ता है जिसके कारण लोगों को सुख और दु:ख का अनुभव होता है। लाल, हरा, सुनहरा या पीला, आसमानी, गहरा नीला, काला तथा हल्का नीला रंगों का मिश्रण सफेद रंग में परिवर्तित हो जाता है। सूर्य के चारों तरफ अन्य सभी ग्रह चक्कर लगाते रहते हैं, जिनकी किरणें भिन्न-भिन्न रंगों में फैलती हैं, किन्तु ग्रहों की गति में विभिन्नता होने के कारण, प्रत्येक ग्रह की रंगीन किरणें एक स्थान पर बहुत समय तक नहीं टिकती हैं। अत: सभी ग्रह आवश्यकतानुसार रंग के वीर्य को लेकर शेष चन्द्रमा ग्रह को दे देते हैं परन्तु जिस समय ग्रहों की किरणों की गति सीधी अथवा तिरछी होती है, उस समय वे किरणें- सूर्य की किरणों को छेदकर पृथ्वी पर गिरती हैं जो पृथ्वी पर गिरने वाली सूर्य की किरणों से मिलकर विभिन्न प्रकार के परिणाम उत्पन्न करती हैं, अर्थात उनका प्रभाव उनकी किरणों के अनुसार ही पृथ्वी के पदार्थों पर पड़ता है। सूर्य की किरणों के पृथ्वी तक आने में जब किसी भी प्रकार की अड़चन पड़ती है तब संसार में विभिन्न प्रकार की उथल-पुथल होने की संभावना हो जाती है। जैसे- सूर्य के प्रकाश के पृथ्वी पर आते समय उसकी किरणों के मार्ग में यदि मंगल ग्रह आ जाता है तो पृथ्वी पर लाल किरणें पड़ती हैं। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी के उस भाग में रहने वाले प्राणी गर्मी से उत्पन्न होने वाले रोगों जैसे हैजा, चेचक तथा बेहोशी आदि से ग्रस्त हो जाते हैं अर्थात उस स्थान पर महामारी फैल जाती है। इसी सिद्धांत के अनुसार- जब किसी समय सूर्य की लाल किरणें अधिक मात्रा में एक ही स्थान पर एकत्र हो जाती हैं तो भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाएं आती हैं और मिट्टी, क्षार, कोयला आदि परमाणु आदि वायु के साथ उड़ते हुए किसी ग्रह अथवा दो विभिन्न ग्रहों के पास पहुंच जाते हैं। ये वस्तुएं सूर्य की किरणों को पूरी तरह से पृथ्वी पर पहुंचने नहीं देती हैं जिसके कारण अकाल पड़ता है। अधिक वर्षा होती है तथा संक्रामक रोगों को उत्पन्न करने वाले विभिन्न प्रकार के कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं।

         हमारी पृथ्वी में जितने भी चेतन अथवा जड़ हैं उन सभी को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शक्ति सूर्य द्वारा ही प्राप्त होती हैं। जिन वस्तुओं पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, वे उन पर लाभकारी प्रभाव डालती हैं और जिन पर नहीं पड़ती हैं उनके लिए लाभकारी नहीं होती हैं। हमारे खेतों में जो भी शाक-सब्जियां धूप में पैदा होती हैं, वह अंधकार में पैदा होने वाली शाक-सब्जियां की अपेक्षा अधिक गुणकारी होती है। इसी प्रकार जो गाय या भैंसे धूप में जाकर घास नहीं चरती है, उनका दूध भी लाभकारी नहीं होता है।


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