परिचय-
वाष्प स्नान को भाप स्नान भी कहते हैं। इस स्नान से अनेक प्रकार के शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं। भाप स्नान से शरीर का तापमान बना रहता है और खून का संचार पूरे शरीर में सही रूप से होता रहता है। वाष्प स्नान लगभग सभी देशों में किया जाता है। रोगी कमजोर हो तो यह स्नान करने में कठिनाई हो सकती है। परन्तु यदि रोगी शक्तिशाली हो तो बैठकर वाष्प स्नान करके रोग में जल्द लाभ प्राप्त कर सकता है। यदि रोगी कमजोर हो तो उसे भाप स्नान चारपाई पर लिटाकर भी दिया जा सकता है। इस स्नान के लिए पहले रस्सी से बुनी खाट का प्रयोग किया जाता है। इस खाट पर रोगी को लिटाकर एक बर्तन में पानी को उबालकर बर्तन को खाट के नीचे रख देते हैं और बर्तन को ढक देते हैं। इसके बाद रोगी को 2-3 कम्बल से ढक दिया जाता है। कम्बल की लम्बाई और चौड़ाई इतनी होनी चाहिए कि वह रोगी समेत पूरे खाट को अच्छी तरह से ढक दें, ताकि बाहर की हवा खाट के अन्दर न जा सके। अब आवश्यकतानुसार रोगी को सहन करने योग्य भाप देने के लिए बर्तन से थाली को धीरे-धीरे हटाएं। भाप स्नान अधिक गर्म हो इसलिए पानी से निकलने वाली भाप का तापमान 120 से 150 फारेनहाइट तक होना चाहिए। इस प्रकार जब वाष्प स्नान से शरीर अधिक गर्म हो जाए तो शरीर की स्वाभाविक ठंडी ग्रहण करने की शक्ति रुक जाती है और जब शरीर का तापमान 105 फारेनहाइट तक रह जाता है, तब गर्मी की इस वृद्धि के कारण चमड़ी पर रक्तवाहिनी और स्वेदवाहिनी नलियों द्वारा एक विशेष प्रभाव पड़ने पर अंग-प्रत्यंग जैसे- हाथ-पैर, गर्दन और छाती को आसानी से भाप स्नान कराया जा सकता है। रूस में भाप स्नान का एक तरीका यह है कि पहले रोगी को तेज, गर्म भाप का स्नान कराते हैं, फिर उसके बाद तुरन्त बाद ठंडे पानी का स्नान कराते हैं।
वाष्प स्नान के अन्य प्रयोग-
यदि बलगम अधिक बनता हो और गले में खराश वाला दर्द हो तो केतली में पानी को उबालकर गले तथा नाक तक भाप देनी चाहिए। केतली की चोंच के मुंह पर रबड़ या लकड़ी की नली लगाकर भी नाक और गले को भाप दी जा सकती है।
- भाप स्नान के समय यह बात ध्यान में रखें कि भाप का तापमान उतना होना चाहिए जिसे रोगी व्यक्ति आसानी से सह सके।
- भाप स्नान के बाद रोगी को 15 मिनट तक कटि स्नान लेना चाहिए और अपने शरीर के विभिन्न अंगों को अच्छी तरह रगड़कर धोना चाहिए।
- कटि स्नान के बाद कोई हल्का व्यायाम करना चाहिए। इससे शरीर गर्म हो जाता है और रोग में जल्द लाभ मिलता है।