परिचय-
किसी बहुत बड़े डाक्टर ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि आज जो डाक्टरों और दवाइयों की प्रणाली मशहूर है वह थोड़े समय के बाद मध्ययुगीन सभ्यता का सिर्फ निशान ही समझी जाएगी क्योंकि आने वाले भविष्य में यह व्यवस्था मानी जाएगी कि लोगों को जो भोजन करना चाहिए उसमें 50 प्रतिशत फल, 35 प्रतिशत साग-सब्जी और 15 प्रतिशत अन्न होना चाहिए। इस तरह के भोजन से आने वाले समय में हर तरह के रोगों से लड़ा जा सकेगा। वैसे भी किसी ने कहा है कि बहुत से लोग कड़वी दवाइयों में अपने रोगों को दूर करने का रास्ता ढूंढते हैं जबकि किसी भी व्यक्ति के कोई से भी रोग को सिर्फ फलों से ही दूर किया जा सकता है।
कुदरत ने फलों के रूप में मनुष्य को ऐसी दवाएं दी हैं जो खाने में तो स्वादिष्ट हैं और साथ में ये रोगों को भी दूर करने में पूरी तरह से उपयोगी हैं। अगर किसी समझदार प्राकृतिक चिकित्सक की देख-रेख में फलाहार चिकित्सा की जाए तो किसी भी बड़े से बड़े रोग को बहुत आसानी से और कुछ ही समय में दूर किया जा सकता है।
चिकित्सा-
- गुर्दे और जिगर के रोगों में रोगी को काफी सारा अंगूर और संतरे का रस पिलाना लाभदायक होता है।
- कमर के दर्द के रोगियों को सिर्फ नारंगी का रस पिलाकर ही ठीक किया जा सकता है।
- स्नायु रोगियों और चमड़ी के रोगियों के लिए रोजाना फल खाना बहुत ही अच्छा है। एक चिकित्सक ने कहा है कि कैंसर जिसका इलाज बहुत ही कम सफल हो पाता है उसी भयंकर रोग में सिर्फ ताजे फल खिलाकर ही रोगी को ठीक किया जा सकता है। कैंसर के रोगियों को सिर्फ फल और फलों के रस पर ही रखा जाता है और उन्हें बिल्कुल भी पानी नहीं पिलाया जाता। अगर अन्न और नमक को छोड़कर सिर्फ फल ही रोगी को खिलाएं तो ऊपर से पानी पिलाने की जरूरत ही नहीं रह जाती है।
- मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी को तो रोग में सिर्फ फलों की मिठास के अलावा और किसी भी तरह की मिठास हजम ही नहीं होती है।
- किसी व्यक्ति को बुखार होने पर अंगूर और अनार का रस पिलाना काफी लाभकारी होता है। टाइफाइड के बुखार में फलों का रस पीने से बहुत लाभ होता है।
- खून की कमी होने पर गाजर, टमाटर और नींबू का रस बहुत उपयोगी है क्योंकि इन फलों के रस के अन्दर खून में लाल कणों को बढ़ाने की बहुत ज्यादा ताकत होती है। अंगूर में भी यही गुण पाया जाता है। शरीर के अन्दर खून प्राकृतिक लोहे (आयरन) से बनता है। इसलिए शरीर में खून बढ़ाने के लिए किशमिश, टमाटर, खजूर, छुहारा, मुनक्का, मकोय आदि लौहतत्व (आयरन) वाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
- गठिया के रोग में शरीफा बहुत लाभकारी फल होता है। बार-बार पेशाब आना और सूखारोग टमाटर के सेवन से दूर हो जाते हैं। खून की खराबी से पैदा हुए त्वचा के सारे रोगों के लिए गाजर और कागजी नींबू लाभकारी औषधि है।
- जिगर के रोग और कब्ज को किशमिश खाकर ठीक किया जा सकता है। इसके लिए रात को सोते समय किशमिश को पानी में भिगो देना चाहिए और सुबह उठने के बाद इसके रस को पी लेना चाहिए।
- आम, खरबूजे आदि को खाने से कमजोर व्यक्ति भी हष्ट-पुष्ट हो जाते हैं। इसमे आम के साथ दूध पीना बहुत ही फायदेमंद है।
- पायरिया या दांतों के रोग शरीर में चूने की कमी हो जाने के कारण हो जाते हैं। इसके लिए संतरा, कटहल आदि को सेवन करके इन रोगों को दूर किया जा सकता है।
- चेहरे के मुहांसे और दाग-धब्बे दूर करने के लिए नींबू के रस को चेहरे पर लगाने से लाभ होता है। टांसिल होने पर अनन्नास और नींबू का रस बहुत ही ज्यादा गुणकारी है।
- पुराने रोगों में फलाहार चिकित्सा से बहुत ज्यादा सफलता मिलती है। 100 में से 90 पुराने रोग के रोगी तो फलाहार चिकित्सा से ही अच्छे हो जाते हैं। इसके लिए धीरे-धीरे अन्न को खाना छोड़कर पहले 3-4 दिन सिर्फ फलों का रस ही पीना चाहिए। इन दिनों में सुबह और शाम एनिमा जरूर लेना चाहिए। अगर शरीर मे कुछ कमजोरी लगे तो उसे स्वाभाविक समझकर बर्दाश्त कर लेना चाहिए। इसके बाद अपनी ताकत के मुताबिक 5-10 दिनों तक दिन में सिर्फ 3 बार फल खाकर रहना चाहिए। इन दिनों में भी रोजाना 1 बार एनिमा जरूर लेते रहना चाहिए। फिर 10 दिन तक सिर्फ फल और दूध पर ही रहना चाहिए। इसके लिए गाय का ताजा निकाला हुआ दूध ही पीना चाहिए। हर बार फल खाने के बाद लगभग 250 मिलीलीटर दूध पीना जरूरी होता है। इस दूध में चीनी आदि बिल्कुल भी नहीं मिलानी चाहिए। अगर फलाहार चिकित्सा के लिए ताजे फल न मिले तो उसके स्थान पर पानी में भिगोई हुई किशमिश और उसका रस ही काम में लाना चाहिए। किशमिश को अगर 7-8 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें तो उसका रस पानी में खिंच जाता है और किशमिश भी फूलकर अंगूर का स्वाद देने लगती है। दूध और भोजन के सेवनकाल के दौरान एनिमा लेना छोड़ा जा सकता है। फल और दूध से अगर रोगी की सेहत पर सही असर न पड़े तो उसे फल और मट्ठा भी दिया जा सकता है। फल, दूध और मट्ठा का भोजन खत्म होने के बाद सुबह और शाम फल और दूध तथा दोपहर में रोटी और सब्जी खानी चाहिए।
जानकारी-
फलाहार चिकित्सा करने के लिए रोगी को जो फल दिए जाएं वे बिल्कुल ताजे और पके हुए होने चाहिए तथा जो फल रोगी की हालत और रोग के हिसाब से उपयोगी हो वही फल देने चाहिए।