स्वास्थ्य से सम्बंधित नियमों का पालन तथा किसी भी काम में अति न करना प्राकृतिक चिकित्सा का मुख्य सिद्धांत होता है। कहने को तो यह बहुत ही साधारण सी बात लगती है। परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। प्रकृति के नियमों को तोड़ने से बीमारियां पैदा होती हैं जबकि प्रकृति के नियमों का पालन करने से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा होती है। प्रकृति के नियमों का पालन करने के लिए आवश्यक होता है कि हमें प्राकृतिक चिकित्सा के महत्वपूर्ण सिद्धांतों के बारे में जानकारी हो जो निम्नलिखित है-
1. किसी भी रोगों से छुटकारा पाने की शक्ति हमारे शरीर के अंदर ही उपस्थिति होती है। बशर्ते उसका सही तरह से उपयोग किया जा सके।
2. शरीर का बीमारियों से ग्रस्त होने का प्रमुख कारण रक्त का दूषित होना होता है।
3. रोगी के शरीर और मन दोनों का उपचार एक साथ ही करना चाहिए।
4. बिना सफाई के चिकित्सा नहीं हो पाती है।
5. रोगी को अपना उपचार स्वयं करना चाहिए क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के लिए स्वयं उत्तरदायी होता है।
रोगी के रोग से ठीक होने की आंतरिक शक्ति :
प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति हमेशा स्वस्थ रहता है। हमारे शरीर की प्राणशक्ति के प्रवाह से हमारा जीवन पृथ्वी पर व्याप्त वातावरण के अनुसार ढल जाता है। यह प्राणशक्ति मानव शरीर और वातावरण में लय उत्पन्न करती है।
यदि हमारे शरीर की जीवनी शक्ति अपने आपको वातावरण के अनुरूप नहीं ढाल पाती, या गलत ढंग से ढालती है, तो शरीर अस्वस्थ होकर किसी रोग से ग्रस्त हो जाता है। शरीर को प्रकृति के नियमों के अनुरूप चलाने के लिए एक निश्चित मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। किसी भी दवा का सेवन करने से यह ऊर्जा नहीं आती है। स्वरक्षित प्राणशक्ति ही सभी रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करती है। शरीर के अंगों तथा सेलों की स्वरक्षित शक्ति शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देती है।
संरक्षक सेल (कोशिका) :
कभी-कभी किसी लड़के को चोट आदि लग जाने पर तथा घाव आदि हो जाने पर वह दवा का सेवन करने से इंकार कर देता है तथा घाव का उपचार भी नहीं करता है। आश्चर्य की बात है कि कुछ ही दिनों में उसका घाव भी ठीक हो जाता है। कच्चे घाव के पास में सेल्स अपेक्षाकृत बहुत तेजी से बढ़ते हैं तथा धीरे-धीरे नई त्वचा से घाव भर जाता है..............