JK healthworld logo icon with JK letters and red border

indianayurved.com

Makes You Healthy

Free for everyone — complete solutions and detailed information for all health-related issues are available

भ्रमणासन

परिचय-

          भ्रमणासन `मत्स्येन्द्रासन´ से मिलता जुलता आसन है। भ्रमणासन के बाद `शवासन´ की स्थिति में लेटना तथा गहरी सांस लेना और छोड़ना लाभकारी होता है। इस आसन के अभ्यास की 3 स्थितियां हैं। इस आसन का अभ्यास स्वच्छ वातावरण में नीचे दरी या चटाई बिछाकर करें।

भ्रमणासन की 3 स्थितियां और विधि :

पहली स्थिति-

          ऊपर बताए हुए स्थान पर दरी बिछाकर दोनों पैरों को सामने सीधा फैला लें। बाएं पैर को बिल्कुल सीधा रखें और दाएं पैर को घुटनों से मोड़कर बाएं पैर के घुटनों के पास बाईं तरफ फर्श पर रखें। फिर दाएं हाथ को कमर के पीछे से घुमाकर कमर की दाईं ओर जितना सम्भव हो खींचें और बाएं हाथ की हथेली को दाएं पैर के पंजों पर टिकाकर रखें। इसके बाद गहरी सांस लेते हुए सिर, कन्धे व पीठ को दायीं ओर घुमाएं। अब जितनी देर श्वास को रोक सकना सम्भव हो रोककर रखें, फिर सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे सिर, कंधे व पीठ को पुन: सामान्य स्थिति में ले आएं। इस तरह इस क्रिया को 2 से 3 बार करें और फिर इस क्रिया को पैरों व हाथों की स्थिति बदल कर करें। इस क्रिया को दोनो पैरो से बदल-बदलकर 3-3 बार करें। सांस को रोकने की स्थिति में 5 सैकेंड की वृद्धि करते हुए 3 से 6 मिनट तक ले जाएं। इस आसन में अधिक देर तक रहने के लिए गहरी श्वास लेते रहना आवश्यक है। आसन को खोलते समय सांस को बाहर छोड़कर सामान्य रूप से सांस लें।

दूसरी स्थिति- 

          पहले भ्रमणासन की पहली स्थिति का अभ्यास करने के बाद अपने दोनों पैरों को फैलाए रखें। इसके बाद दाएं पैर को घुटनों से मोड़कर बाएं घुटने के पास फर्श पर रखें और बाएं पैर के घुटने को मोड़कर एड़ी को नितम्ब (हिप्प) से सटाकर रखें। दाएं हाथ को कमर के पीछे से घुमाकर बायीं ओर लाएं व हथेली को खुला रखें। बाएं हाथ को पहले की तरह दाएं पंजो के पास रखें। अब गहरी सांस लेते हुए सिर, गर्दन व छाती को धीरे-धीरे दाएं ओर घुमाते हुए ठोड़ी और कंधें की सीध में ले आएं। इस स्थिति में 10 सैकेंड तक रहें, फिर धीरे-धीरे सिर, कंधों व छाती को सीधा कर लें। इस अभ्यास को फिर करें और सामान्य स्थिति में आने के बाद सांस सामान्य रूप से लें। इस क्रिया को दोनो पैरो की स्थिति बदल-बदल कर करना चाहिए।

तीसरी स्थिति-

          यह आसन दूसरी भ्रमणासन की तरह ही होती है। इसमें केवल बांहों की स्थिति में परिवर्तन किया जाता है। इसके अभ्यास के लिए भ्रमणासन की दूसरी स्थिति में आएं। फिर बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाएं पैर के घुटने के पास रखें। दाएं पैर को घुटने से मोड़कर बायीं ओर नितम्ब (हिप्प) से सटाकर रखें।  बाएं हाथ को दाएं पैर के पंजो के पास रखें तथा दाएं हाथ को कमर के पीछे से घुमाकर बाईं ओर लाएं। इसके बाद गहरी सांस लेकर और सांस को छोड़ते हुए धीरे-धीरे सिर, कंधों व छाती को बाईं ओर घुमा लें। इस क्रिया को 2 से 3 बार करें। फिर पैरों व हाथों की स्थिति बदल कर यही क्रिया बाईं ओर से भी करें।

विशेष-

          अगर आप का हाथ पंजों तक न पहुंच सके तो जहां तक पहुंच सके वहां तक ले जाएं। आसन के अभ्यास के प्रारम्भ में अपने पंजों में चारों ओर एक पट्टी लपेटकर उसे पकड़ने की कोशिश कर सकते हैं। पहले इस आसन को करने में कठिनाई होती है, परंतु कुछ दिनों के अभ्यास से इस आसन को आराम से कर सकते हैं।

इस आसन से लाभ-

          यह आसन मेरूदंड (रीढ़ की हड्डी) तथा आन्तरिक स्नायु (नर्वस सिस्टम) को लचीला और मजबूत बनाकर उसमें सुधार लाता है। यह आर्डीनल ग्रंथियों पर प्रभाव डालता है, जिससे यकृत (जिगर), प्लीहा और गुर्दें ठीक रहते हैं। इसके अभ्यास से झुके कंधे, झुकी पीठ और गलत बैठने से होने वाले दर्द आदि खत्म होते हैं। यह आसन कब्ज, अजीर्ण व आलस्य को दूर करता है और ये दमा के रोगियों के लिए भी लाभकारी है।


Copyright All Right Reserved 2025, indianayurved