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योग चिकित्सा

आसन और उनमें रोगों को दूर करने की शक्ति-

          योग के गुरुओं के मुताबिक लम्बे समय तक आराम से एक ही स्थिति में बैठने आदि का अभ्यास करना `आसन´ कहलाता है। योग के आसन भी एक तरह के व्यायाम की तरह ही होते हैं। लेकिन दूसरे शारीरिक व्यायामों की अपेक्षा ये पूरी तरह से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित हैं। जिनको हमारे भारतीय महर्षियों ने मनुष्य जाति भलाई के लिए हजारों वर्षो की खोजबीन और प्रयोगों के बाद हम तक पहुंचाया है। इन योगासनों को अक्सर रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। वैसे तो ये आसन हर तरह की अवस्था में लाभ करते हैं और बच्चे से लेकर बूढ़ों तक इन आसनों को करके लाभ उठा सकते हैं। लेकिन फिर भी अगर 9 साल की उम्र से कम बच्चे इन आसनों को न करें तो ज्यादा अच्छा है। क्योंकि बच्चों के शारीरिक अंग उस समय तक पूरी तरह से बढ़ नहीं पाते और इसके साथ ही वह बहुत ज्यादा नाजुक होते हैं।

          आसनों के द्वारा कोई भी पुराने से पुराना रोग दूर हो सकता है। इसके बाद भी अगर इन आसनों को दूसरे योगासनों के साथ तरीके से किया जाए तो कोई भी व्यक्ति काफी लंबी उम्र तक अच्छे स्वास्थ्य के साथ जी सकता है। क्योंकि किसी भी व्यक्ति को रोगी बनाने या जल्दी मृत्यु को प्राप्त करने वाले शरीर में जो मल और जहर होते हैं वे इन आसनों के असर से समाप्त हो जाते हैं और योगासन करने वाले की काया सुंदर और आकर्षक बन जाती है।

लाभकारी-

1. योगासनों को नियमित रूप से करने से रीढ़ और रीढ़ की हडि्डयां जोकि पूरे शरीर के सारे ज्ञान तंतुओं के काम करने के तरीकों पर काबू रखती है, लचीली बन जाती हैं और टेढ़ी-मेढ़ी नहीं होती। जिसके नतीजतन योगासन करने वाला व्यक्ति पर जल्दी बुढ़ापा नहीं आता।

2. आसनों को करने से शरीर के अंदर की ग्रंथियां खराब पदार्थों और जहर को बाहर निकालकर अपना काम बहुत ही अच्छे तरीके से करने लगती है जिससे उनकी रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ जाती है।

3. योगासन को करने से शरीर की खून को चलाने वाली नलियां सख्त नही होती जिससे दिल को ताकत मिलती है ओर जिसके कारण उनका काम बिना किसी रुकावट के चलता रहता है।

4. आसनों को करने से फेफड़ों को बल मिलता है, सांस सही तरीके से चलने लगती है, खून साफ होता है, मन में चंचलता आती है और मनुष्य की सोचने की ताकत बढ़ जाती है।

5. आसनों को रोजाना करने से शरीर की मांसपेशियों को ताकत मिलती है। आसनों को करने से कमजोर व्यक्ति हष्ट-पुष्ट और मोटे व्यक्ति पतले और चुस्त-दुरुस्त हो जाते हैं।

6. आसन करने से मेरूदण्ड में मौजूद कुण्डलिनी शक्ति को जगाने में मदद मिलती है, जिसकी वजह से दिमाग तरोताजा रहता है और सही तरह से काम करता है।

7. आसनों से भोजन पचाने की क्रिया मजबूत हो जाती है और पेट भी साफ रहता है।

8. आसन शरीर और दिमाग दोनों को ही पूरी तरह से स्वस्थ्यता प्रदान करते हैं।

9. आसन महिलाओं की शारीरिक बनावट के मुताबिक भी होते हैं। इनको करने से महिलाओं में खूबसूरती और आकर्षण पैदा होता है।

योग क्या है-

          योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की `युज्´ धातु में `धज्´ प्रत्यय लगने से और`युजिर् योग´ धातु में `कर्तरि धज्´ प्रत्त्यय लगने से हुई है। इस तरह से शब्द का सामान्य मतलब है- समाधि तथा जोड़ने वाला´। इसका एक दूसरा मतलब भी है मन से सारी चिंता और परेशानियों को निकालकर बिल्कुल निश्चित हो जाएं तो इसी का नाम योग है।

वेदों के अनुसार साधना चतुश्टय में योग की 4 प्रमुख विधिओं का वर्णन किया गया है-

1. मंत्रयोग

2. हठयोग

3. लययोग

4. राजयोग।

5. मंत्र योग।

मंत्र योग-

          भगवान के जिस चमत्कारिक रूप का सहारा लेकर चित्तवृत्ति निरोध की जो क्रियाएं की जाती है वे सब मंत्रयोग के अंर्तगत आती है जैसे- ध्यानयोग, शक्तियोग, संकीर्तनयोग, जपयोग और प्रेमयोग आदि।

हठयोग-

          मानव के पूरे शरीर में 6 चक्र मौजूद होते हैं। जिन क्रियाओं के द्वारा उन चक्रों का भेदन करके साधक मन को काबू में करके ईश्वर के पास पहुंच जाता है वे सब हठयोग के अंर्तगत आती हैं।

लययोग-

          षट्चक्र भेदन द्वारा सोई हुई कुण्डलिनी शक्ति को जगाकर उसका सहस्र-दल कमल में मौजूद परमात्मा के साथ ऐक्य स्थापित करने की क्रिया को लययोग कहते हैं। यह भी हठयोग की ही एक चरम स्थिति है।

राजयोग-

          दिमाग के द्वारा मन की क्रियाओं को काबू में करके विचारों के द्वारा चित्तवृत्ति निरोध की स्थिति प्राप्त करने को राजयोग कहा जाता है।

विशेष-

          सांख्य दर्शन के मुताबिक प्रकृति 3 ताकतों से संघटित हैं- सत्त्व, रजस और तमस। इनकी अभिव्यक्ति को संतुलन, क्रियाशीलता और निष्क्रियता भी कहा जाता है।

          हठयोग, राजयोग और कर्मयोग में तीनो सत्त्व, रजस और तमस् शक्तियों से संबधित है। इनमें पहला अर्थात हठयोग- शारीरिक पक्ष से, दूसरा राजयोग मानसिक पक्ष से और तीसरा कर्मयोग दोनो पक्षों से ही सम्बंध रखता है। इनसे अलग चौथा ज्ञानयोग जो पूरा ज्ञान प्राप्त करने की पद्धति है। योग की सारी आठों विद्याएं इन्हीं में समाहित की जा सकती है- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्त्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।

  • लययोग के 9 अंग माने जाते हैं जो इस प्रकार से हैं- यम, नियम, स्थूल क्रिया, सूक्ष्म क्रिया, प्रत्त्याहार, धारणा, ध्यान, लयक्रिया और समाधि।
  • इसमे स्थूल क्रिया का मंत्र क्रिया से, सूक्ष्म क्रिया का स्वरोदय क्रिया से, प्रत्याहार का नादानुसंधान क्रिया से तथा धारणा का षट्चक्र भेदन क्रिया से सम्बंध रहता है।
  • राजयोग के 16 अंग माने गए है लेकिन इनमे से 7 ही प्रमुख अंग है। अंग धारणा विषयक है- विराट ध्यान, ईश्वर का ध्यान और ब्रह्म ध्यान। समाधि के 4 अंग है- वितर्कानुगत, विचारानुगत, आनन्दानुगत तथा आस्मातानुगत। इनके बारे मे बताने वाले विषय है- स्थूल-भूत, सूक्ष्म-भूत, घमंड तथा तादात्मयतापन्न।
  • इन विधियों के द्वारा राजयोग को करने वाला व्यक्ति मन को काबू में करके प्राणों पर विजय प्राप्त कर लेता है और सिद्धि को पा लेता है।
  • इसी तरह से हठयोग, लययोग और राजयोग में जो अलग-अलग अंग कहे गए है, नाम रूप में साधारण अंतर रखते हुए भी वो तत्व एक ही मकसद को लेकर चलते है तथा सबकी आखिरी परिणती समाधि में ही होती है।
  • कर्म सिर्फ दो ही होते है पहला. सामान्य कर्म, जो हम रोजाना के जीवन में करते है और दूसरा. योग। सामान्य कर्मो में पड़ा हुआ व्यक्ति भगवान के पास पहुंचने में असमर्थ होता है जबकि योग उसे सामान्य सांसरिक कर्मो से हटाकर भगवान के करीब पहुंचा देता है।


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