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दिल का दौरा पड़ जाने पर

परिचय-

         कभी-कभी, सड़क पर सामान्य रूप से चलने वाला व्यक्ति अचानक अपनी छाती पकड़कर नीचे गिर पड़ता है। नजदीक जाकर, उसका चेहरा देखते ही आप चौंक पड़ते हैं। उसके चेहरे से उसकी तेज पीड़ा का आभास हो जाता है। उसका चेहरा पसीने से तर और सांस उखड़ी हुई होती है। ऐसा लगता है कि वह उल्टी करने की कोशिश कर रहा हो। उसकी हालत देखकर उसे देखने वाले व्यक्ति एकाएक कह उठते हैं कि ‘इसे दिल का दौरा पड़ गया है’। वास्तव में ये सब लक्षण दिल के दौरे के ही हैं और अगर ऐसी अवस्था में पीड़ित को तुरंत प्राथमिक उपचार न दिया जाए, तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

         दिल का दौरा किसी भी उम्र के व्यक्ति को पड़ सकता है, लेकिन बूढ़े व्यक्ति इससे ज्यादा ग्रस्त होते हैं। 40 से 70 वर्ष की आयु के बीच दिल का दौरा पड़ने की अधिक आशंका रहती है। इसके साथ ही स्त्रियों की अपेक्षा पुरूष इससे अधिक पीड़ित होते हैं। दिल के दौरे (हार्ट अटैक) को ‘हृद्पेशी रोधगलन’ (कार्डिक इंफाक्ट); ‘हृद्धमनी अंतर्रोध’ (कोरोनरी ऑक्लूजन), ‘हृद्धमनी थ्रॉम्बोसिस’ (कोरोनरी थ्रॉम्बोसिस) अथवा ‘तीव्र हृद्पेशी रोधगलन’ (एक्यूट मायोकार्डियल इंफाक्शन) भी कहते हैं। ये दिल का सबसे गंभीर रोग हैं। इसके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-

        काफी समय तक छाती के बीच में वक्ष-अस्थि (छाती की हड्डी) के पीछे, असामान्य बेचैनी होना, चेहरा पीला पड़ जाना और अनेक बार तेज दर्द होना। यह दर्द कंधों, भुजा, गर्दन या जबड़े तक भी बढ़ सकता है। दर्द के साथ-साथ पीड़ित को बहुत जोरों से पसीना आने लगता है। उसे उल्टी भी हो सकती है। आमतौर पर, पीड़ित की सांस भी उखड़ जाती है। वह जल्दी-जल्दी सांस लेने लगता है। उसे चक्कर भी आ सकते हैं और उसकी चेतना लुप्त हो सकती है। वह बेहोश हो सकता है।

        कभी-कभी ये सभी लक्षण कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं और पीड़ित राहत महसूस करने लगता है लेकिन कुछ समय बाद दुबारा ये लक्षण उभर जाते हैं।

        इस बारे में यह बात याद रखनी चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति छाती में दर्द की शिकायत करता है और यह दर्द 15-20 मिनट तक आराम करने के बाद भी ठीक नहीं होता, तो यह अनुमान लगा लेना चाहिए कि यह दर्द दिल के दौरे के कारण हो रहा है।

कारण- जरूरी नहीं कि दिल का दौरा व्यायाम अथवा शारीरिक मेहनत करते समय या मानसिक तनाव के दौरान ही पड़े। यह दौरा आराम से लेटे रहने या नींद के दौरान भी पड़ सकता है।

       दिल के दौरे के तीन प्रमुख कारण होते हैं- हृदय-शूल (ऐंजाइना पेक्टोरिस); तीव्र हृदय-धमनी अवरोध (एक्यूट कोरोनरी ऑबस्ट्रक्शन); और तीव्र हृदय-पात (एक्यूट हार्ट फेलियर)। इन कारणों को पैदा करने वाले अनेक कारक हैं जैसे- अधिक धूम्रपान करना, गरिष्ठ भोजन, अधिक वसायुक्त भोजन, व्यायाम की कमी, अधिक मदिरापान तथा अधिक मोटापा आदि।

हृदय-शूल- इसमें हृदय की मांसपेशीय दीवारों को प्राप्त होने वाले रक्त में कमी आ जाती है। यह कमी हृदय-धमनी संकरी हो जाने के कारण या उसमें ऐंठन आ जाने के कारण होती है। इससे दिल की मांसपेशी को रक्त मिलता तो हैं लेकिन उसकी मात्रा कम हो जाती है। यह अवस्था 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पाई जाती है।    

         हृदय-शूल का तात्कालिक कारण अत्यधिक शारीरिक या मानसिक थकान, कोई ऐसी क्रिया जिसमें हृदय को बहुत अधिक काम करना पड़े या ठंड लग जाना होता है। आमतौर से रात में अधिक वसायुक्त, गरिष्ठ भोजन के बाद यह दर्द शुरू होता है। इसका प्रमुख लक्षण है- छाती में तेज जकड़न वाला दर्द, जो गर्दन तक फैल जाता है। कुछ अवस्थाओं में यह बाईं भुजा में कलाई तक फैल जाता है। पीड़ित व्यक्ति का रंग पीला और धूसर हो जाता है। आमतौर पर, हृदय-शूल से पीड़ित व्यक्ति बेहोश नहीं होता, लेकिन वह अपनी छाती को पकड़ लेता है, बहुत बेचैन हो जाता है और अपनी जगह से हटना नहीं चाहता। कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। ज्यादातर स्थितियों में कुछ मिनट आराम करने के बाद या दवा लेने पर हृदय-शूल समाप्त हो जाता है।

तीव्र हृदय-धमनी अवरोध- दिल का दौरा पड़ने का एक दूसरा कारण है हृदय-धमनी की किसी एक शाखा में एकाएक पूरी तरह रुकावट पैदा हो जाना। पीड़ित व्यक्ति इस रुकावट के बावजूद भी फिर से पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है, लेकिन अनेक बार इसी वजह से उसकी मृत्यु भी हो जाती है। यह घातक अवस्था अवरोधित होने वाली शाखा में रुकावट होने के फलस्वरूप रक्त की सामान्य सप्लाई से वंचित रह जाने वाले हृदय के खास भाग पर निर्भर करती है।

        तेज हृदय-धमनी अवरोध होने पर छाती में बहुत तेज दर्द होता है। यह दर्द होने पर पीड़ित व्यक्ति को ऐसा लगता है जैसे उसे बांस में कसा जा रहा हो। पीड़ा पीठ से होती हुई गर्दन तक पहुंच जाती है और बाईं भुजा में अंगुलियों, आमतौर से चौथी और पांचवीं अंगुली तक फैल जाती है। आराम करने से दर्द में राहत नहीं मिलती, पीड़ित बेहोश हो सकता है। उसका चेहरा पीला पड़ जाता है। वह शॉक की स्थिति में भी आ सकता है। उसे बहुत अधिक पसीना आने लगता है और उसके शरीर का तापमान गिर जाता है। उसकी नब्ज आमतौर से अनियमित हो जाती है। अक्सर पीड़ित को उल्टी भी आती है।

तीव्र हृदय-पात- तीव्र हृदय-पात (हार्ट फेलियर) हृदय की पुरानी बीमारी की चरम सीमा होती है। यह स्थिति उस समय पैदा होती है, जब हृदय अपना सामान्य कार्य नहीं कर पाता तथा शरीर के दूसरे अंगों को पर्याप्त मात्रा में रक्त परिसंचारित नहीं कर पाता। इस हालत में रक्त फेफड़ों तथा अन्य ऊतकों में रूकना शुरू हो जाता है।

इसके मुख्य लक्षण हैं- सांस लेने में कठिनाई होना और खांसी आना। इस हालत में पीड़ित का चेहरा पीला नहीं पड़ता लेकिन उसकी त्वचा काली पड़ जाती है। पीड़ित को सांस लेने में सबसे अधिक कठिनाई लेटने पर होती है। इसलिए वह बैठे रहने की जिद करता है।

प्राथमिक उपचार-

       दिल का दौरा किसी भी कारण से पड़ा हो, सामान्य प्राथमिक उपचार निम्न तरीके से किया जा सकता है-   

  • यदि आपके सामने किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ता है, तो उसे उसके स्थान से बिल्कुल न हटाएं। किसी खतरनाक स्थान पर पड़े होने की स्थिति को छोड़कर उसे किसी गाड़ी आदि में जबरदस्ती न बिठाएं। उसे आराम से लिटाकर तुरंत डॉक्टर को फोन करें।
  • यह देखें कि उसके मुंह में कुछ चीज, जैसे उल्टी, नकली दांत इत्यादि न फंसे हों। ऐसा होने पर उसके मुंह में अँगुली डालकर उन चीजों को निकाल दें। पीड़ित होश में हो तो उसकी हिम्मत बढ़ाते रहें और उसे दिलासा देते रहें।
  • यदि उसकी सांस रूक रही हो तो उसे कृत्रिम सांस देने की क्रिया शुरु कर दें। इसी प्रकार अगर उसके दिल की धड़कन रूक रही हो तो उसे चालू करने की कोशिश करें। उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी न दें। न ही उसे कोई दवा दें।
  • पीड़ित को जल्दी-से-जल्दी डॉक्टर के पास पहुंचाने की कोशिश करें, क्योंकि दिल का दौरा पडने वाले व्यक्ति के लिए एक-एक पल बहुत खास होता है। समय रहते डॉक्टर के पास पहुंच जाने से पीड़ित को स्थायी हानि और मौत से भी बचाया जा सकता है।
  • हृदय-शूल से पीड़ित व्यक्ति को सीधा लिटाने की बजाय अधलेटी अवस्था में रखना सही रहता है। उसके सिर और छाती के नीचे तकिए लगा दें। इससे उसे सांस लेने में सुविधा होती है।
  • पीड़ित व्यक्ति को उस समय तक बिल्कुल हिलाएं-डुलाएं नहीं जब तक उसका दर्द शांत नहीं हो जाता। उसे एकदम शांत रहने दें। उसके इर्द-गिर्द खड़े आदमियों को हटा दें। ऐसी कोई हरकत न करें जिससे पीड़ित के दिमाग में डर पैदा हो।
  • पीड़ित के शरीर को गर्म रखने के लिए उसे कंबल आदि उढ़ा दें। डॉक्टर को बुलवाने के लिए संदेश भेज दें। तीव्र हृदय-धमनी अवरोध से पीड़ित व्यक्ति को अधलेटी अवस्था में रखें। उसके सिर और कंधों को ऊंचा रखें। डॉक्टर के आने तक उसे इसी अवस्था में रखें। इस बात पर जोर दें कि पीड़ित बिल्कुल भी हिले-डुले नहीं, यहां तक कि वह अंगुली तक भी न हिलाएं।
  • अगर पीड़ित की गर्दन या पीठ पर कपड़े कस रहे हों तो उन्हे ढीला कर दें। उसे पर्याप्त मात्रा में ताजा हवा मिलने दें। तीव्र हृदय-पात से पीड़ित व्यक्ति को बिस्तर में लगभग बिठाने की अवस्था में रखें और डॉक्टर को डॉक्टर को जल्दी से जल्दी बुलवाने का प्रबंध करें।


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