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बुढ़ापे की समस्याएं

 

मानसिक और सामाजिक समस्याएं-

        किसी भी व्यक्ति में बुढ़ापा आने पर कुछ दिमागी समस्याएं पैदा हो जाती है जैसे एक खास उम्र में स्वयं को बूढ़ा समझने लगना। पहले जब खुद को कोई दीदी या भाभी कहकर बुलाता था पर अब कोई खुद को माताजी या दादी-नानी कहकर बुलाता है तब वो स्त्री चाहे शरीर या मन से बुढ़िया न हुई हो पर फिर भी अपने आपको ऐसे नामों से पुकारकर खुद को बूढ़ी समझने लगती है और यही सोचने की चिन्ता उसको जल्द ही बुढ़ापे की ओर धकेल देती है।

        दूसरी दिमागी समस्या है- घर में स्वयं की उपेक्षा महसूस करना यानी कि जैसे अब घर में उसकी कोई इमेज ही नहीं रही। जिस घर की वे पहले मालकिन थी, घर को सम्भालने की, खाना बनाने की सारी जिम्मेदारी उसके हाथ में थी। उस समय चाहे जितने भी कष्ट क्यों न मिले फिर भी उसे एक खुशी मिलती थी अपने अधिकार की, अपने सृजन की, अपनी व्यवस्था की। बच्चे उसकी हर बात मानते थे वह जो बोलती थी बच्चे वह ही करते थे। पर बुढ़ापा आते ही सब हालात बदल जाते हैं। उसका अपने ही बनाए घर से अधिकार छिन जाता है।

        सब अपनी मर्जी से काम करते हैं। बच्चों के हर सही-गलत फैसले में उसे हां भरनी पड़ती है। कई बार तो अपनी सालों की मेहनत से बनाए गए घर को भी उसको अपनी आंखों के सामने टूटते हुए देखना पड़ता है। ऐसे में वह  मन से भी पूरी तरह टूट जाती है। जहां अधिकार छीनकर भी बच्चे मां को मान-सम्मान देते हैं वहां वह खुशी से अपने अधिकार उन्हे सौंपकर निश्चित हो जाती है। पर जहां पर ऐसा नहीं होता वहां पर उसकी मानसिक स्थिति और भी खराब हो सकती है।

        बुढ़ापे की तीसरी दिमागी समस्या होती है अकेलापन, बुढ़ापे में वह अलग रहकर तो बच्चों से कटती ही हैं पर साथ में रहकर अक्सर ज्यादा कट जाती हैं और ये स्थिति उसके लिए सहना और भी मुश्किल हो जाती है। बुढ़ापे में जब करने के लिए भी कुछ नहीं रह जाता और वक्त भी नहीं कटता तो जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कोई बीमारी या चलने-फिरने में लाचार होने पर यह अकेलापन और भी काटने को दौड़ता है। ऐसी स्थितियों में उसको मन बहलाने के लिए सिर्फ एक ही उपाय रहता है वो है पोते-पोतियों या दूसरे छोटे बच्चों के साथ अपने मन को बहलाना। पर जब घर के छोटे बच्चों को भी उनसे दूर कर दिया जाता है तो उसके लिए यह स्थिति और भी भयानक हो जाती है।

        इन सारी समस्याओं को दूर करने का हल यही है कि लोगों के कहने पर खुद को बूढ़ा नहीं समझना चाहिए। बढ़ती उम्र में सही तरीके से ढंग से कपड़े आदि पहनकर अच्छे तरीके से सबके साथ बोलचाल कर रहें ताकि जीवन मे रुचि बने रहें। ये शर्म करने की बात नहीं है बल्कि सम्मान की बात है। अपने चरित्र की ऊंचाई अपने आसपास गन्दगी रखने से या खुद ही मैले-कुचेले रहने से नहीं है। सामाजिक मर्यादा के साथ भी अपने मन-मुताबिक कपड़े, कलात्मक रहन-सहन का आपको पूरा हक है।

        अपने इस हक का इस्तेमाल करके आप अपना सम्मान बढ़ाएंगे तो  दुनिया भी आपका सम्मान करेगी। बूढ़ा होने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप अपना सामाजिक दायरा छोड़कर अपने आपमें ही घुटते रहे। अपने जीवन का कोई लक्ष्य बनाकर जागरूक रहिए। जीवन की गतिशीलता बनाए रखकर ही बुढ़ापे की शारीरिक और मानसिक परेशानियों से बचा जा सकता है।

        अब बात आती है घर में अपने अधिकारों के छिनने की या बच्चों के द्वारा उपेक्षा किए जाने की। ये समस्या भी ज्यादातर उन्हीं लोगों को सताती है जो अपने इस दायरे के बाहर आकर अपनी कोई पैठ नहीं रखते। अगर बच्चे आपके साथ बुढ़ापे में एक साथ नहीं रह सकते तो आपको उनके साथ रहने का अधिकार तो नहीं छीन सकते। आप मन से उनके साथ जुड़ी हुई हैं, उनके बुरे-भले का ध्यान रखती है तो आज नहीं तो कल उनको अपनी भूल जरूर महसूस होगी।

     वे आपकी इस उम्र में आपको घर के अन्दर अधिकार तो नहीं पर सम्मान तो जरूर देंगे। पर इसी इन्तजार में खाली बैठे रहना या सोचते रहना भी ठीक नहीं है। इस दायरे के बाहर भी कुछ सोचिए या कुछ करिए। खुद को जवान महसूस करने के लिए अपने शौक पूरे करने मे, पढ़ने में, घर को सजाने-धजानें में या समाज सेवा में अपनी रुचियां बनाए रखनी चाहिए ताकि आप अपने जीवन को बेकार न समझे।

        लोगों को बुढ़ापे की इस आने वाली स्थिति को पहले ही ध्यान में रख लेना चाहिए। अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या शादी-ब्याह पर सब कुछ न खर्च करके अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचाकर रखना भी बहुत जरूरी है। इससे अगर आपके पास अपने बुढ़ापे को सही ढंग से चलाने के लिए कुछ धन-संपति होगी तो आपको अपने बच्चों पर भी आश्रित नही रहना पड़ेगा और वे भी आपकी उपेक्षा नही करेंगे। लेकिन ऐसी व्यवस्था अगर समय पर नहीं हो सकी तो भी शोक मनाने या घबराने की कोई बात नहीं है।

        धीरज से काम लेते हुए अपने लिए नई राह निकाली जा सकती है। जब तक आपका शरीर बिल्कुल ही जवाब न दे जाए तब तक कोई न कोई काम करते रहना चाहिए और अगर मन मे काम की इच्छा होती है तो करने वाले के लिए कोई न कोई काम निकल ही जाता है। बस खुद को बिजी और जागरूक रखिए, कमजोरी के बावजूद खास व्यायामों से, योगसाधना से खुद को गतिशील बनाए रखिए इसके साथ ही मन की शान्ति के लिए भी भजन-कीर्तन, योग-समाधि आदि जिस काम मे भी रम सके मन को रमाएं रखिए। इससे आप न तो खुद को उपेक्षा की शिकार समझेगी और न ही अकेली।

        खुद को दूसरों से अलग-थलग समझना, अपने मन मे ऐसे विचार लाना कि मेरा जीवन तो अब किसी काम का नही है पता नही मै क्यों जी रही हूं, ऐसी समस्याएं आपस मे जुड़ी हुई है। बुढ़ापे की असली शुरूआत यहीं से होती है। जब कोई व्यक्ति खुद को सब लोगों से, समाज से, अलग करके अपने मे ही खोए रखता है और सिर्फ परिवार से ही जुड़कर अपने लिए बहुत सी परेशानियां पैदा कर लेता है।

शारीरिक परेशानिया-

            जिस तरह से हर समय शरीर में सुस्ती लाए रखना या किसी से ढंग से बात न करना खुद के लिए अच्छी बात नही है वैसे ही ज्यादा खुशी में ज्यादा थकना या शरीर मे जितनी ताकत हो उससे ज्यादा काम लेना भी अच्छी बात नहीं है। आप अपने शरीर की जरूरत और उसकी ताकत के बीच सन्तुलन बनाए रखिए, यानी कि जब आपकी लेटे रहने की इच्छा होती है तो तब तक लेटे रहिए जब तक कि आराम करने के बाद शरीर में काम करने की नई ताकत और जोश दुबारा पैदा हो। शरीर को हमेशा साधकर चलाएं तथा आराम और व्यायाम के बीच हमेशा सन्तुलन बनाए रखें।            

            चलने-फिरने, उठने-बैठने और काम करते समय ऐसी मुद्राएं अपनानी चाहिए कि जिसमे पीठ और कमर को ज्यादा झुकाना न पड़ें। स्त्रियों मे अक्सर कमर मे दर्द, जोड़ों मे दर्द, हडि्डयों में टेढ़ापन आना आदि ज्यादातर इन्ही कारणों से होते है क्योंकि स्त्रियां इन सारी क्रियाओं को करते समय सही तरह की मुद्राओं को नहीं अपनाती है। फिर जब शरीर के किसी भी हिस्से में किसी तरह की खराबी या परेशानी आ जाती है तो उसके लिए चिकित्सा के रूप मे जो व्यायाम बताए जाते हैं, उन्हे करना भी हमारे लिए मुश्किल हो जाता है तथा इसके बाद जोड़ों मे तथा हडि्डयों में समा गई परेशानी फिर बहुत ही मुश्किल से ही जाती है।

            बुढ़ापे में मुश्किल व्यायामों को तब तक नहीं करना चाहिए जब तक कि पहले से ही व्यायाम करने की आदत न हो नही तो बुढ़ापे में व्यायाम करने से लाभ होने के बजाय नुकसान हो सकता है। सुबह की सैर, शरीर को बिल्कुल सीधा तानकर चलना और बैठना, सोते समय भी बिना तकिए के सख्त लकड़ी के पलंग पर सोना ताकि रीढ़ की हड्डी और गर्दन बिल्कुल सीधी रहें, कोई भी काम करते समय कमर तथा पीठ को पीछे कुर्सी पर सीधे टिकाकर रखना, नहाने से पहले शरीर पर तेल मालिश करना, हल्के व्यायाम करना और उसके बाद नहाना इन सारे तरीकों को अपना कर कोई भी व्यक्ति अपने आपको स्वस्थ और चुस्त-दुरूस्त बनाकर रख सकता है। गहरी सांस लेना, शरीर को बिल्कुल सीधा तानकर रखना, थोड़े से हल्के-फुल्के व्यायाम, तो बिस्तर पर लेटे-लेटे भी कर सकते हैं। अगर लगे कि आपकी कमर या पीठ कुछ झुक सी रही है तो उसके लिए कुछ खास तरह के व्यायाम करने जरूरी होते हैं।

        उम्र बढ़ने के संकेत त्वचा पर झुर्रियों के रूप में नज़र आते हैं। इनको पूरी तरह तो मिटाया नहीं जा सकता पर समय रहते ध्यान देकर इनको आने से रोका जा सकता है और झुर्रियां पड़ने पर खास तरह की चिकित्सा के द्वारा इनको कम भी किया जा सकता है। इन झुर्रियों से बचने के लिए धूप मे जाते समय छाता ले जाना, रूखी त्वचा को चिकना करने के लिए हरी सब्जियों के रूप में प्राकृतिक नमी और चिकनाहट लेने के साथ थोड़ा सा मक्खन तथा पूरी मात्रा में दूध लेने और शरीर की मालिश करने, बेवजह चिन्ताओं से दूर रहने, बेवजह गुस्से और चिड़चिड़ापन को अपने पास न फटकने देने से लाभ होता है। चेहरे की मालिश करें तो हमेशा नीचे से ऊपर की ओर उल्टी दिशा में करनी चाहिए ताकि त्वचा पर झुर्रियां न पड़ें और अगर पड़ भी जाए तो इन्हे कम किया जा सके। रूखी त्वचा पर मलाई में बेसन मिलाकर त्वचा पर लगाने से लाभ होता है। एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि झुर्रियां हमेशा रूखी त्वचा पर पड़ती है तैलीय त्वचा पर नहीं।

व्यायाम-

        अपने दोनो हाथों की उंगलियों को दोनो गालों के ऊपर से नीचे की ओर इस तरह दबाएं कि सारा दबाव जबड़ों पर ही पड़ें। इस समय दांतों को जोर से भींचकर दबाने का काम करने वाली मांसपेशियों को सिकोड़े और फैलाएं और इसे कई बार करें।

     सुबह उठते ही उगते सूरज की तरफ मुंह करके बिल्कुल सीधी तनकर खड़ी हो जाएं। अब मुंह में हवा भरकर गालों को फुलाएं, फिर बंद हवा को मुंह के अन्दर ही चारों तरफ घुमाने की कोशिश करें। एक गाल से दूसरे गाल तक कम से कम 10-12 बार।

    अपने जबड़े को धीरे-धीरे दाईं और बाईं तरफ घुमाएं। इस व्यायाम को करने से पहले अगर चेहरे पर तेल की मालिश की जाए तो ज्यादा लाभ होता है।

जानकारी-

        बुढ़ापे में शरीर के काम करने के अनुसार ही कम कैलोरी वाला, हल्का जल्दी पचने वाला और प्रोटीनकैल्शियम तथा विटामिन वाला पौष्टिक भोजन खाना चाहिए ताकि शरीर में ताकत बनी रहें और भोजन का न पचना, मोटापे आदि रोगों से दूर रहें। शरीर में कार्बोहाइड्रेट और चर्बी बढ़ाने वाले भोजन को कम खाना चाहिए। डायबिटीज, ब्लडप्रेशर या दिल के रोगों में तो भोजन डॉक्टर के कहे अनुसार ही करना चाहिए।

बुढ़ापे के लिए 2000 कैलोरी का सबसे अच्छा भोजन का चार्ट-

शाकाहारी

 

मांसाहारी

 

सुबह के समय

 

 

नींबू-पानी या चाय बिना चीनी के

 

नींबू-पानी या चाय बिना चीनी के

 

सुबह का नाश्ता

 

 

1 गिलास बिना मलाई का दूध

 

1 गिलास बिना मलाई का दूध

2 टुकड़े ब्रेड- 50 ग्राम

 

2 टुकड़े ब्रेड- 50 ग्राम

 

3 ग्राम मक्खन

 

3 ग्राम मक्खन

 

किसी फल का टुकड़ा

 

1 अण्डा और फल का एक टुकड़ा

 

दोपहर से पहले

 

 

150 मिलीलीटर बिना मलाई का दूध या 1 कप जूस

 

150 मिलीलीटर बिना मलाई का दूध या 1 कप जूस

 

दोपहर का भोजन

 

 

4 छोटी रोटी या 100 ग्राम चावल

 

4 छोटी रोटी या 100 ग्राम चावल

 

लगभग 25 ग्राम दाल

 

लगभग 25 ग्राम दाल

 

100 ग्राम बिना मलाई का दही

 

100 ग्राम दही, 50 ग्राम मीट या मछली,

 

हरी सब्जी जितनी खानी हो

 

हरी सब्जी जितनी खानी हो

 

10 ग्राम घी या तेल

 

10 ग्राम घी या तेल

 

1 टुकड़ा किसी भी फल का

 

1 टुकड़ा किसी भी फल का

 

शाम के समय

 

 

1 कप बिना मलाई का दूध

 

1 कप बिना मलाई का दूध

 

बिना चीनी की चाय या कॉफी

बिना चीनी की चाय या कॉफी

 

रात का भोजन

 

 

100 ग्राम चावल या आटा

 

100 ग्राम चावल या आटा

 

50 ग्राम बिना मलाई के दूध का पनीर

 

50 ग्राम बिना मलाई के दूध का पनीर

 

1 कटोरी बिना मलाई के दूध का दही

 

1 कटोरी बिना मलाई के दूध का दही

 

बहुत सारी हरी सब्जियां

 

बहुत सारी हरी सब्जियां

 

2 छोटे चम्मच घी या तेल

 

2 छोटे चम्मच घी या तेल

 

1 फल का टुकड़ा

 

1 फल का टुकड़ा

 

रात को सोते समय

 

 

225 मिलीलीटर बिना मलाई का दूध

 

225 मिलीलीटर बिना मलाई का दूध

 

जानकारी-

        बूढ़े लोग अगर गुड़ या चीनी इस्तेमाल करना चाहें तो 1 रोटी के बदले 6 छोटे चम्मच चीनी पूरे दिन में ले सकते हैं।

        ये भोजन का चार्ट एक बिल्कुल स्वस्थ बूढ़े व्यक्ति के लिए 2000 कैलोरी के सन्तुलित भोजन की मांग के अनुसार बनाया गया है। इसमे अपने वजन के अनुसार कैलोरी की मात्रा कम या ज्यादा की जा सकती है। किसी खास रोग में या भोजन पचाने की शक्ति कमजोर होने मे डॉक्टर के कहे अनुसार ही चलें। अगर किसी व्यक्ति के भोजन का बजट कम है तो दूध की दी हुई मात्रा ज्यादा लग सकती है लेकिन सपरेटा दूध हल्का पचने वाला और सस्ता होता है और इसमे सिर्फ वसा के सारे पोषक तत्व मिल जाते हैं। इसलिए सपरेटा दूध लेकर इसकी मात्रा पूरी की जा सकती है। भोजन के इस चार्ट से पोषण पूरा मिलता है और शरीर भी चुस्त-दुरूस्त तथा सारे रोगों से दूर रहता है।

बुढ़ापे की समस्याएं-

            बुढ़ापे में आने वाली सबसे प्रमुख बीमारियां है, डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, दिल के रोग, कैंसर, दमा, ब्रोंकाइटिस, गठिया आदि। इनमे जो रोग सबसे ज्यादा होते हैं वह है डायबटीज और ब्लडप्रेशर। अगर मोटापा ज्यादा बढ़ जाता है तो व्यक्ति को डायबिटीज का रोग हो जाता है। डायबिटीज होने से भी मोटापा बढ़ सकता है। अगर व्यक्ति को मोटापा और डायबिटीज दोनो एक साथ हो तो ब्लडप्रेशर बढ़ने के कारण दिल का दौरा पड़ सकता है। इसलिए भोजन को सन्तुलित रखकर ही मोटापे को काबू मे रखा जा सकता है।

         जोड़ों के दर्द और गठिया के रोग को अपने से दूर रखने के लिए सबसे जरूरी बात है कि आपका वजन आपके काबू में रहें। बुढ़ापा आने पर हडि्डयों में से कैल्शियम समाप्त हो जाने से उनका लचीलापन कम होने लगता है। व्यक्ति की हडि्डयां टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। जब हडि्डयां कमजोर हो जाती है तो वो शरीर का वजन उठाने के लायक नहीं रह जाती। अगर रोजाना व्यायाम ना किया जाए और भोजन में पौष्टिक पदार्थ ना लिए जाए तो जोड़ों मे भी दूषण जमा होता है। जिसके कारण घुटनों के जोड़ में, टखनों में, कमर में, रीढ़ की हड्डी में, गर्दन में और कंधों में दर्द रहने लगता है। अगर इन सबके साथ में शरीर में मोटापा भी हो तो और भी परेशानी हो सकती है।

          बचपन में ज्यादा वसायुक्त भोजन खाने पर बुढ़ापे में भी मोटापा पैदा हो सकता है। दर्द शरीर के अलग-अलग जगहों में उठता रहता है। सिर पर ज्यादा वजन उठाने से, मेज, कुर्सी पर झुककर बैठने या पढ़ने से साथ दिमाग मे परेशानी रखने से गर्दन और कंधों मे दर्द होने लगता है। ये दर्द चाहे गर्दन-कंधों का हो चाहे कमर-रीढ़ का हो इनसे बचने के लिए बिना तकिया लगाए लकड़ी के तख्ते पर सोने की आदत डालनी चाहिए। अगर परेशानी हो तो हॉस्पिटल के `फिजियोथेरापी´ विभाग से खास तरह के व्यायाम सीखकर इसको काबू मे रखा जा सकता है। दर्द को कम करने की दवाएं भी दी जाती है। पर दर्द को काबू में रखने के लिए आखिरी उपाय तो रोजाना व्यायाम करना ही है। इसके साथ ही भोजन पर काबू रखकर वजन को कंट्रोल में रखा जा सकता है।

          अगर भोजन करने की आदत पर काबू करें तो एक बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि शरीर का वजन ही कम हो, शरीर में कमजोरी न आने पाए। बुढ़ापे में भोजन में से कार्बोहाइड्रेट और वसा को कम करके कैल्शियम, विटामिन बी, और प्रोटीन की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।

          बुढ़ापे के समय अगर स्त्रियों में मासिकधर्म बंद होने के बाद खून आने लगे या स्तनों के अन्दर किसी तरह की गांठ सी लगे तो तुरन्त ही उसकी जांच करवाना बहुत जरूरी है जिससे कि अगर गर्भाशय या स्तनों में कैंसर हो तो उसका समय पर पता लगाकर इलाज करा लिया जाए। बुढ़ापे में अगर पीलिया, पेट का दर्द, पेट में गैस या डायरिया को रोग हो तो उसकी जांच जरूर करवा लेनी चाहिए कि कहीं जिगर या आंतों में किसी तरह का कैंसर तो नहीं है।

          ब्रोंकाइटिस या दमा रोग अगर पुराना हो जाए तो ये बहुत ज्यादा दर्दनाक हो जाता है। इसलिए इन रोगों की चिकित्सा पर तुरन्त ही ध्यान देना चाहिए। जिस चीज से `एलर्जी´ हो उसका पता लगाकर उससे पूरी तरह से दूर रहने पर इन रोगों से बचा जा सकता है। अगर दमा के रोगियों को ऑक्सीजन देने की जरूरत पड़ती है तो वो सिर्फ अस्पतालों में ही दी जाती है। इसलिए रोगी की हालत खराब लगने पर उसको तुरन्त ही अस्पताल ले जाना चाहिए।

           ब्रोकाइटिस रोग के बढ़ने पर एंटीबायोटिक दवाओं से उसको काबू में किया जा सकता है पर इसमे डॉक्टर के कहे अनुसार ही चलना चाहिए तथा साथ में `बी-कॉम्पलेक्स´ की टेबलेट भी लेते रहना चाहिए। रोगी को ज्यादा परेशानी होने पर ठण्ड से बचाव करें और धूल और धुएं से पूरी तरह दूर रखने की कोशिश करें।


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