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बलात्कार

बलात्कार का मतलब है जबर्दस्ती से किया कार्य। इसे शाब्दिक रुप में कहीं भी प्रयोग किया जा सकता है मगर खासतौर पर इसे स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध बनाए गए शारीरिक संबंधों के रुप में जाना जाता है। स्त्री जब अपनी इच्छा, सहमति और सहयोग के साथ पुरुष से सेक्स संबंध बनाती है या पुरुष को स्वयं के साथ संबंध बनाने की इजाजत देती है तो इसे सम्भोग कहा जाता है यानी समान रूप से भोगा गया सुख। सच तो यह है कि जिस प्रकार पेट की भूख लगने पर भोजन की जरूरत होती है, उसी प्रकार सेक्स भी शरीर की एक जरूरत होती है।

          बलात्कार जैसे कुकर्म यौन शिक्षा की कमी के कारण ही होते हैं। यदि हर स्त्री-पुरुष को यौन शिक्षा का भली-भांति ज्ञान हो तो वे कुछ हद तक समाज व परिवार द्वारा तय की गई सीमा रेखाओं का उल्लंघन न करके अपने व्यक्तित्व का भी ध्यान रखते हैं।

          बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसमें अपराध करने वाला और जिसके साथ अपराध हुआ है दोनों दण्ड भोगते हैं। पकड़े जाने पर बलात्कारी को दण्ड के रूप में कानून सजा देता है और जिसके साथ बलात्कार हुआ है उसकी पूरी जिन्दगी ही सजा के रूप में बदल जाती है। बलात्कार करने वाला तो किसी प्रकार से कानूनी दावपेंच लगा कर अपराध की सजा से बच जाता है लेकिन वह युवती जिसके साथ बलात्कार हुआ वह किसी भी रुप से उस सजा से नहीं बच पाती। अगर उस युवती के साथ विवाह से पहले बलात्कार हुआ हो तो उसकी स्थिति बहुत ही दयनीय और दुखद हो जाती है। ऐसी लड़की की जल्दी शादी भी नहीं हो पाती। बलात्कार एक ऐसा घातक दंश होता है जो पीड़िता को जीवन भर चुभता रहता है जिसके दर्द से वह मानसिक रूप से टूट जाती है। वह खुद अपनी नजरों में गिरकर अपने आपको अपवित्र मानने लगती है। बहुत सी लड़कियां तो आत्महत्या भी कर लेती हैं।

          यह हमारी सामाजिक व्यवस्था का एक गंदा चेहरा है। इसके पीछे पुरुषों की मानसिकता एक बहुत बड़ा कारण है। जहां बलात्कार करने में एक पुरुष प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार होता है। पुरुष खुद शादी से पहले और बाद में चाहे किसी से भी सेक्स संबंध बना ले, उस पर किसी प्रकार की आँच नहीं आती है लेकिन पत्नी के रूप में वह हमेशा ऐसी लड़की की कामना करता है जिसका शादी से पहले किसी से भी सेक्स संबंध न बना हो। वह ऐसी लड़की के साथ सुहागरात मनाना पसंद करता है जो पूर्ण रुप से कुंवारी हो। ऐसी स्थिति में बलात्कार से पीड़ित युवती के साथ कौन विवाह की कल्पना करना चाहेगा। पुरुष के साथ-साथ उसके परिवार वाले भी ऐसी लड़की को अपनी बहू बनाने को कभी भी राजी नहीं होंगे। इसलिए बलात्कार की पीड़ा केवल उसी स्त्री को ही भोगनी पड़ती है जिसके साथ बलात्कार हुआ होता है।

          युवावस्था में होने वाले बलात्कार के लिए आज की युवा पीढ़ी ही अधिक जिम्मेदार है। समय बदलने के साथ-साथ विचारधारा में भी बदलाव आने लगा है। विचारों में खुलापन आने लगा है। ब्वायफ्रेंड तथा गर्लफ्रेंड का चलन आम होता जा रहा है। कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियां अपने आपको मॉडल साबित करने के प्रयास में लड़कों से मिलना, दोस्ती करना गलत नहीं समझती। कई बार इन्हीं आदतों की वजह कोई लड़की बलात्कार की शिकार भी हो जाती है।

          कई बार बलात्कार की ऐसी वारदातें हो जाती हैं जिसमें बलात्कार के लिए जितना दोषी पुरुष होता है, उतनी ही स्त्री भी होती है। पाश्चिमी सभ्यता का प्रभाव जिस प्रकार अपना असर दिखा रहा है, उससे स्त्री-पुरुषों की विचार शक्ति भी काफी प्रभावित हुई है। इसी विचारधारा के चलते युवतियां भी अपने आपको पश्चिमी संस्कृति में रंगने लगती हैं, उसकी चमक-दमक में खोने लगती हैं। पुरुषों के साथ मित्रता को अनुचित नहीं मानती हैं। धीरे-धीरे यही विचारधारा उन्हें भटकाने लगती है। अधिकतर स्त्री-पुरुष की मित्रता की परिणिती सेक्स संबंधों पर ही आकर होती है। जब भी वे अकेले होते हैं, सेक्स करने के लिए इच्छुक हो जाते हैं।

          बलात्कार एक समाजिक बुराई है। इन घटनाओं को रोकने के लिए कुछ लोग पुलिस की बात करते हैं, कुछ कानून की बात करते हैं। लेकिन बलात्कार हो जाता है तब पुलिस अपना काम करती है। पुलिस अपने हिस्से का काम करके अपराधी को कोर्ट में पेश कर देती है, तब कानून अपना काम करता है। यहां अनेक अपराधी कानूनी दावपेंच लगाकर बच निकलते हैं, अथवा अदालत में बरसों तक केस चलता रहता है। इसलिए बलात्कार जैसी सामाजिक बुराई को सामाजिक स्तर और स्वयं की सजगता से ही कम किया जा सकता है। अपराध को कभी खत्म नहीं किया जा सकता हैं हॉ कम जरूर किया जा सकता है। वह भी व्यक्ति की स्वयं की तत्परता, इच्छाशक्ति और सजगता के चलते। जब-जब व्यक्ति ने इस तरफ उपेक्षा दिखाई है, तब-तब अपराध भी बढ़ते हैं और बीमारियां भी। इसलिए बलात्कार के लिए जो कारण प्रमुख रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं, अगर उन्हें ही समाप्त करने का प्रयास किया जाए तो काफी हद तक बलात्कार जैसी जघन्य घटनाओं पर काबू किया जा सकता है।

  • परिवार के आदर्श मूल्यों को बनायें रखें। घर का वातावरण मर्यादा पूर्ण रहे। आपसी संबंधों में उद्दण्डता और अश्लीलता को दूर रखें। बच्चे जवान हो रहे हैं तो उन पर कड़ी निगरानी रखें। उनके व्यवहार पर नजर रखें।
  • युवावस्था की ओर बढ़ रहे बच्चों को फालतू में बाहर घूमने न दें। बच्चे की संगति पर भी ध्यान दें।
  • छोटी लड़कियों के प्रति खासतौर पर सावधानी बरतें। अब धीरे-धीरे ऐसा समय आता जा रहा है कि आप किसी पर भी विश्वास नहीं कर सकते हैं। इसलिए विशेष रूप से बच्चियों को किसी के साथ भी चाहे वे परिचित ही क्यों न हों उसके साथ कहीं अकेले न तो भेजें और न अधिक समय अपनी आंखों से ओझल होने दें।
  • बच्ची अगर किसी सहेली के साथ उसके घर में खेलने के लिए जाती है तो उस पर जरूर ध्यान दें। उसकी सहेली के घर का माहौल पता करके रखें।
  • घर-परिवार या आस-पड़ोस में बलात्कार जैसी घटना होती है तो उसे छिपाने की कोशिश न करें। घटना का पता लगते ही पुलिस में रिर्पोट लिखवाएं। किसी अपराधी का जब एक अपराध किसी वजह से दब जाता है अथवा छिप जाता है, सजा होने से बच जाता है तो उसे दूसरा अपराध करने की प्रेरणा मिलती है।
  • किसी अनजान व्यक्ति को घर में घुसने न दें। हो सके तो दरवाजों मे की-हाल या छोटा-सा शीशा लगवा लें। ताकि दरवाजे के बाहर खड़े व्यक्ति की पहचान की जा सके।
  • युवतियां जब भी घर से बाहर निकलें तो यह अच्छी तरह देख लें कि कोई आप का पीछा तो नहीं कर रहा है। अकेले स्थानों या पार्क आदि में न घूमें।
  • हमेशा चुस्त व सतर्क बनी रहें। लिफ्ट आदि में जाते समय अकेले सवार होने का साहस न दिखाएं।
  • बस, दफ्तर या पड़ोस आदि जगहों पर अगर कोई आपको छेड़ता है तो इसकी शिकायत तुरन्त पुलिस से करें।
  • लड़कियों को आत्म-सुरक्षा के लिए जूडो-कराटे आदि का प्रशिक्षण लेना चाहिए।

          ये सारी सावधानियां और सतर्कता बलात्कार जैसी घटनाओं को रोकने की व्यक्तिगत व्यवस्थाएं हैं। बलात्कार एक ऐसा घिनौना व अचानक घटित होने वाला अपराध है जिसे व्यक्ति स्वयं सतर्कता, बुद्धि एवं विवेक से रोक सकता है। यदि व्यक्ति स्वयं अपने आपको इस अपराध के प्रति जागरूक व सजग कर ले तो बलात्कार के अपराधों पर किसी हद तक स्वयं अंकुश लग सकता है।


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