अव्यक्त गर्भवती स्त्री के लक्षणः-
इसके अन्तर्गत गर्भवती स्त्री के वे सभी लक्षण जोकि गर्भ ठहरने के बाद सप्ताह तक स्त्री या पुरुष की दृष्टि से अवयक्त रहता है अर्थात् पता नहीं चलता कब समावेश किया जाता है। ये लक्षण शुरू में प्रकट होते हैं और मासिक रक्तस्राव के बंद होने को छोड़कर सभी अस्थायी स्वरूप के हैं-
इसे Morning Sickness कहते हैं। इसके अतिरिक्त स्वाभाविक खाद्यपदार्थों के प्रति अरुचि तथा अस्वाभाविक खाद्य पदार्थों के यानि मिट्टी, भस्म, चूना, खट्टे पदार्थ आदि के प्रति रुचि पैदा होती है।
व्यक्ता गर्भा स्त्री के लक्षणः-
ये लक्षण दूसरे माह के अंत में प्रारम्भ होते हैं-
- गर्भ ठहर जाने के छठे सप्ताह के बाद स्तनों का आकार बढ़ने लगता है जिसके फलस्वरूप स्तनों में गुदगुदी सी महसूस होती है। स्तनों पर फूली हुई शिराओं का जाल दिखाई देता है। चुचुक मोटे होने लगते हैं, उनके चारों ओर का मण्डल उभर आता है और काला पड़ जाता है। प्रथम गर्भावस्था के पश्चात् वे सदा के लिए वैसे ही रह जाते हैं। चुचुक मण्डल का कालापन गर्भ वृद्धि के साथ बढ़ता चला जाता है। तीसरे महीने के पश्चात स्तनों को दबाने से एक गाढ़ा द्रव्य निकलता है।
- गर्भावस्था में बालों की वृद्धि होती है, जिससे गुप्तांग के बाल अधिक लम्बे एवं कुटिक हो जाते हैं।
- दूसरे माह से प्रारम्भ होकर चौथे माह तक जारी रहने वाले लक्षण हैं- बिना किसी कारण उल्टी आना, मुख में लाल स्राव आना तथा थकावट होना।
- माता को गर्भ की हलचल का ज्ञान होता है।
- चेहरे पर आंखों के नीचे, होंठों पर, पेट पर, भग से नाभि तक तथा जांघों में कालापन आ जाता है।
- गर्भाशय की वृद्धि के कारण पेट की वृद्धि होने लगती है जिससे पेट पर दरारें पड़ जाती हैं।
- पैरों पर कुछ सूजन आ जाती है तथा शरीर पर पीलापन भी आ जाता है।
- गर्भास्थिति के परिणामस्वरूप योनि शिथिल, ढीली और चौड़ी हो जाती है।
- अठारवें सप्ताह के बाद माता के पेट की दीवार से कान लगाने से गर्भ के हृदय की ध्वनि सुनाई देती है। इसकी संख्या प्रतिमिनट 120 से 160 तक और औसत 140 होती है। यानि माता की हृदय गति छठे माह से माता के पेट को छूने पर शिशु के हाथ-पैर आदि अंगो का पता चलता है।
गर्भपात का भय-
ध्यान रहे कि गर्भ ठहर जाने पर मासिक-धर्म आना बन्द हो जाता है और इसकी सारी शक्ति बच्चे के पालन में व्यय होने लगती है। कई अवस्थाओं में गर्भवती स्त्रियों को मासिक-धर्म की तारीखों पर कुछ बूंदे आ जाती है, जोकि भयप्रद है। ऐसी अवस्था में रक्त को रोकने के उचित चिकित्सा करनी चाहिए।