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शुक्राणुओं को स्वस्थ रखने के उपाय

पुरुष का वीर्य जितना स्वस्थ होता है, उसका चेहरा और व्यक्तित्व उतना ही तेजस्वी होता है। पुरुष जो कुछ भी खाता है, पीता है, करता है या जो कुछ सोचता है उसका तन और मन पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए जो प्रभाव इन पर पड़ता है उसका सीधा रूप से असर वीर्य पर भी होता है।

          यदि कोई भी पुरुष नशा करता है, गलत खान-पान करता है या तनाव में रहता है तो इनका सीधा प्रभाव वीर्य पर पड़ता है। कहने का मतलब यह है कि जब वीर्य पर ये प्रभाव पड़ते हैं तो वीर्य की मात्रा में अंतर आ जाता है। वीर्य की मात्रा में अंतर आने के कई कारण हो सकते हैं- पौष्टिक भोजन में कमी, अप्राकृतिक मैथुन, वेश्याओं के पास बार-बार जाना, जरूरत से अधिक सेक्स करना, हस्तमैथुन, चिंता, उदासी तथा भय आदि। वीर्य की मात्रा और गुणों को जानने के लिए उसकी निर्माण की प्रक्रिया को जानना बहुता आवश्यक है।  

वीर्य निर्माण की प्रक्रिया- 

           अधिकतर 14 से 16 साल की उम्र में ही पुरुषों के शरीर में वीर्य का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इसके बाद इसका निर्माण आजीवन होता रहता है। पुरुष के लिंग के नीचे दो अंडकोष होते हैं और इनमें ही शुक्राणुओं का निर्माण होता है। कई प्रकार के द्रवों का निर्माण सेमिनल वेसिकल्स (शुक्राशय) तथा प्रोस्टेट ग्रंथि में होता है। पुरुष के शरीर में सेमिनल वेसिकल्स नामक 3 इंच लम्बी दो ग्रंथियां होती हैं जिसमें एक प्रकार का स्राव उत्पन्न होता है। यह स्राव शुक्राणुओं को पोषण देता है और उनकी गति को बढ़ाता है। इसके साथ ही साथ प्रोस्टेट ग्रंथि से भी एक तरह का स्राव उत्पन्न होता है। जब ये सब आपस में मिल जाते हैं तो वीर्य बनता है। लगभग 70 से 80 दिनों में वीर्य में उपस्थित शुक्राणु पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाते हैं।

           पुरुष के शरीर में वीर्य निर्माण की प्रक्रिया नियमित रूप से चलती रहती है। वीर्य को रखने के लिए जब अंडकोष में जगह कम पड़ जाती है तो वीर्य छलककर बाहर आ जाता है जिसके कारण से अंडकोष में ताजा वीर्य रखने के लिए दुबारा स्थान बन जाता है। पुराने वीर्य के बाहर छलकने की क्रिया स्वप्नदोष या नाइट डिस्चार्ज कहलाती है। स्वप्नदोष की वजह से पुरुष को किसी प्रकार की मानसिक तथा शारीरिक हानि नहीं होती है।

           जब पुरुष का एक बार वीर्य स्खलन होता है तो उस वीर्य के साथ ही लगभग 3 से 4 करोड़ शुक्राणु निकल जाते हैं। यदि आपके वीर्य में मृत, बेहोश या कमजोर शुक्राणुओं की संख्या अधिक है अर्थात जीवित शुक्राणुओं की संख्या कम हो तो आपके वीर्य की क्वालिटी खराब मानी जाएगी।

साफ वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या-

           एक बार वीर्य के स्खलन होने पर इनमें से कम से कम 2 करोड़ शुक्राणु बाहर निकलना चाहिए तथा इसके अलावा वीर्य में स्वस्थ, शक्तिशाली, गतिशील, सक्रिय तथा उपजाऊ शुक्राणु होने चाहिए। जब इस प्रकार की क्वालिटी वीर्य में हो तो वह वीर्य शुद्ध माना जाता है।

शुक्राणुओं का क्रियाशील होना-

           यदि आपके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या लगभग 2 करोड़ से अधिक है लेकिन उसमें पाये जाने वाले शुक्राणु बेहोश, गतिहीन, मृत और सुस्त हों तो उसे अच्छा वीर्य नहीं कहा जाएगा।

शुक्राणुओं की आकृति-

           वीर्य में लगभग 45 से 50 प्रतिशत शुक्राणुओं की पूंछ सीधी और सिर अंडाकार होनी चाहिए। यदि इनकी आकृति में फर्क हो तो उन्हें कमजोर शुक्राणु माना जाता है।

           जिस पुरुष के शुक्राणु स्वस्थ होते हैं उसकी संतान भी स्वस्थ और सुंदर होती है। यदि शुक्राणु अस्वस्थ हैं तो पत्नी पर भी इसका प्रभाव होगा और पत्नी भी अस्वस्थ हो जाएगी। कुछ वैज्ञानिकों का यह मानना है कि यदि कोई स्त्री अस्वस्थ शुक्राणु वाले पुरुष के सेक्स क्रिया करती है तो वह कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो जाती है। अस्वस्थ शुक्राणुओं वाले वीर्य में फ्री रेडिकल्स होते हैं जो स्त्री के गर्भाशय की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। शुक्राणुओं को स्वस्थ एवं निरोग बनाए रखने के लिए अपने भोजन तथा जीवन-शैली में फेरबदल करने की आवश्यकता होती है।

पुरुषों को अपने शुक्राणुओं की क्वालिटी (गुणवत्ता) को बढ़ाने के लिए कुछ भोजन प्रबंध-  

  • शुक्राणुओं को स्वस्थ, मजबूत एवं गतिमान बनाए रखने के लिए पौष्टिक और संतुलित भोजन करना चाहिए।
  • अपने वीर्य के शुक्राणुओं की रक्षा करने के लिए अपने भोजन में विटामिन-ए, बी, सी, बी-कॉम्प्लेक्स तथा विटामिन-ई से भरपूर फलों और सब्जियों का सेवन करना चाहिए। इसके फलस्वरूप पुरुष का शरीर स्वस्थ होने के साथ-साथ शुक्राणुओं भी स्वस्थ बने रहते हैं।
  • पुरुषों को अपने भोजन में मौसमी फलों, पत्तेदार सब्जियों, दूध, घी, सूखे मेवे, समुद्री भोजन, पनीर, मक्खन, नींबू का रस, सोयाबीन, मशरूम, चोकरयुक्त आटे की रोटी, बिना पॉलिश किए हुए चावल, फलों का रस, साबुत दालें तथा अंकुरित खाद्यान्न आदि चीजों का सेवन करने से वीर्य के शुक्राणु जीवित रहते हैं।
  • पुरुष को कभी भी तेज मसालेदार चीजें, बासी भोजन, फास्ट फूड, कोला, सॉफ्ट ड्रिंक, नूडल्स तथा अधिक वसायुक्त पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इन पदार्थों का सेवन करने से पुरुष के वीर्य की क्वालिटी घटने लगती है।
  • किसी भी प्रकार के नशे का सीधा प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है जिसके कारण से उसके शरीर का नाश तो होता ही है तथा इसके साथ-साथ उसके वीर्य की क्वालिटी पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • नशे के दुष्प्रभाव के कारण से शुक्राणुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इसके कारण से वीर्य में मृत, अस्वस्थ तथा सुस्त शुक्राणुओं की संख्या अधिक हो जाती है जिसके कारण से शरीर का भी स्वास्थ्य खराब हो जाता है। यदि ऐसे अस्वस्थ शुक्राणु वाले पुरुष किसी स्त्री से सेक्स क्रिया करते हैं तो जब स्त्री गर्भवती होती है तो उसके गर्भ में पल रहा बच्चा अस्वस्थ होता है।
  • जो लोग नशे अधिक करते हैं उनके बच्चे को आनुवांशिक बीमारियों, कैंसर तथा मानसिक शिकायत आदि से पीड़ित अधिक देखे गये हैं।
  • जो लोग नियमित रूप से नशा करते हैं उनको अधिकतर नपुंसकता की शिकायत हो जाती है जिसके कारण से उनके वीर्य में पाये जाने वाले शुक्राणुओं की संख्या सुस्त, अस्वस्थ तथा मृत होते हैं। ऐसे लोगों से उत्पन्न बच्चे अधिकतर अस्वस्थ होते हैं।
  • हम जानते हैं कि अंडकोष में शुक्राणुओं का निर्माण होता है और वहीं एकत्रित भी होते हैं और अण्डकोष का तापमान शरीर के तापमान से कुछ कम होता है ताकि शुक्राणु को कोई नुकसान न हो। इसलिए हमें ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जिससे हमारे अंडकोष को नुकसान न हो।
  • नॉयलान के अंडरवियर नहीं पहनने चाहिए क्योंकि वे अंडकोष का तापमान बढ़ा देते हैं जिससे शुक्राणुओं को हानि पहुंचती है।
  • अंडरवियर सूती कपड़े का पहनना चाहिए क्योंकि यह अंडकोष के तापमान को स्थिर बनाए रखता है तथा शुक्राणुओं को भी इससे हानि नहीं पहुंचता है।
  •  पुरुषों को हमेशा वह अंडरवियर पहनना चाहिए जो कसा हुआ न हो ताकि अंडकोष पर अतिरिक्त दबाव न पड़े। अंडकोष पर किसी भी प्रकार का दबाव शुक्राणुओं के निर्माण में बाधा पहुंचता है। इसलिए ढीला अंडरवियर ही पहनना चाहिए।
  •  अंडरवियर हल्के रंग का पहनना चाहिए क्योंकि गहरे रंग के अंडरवियर अंडकोष के तापमान को बढ़ा देते हैं। अतः पहनने के लिए हल्के रंग के अंडरवियर का ही उपयोग करना चाहिए।
  • रात में अंडरवियर उतारकर सोएं ताकि अंडकोष को खुली हवा मिल सके। जिससे शुक्राणुओं पर बुरा प्रभाव नहीं पड़े।
  • पुरुषों को व्यायाम करना चाहिए ताकि तन और मन में स्फूर्ति लाने के साथ ही साथ शुक्राणुओं को भी स्वस्थ बनाए रखें।
  • नियमित व्यायाम करने पर टेस्टोस्टेरॉन हार्मोंन का स्तर सुधरता है जिससे शुक्राणुओं के उत्पादन में तेजी आती है और पुरुष स्वस्थ बना रहता है।
  • व्यायाम करें लेकिन इस बात पर विशेष ध्यान रखें कि शुक्राणुओं को अधिक तंदुरुस्त बनाने के चक्कर में जरूरत से ज्यादा व्यायाम न करें, इससे शुक्राणु सुस्त और बेजान हो जाते हैं। इसलिए संतुलित व्यायाम ही करना चाहिए।
  • जल, वायु तथा ध्वनि प्रदूषण की वजह से हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इसके साथ ही शुक्राणुओं पर भी बुरा असर पड़ता है जिसके कारण से कई प्रकार के रोग होने का डर लगा रहता है। अतः कहा जा सकता है कि प्रदूषण शुक्राणुओं का सबसे बड़ा दुश्मन है।
  • प्रदूषण के कारण से पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी होने लगती है तथा उनके सेहत पर भी गिरावट होने लगती है।
  • कई प्रकार की ऐसी दवाईयां भी हैं जिसके कारण से वीर्य शुक्राणुओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है जैसे- खाद्य पदार्थों में मिलाए जाने वाले दवाईयां, कीटनाशक दवाईयां, रासायनिक खाद, डिटरजेंट पाउडर, डी.डी.टी. पाउडर आदि।
  • प्लास्टिक तथा डिटरजेंट वाले पदार्थों का प्रयोग करने से शुक्राणुओं को हानि पहुंचती है। अतः ऐसे पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • मन में सेक्स चिंता, यौन उत्तेजना, अश्लील, उत्तेजक पुस्तकें पढ़ने, ब्लू फिल्में, अश्लील डांस देखने, सेक्स की बातें बोलने तथा सुनने आदि के कारण से वीर्य के शुक्राणुओं को हानि पहुंचती है। अतः इन सभी कार्यों को छोड़ देना चाहिए।
  • पुरुष को अधिक मात्रा में गर्म पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए, जो इस प्रकार हैं- अंडकोष पर गर्म पानी डालना, गर्म पानी की धार लिंग पर डालना, देर तक भाप लेना, गर्म पानी के टब में देर तक बैठना, गर्म पानी से स्नान करना आदि। इस प्रकार के कार्य इसलिए नहीं करने चाहिए क्योंकि गर्म पानी से शुक्राणुओं के गुण तथा ताकत में कमी आ जाती है।
  • स्नान करते समय पुरुष को अपने लिंग तथा अंडकोष पर ठंडे पानी की धार डालने से शुक्राणु स्वस्थ तथा मजबूत बनेंगे।
  • पुरुष को सेक्स क्रिया उतनी ही करना चाहिए जितना कि जरूरत हो क्योंकि हद से ज्यादा सेक्स करने से हो सकता है कि आपके वीर्य के गुण और ताकत कमजोर पड़ जाए और इसकी वजह से स्वस्थ शुक्राणु बेकार भी हो सकता है।
  • नियमित रूप से ही सहवास करना उचित रहता है क्योंकि इससे अंडकोष में अधिक शक्ति तथा अधिक चेतना आती है तथा शुक्राणु के निर्माण की प्रक्रिया अधिक सक्रिय हो जाती है जिसके फलस्वरूप पुराना वीर्य बाहर निकल जाता है तथा इसके स्थान पर ताजा वीर्य अंडकोष में जमा होता है जिससे शरीर और मन तरोताजा हो जाता है।


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