JK healthworld logo icon with JK letters and red border

indianayurved.com

Makes You Healthy

Free for everyone — complete solutions and detailed information for all health-related issues are available

सेक्स पॉवर की उत्पत्ति

        मानव के शरीर में कई अंतःस्रावी ग्रंथियां होती हैं, जिनके अलग-अलग कार्य होते हैं और ये सभी ग्रंथियां कई प्रकार के रसों का स्राव करती हैं। इनके द्वारा छोड़े जाने वाले रस खून में मिल जाते हैं। इन रसों का संबंध पुरुष के पुरुषत्व तथा स्त्री के नारीत्व से होता है।

           मानव के शरीर में कई अंतःस्रावी ग्रंथियां होती हैं, जिनके अलग-अलग कार्य होते हैं और ये सभी ग्रंथियां कई प्रकार के रसों का स्राव करती हैं। स्त्री-पुरुष के शरीर में सेक्स पॉवर की उत्पत्ति को जानने के लिए सबसे पहले हमें यह जानने की आवश्यकता है कि वे कौन सी ग्रंथियां हैं, जिनके कारण हार्मोंस का स्राव होकर शरीर के प्रत्येक अंग और कोष्ठों को जीवन रस मिलता है। शरीर में स्थित पौरुष ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोंस पुरुष के चेहरे पर दाढ़ी, मूंछे एंव वीर्य आदि का निर्माण करते हैं तथा आवाज में भारीपन प्रदान करते हैं।

           इसके साथ ही सेक्स के प्रति पुरुष में आकर्षण पैदा होता है तथा उनके सेक्स जीवन पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए कहा जा सकता है कि इन्हीं ग्रंथियों के कारण से हमें सेक्स ऊर्जा प्राप्त होती है। अगर किसी कारण से पुरुषत्वसूचक ग्रंथियों की क्रियाशीलता में बाधा आ जाए तो पुरुषों में कामेच्छा की कमी या आंशिक नपुंसकता की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

           सेक्स क्रिया को प्रभावित करने वाली कई प्रकार की ग्रंथियां होती हैं जिसके नाम इस प्रकार हैं- थायरॉइड ग्रंथि, पिट्यूटरी ग्रंथि, पैराथाइरॉइड ग्रंथि, गोनाड्स ग्रंथि तथा एड्रिनल ग्रंथि

पिट्यूटरी ग्रंथि - 

             पुरुष के अंडकोष के हार्मोंस पर पिट्यूटरी ग्रंथि नियंत्रण करती है। यदि पिट्यूटरी ग्रंथि का निर्माण सही तरीके से न हो तो शरीर की वृद्धि रुक जाती है। यह ग्रंथि ही वसा पर नियंत्रण करती है। यह ग्रंथि मनुष्य के मस्तिष्क के अधरतल पर स्थित होती है। पिट्यूटरी ग्रंथि में किसी तरह का विकार उत्पन्न हो जाए तो पुरुषों में स्त्रियों के लक्षण और स्त्रियों में पुरुषों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसके अलावा सेक्स की कमी में भी अंतर दिखाई देने लगता है।

             पिट्यूटरी ग्रंथि की क्रिया को ठीक प्रकार से चलाने के लिए भोजन में विशेष रूप से प्रोटीन, विटामिन-बी, विटामिन-सी तथा विटामिन-ई का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए भोजन में अधिक से अधिक अंकुरित खाद्यान्न, ताजे फल, हरी सब्जियां, अंडा, सूखे मेवे तथा गिरी फल आदि लेने चाहिए।

            इस ग्रंथि के द्वारा ही सेक्स क्रिया पर नियंत्रण रहता है। युवावस्था में इस ग्रंथि की क्रिया तेज हो जाती है जिसके फलस्वरूप हार्मोंस का निर्माण होता है। इसके द्वारा उत्पन्न किये गये हार्मोंस से ही कामोत्तेजित अंगों का विकास होता है।

थाइरॉइड ग्रंथि

             यह ग्रंथि गले में स्राव नलिकाओं के दोनों ओर स्थित होती है। इस ग्रंथि से थाइरॉक्सीन नामक हार्मोंस का स्राव होता है जो मुख्य रूप से शारीरिक वृद्धि तथा बुद्धि के विकास के लिए जरूरी होता है। यदि इस ग्रंथि के द्वारा कम स्राव होता है तो शरीर की वृद्धि और बुद्धि का विकास होना रुक जाता है। इसकी कमी से शारीरिक कमजोरी, शरीर सुस्त, स्मरण शक्ति में कमी होने लगता है तथा शरीर पर चर्बी भी बढ़ने लगती है और गला फूलने लगता है। थाइरॉइड ग्रंथि की क्रियाशीलता में कमी आने पर सेक्स की इच्छा में कमी आ जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि थाइरॉइड ग्रंथि शरीर और मन के बीच पहरेदारी का काम करती है।

             थाइरॉइड ग्रंथि की क्रियाशीलता को बनाए रखने के लिए भोजन में प्रोटीन, मूली, टमाटर, पालक, अंडा, पनीर, दूध, तरबूज, ताजी हरी सब्जियां, घी, आयोडीन युक्त नमक तथा सी-फूड (समुंद्री खाद्य पदार्थ) वाले पदार्थों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

पैराथाइरॉइड ग्रंथि

             यह थाइरॉइड ग्रंथि के नीचे छोटे आकार में चार की संख्या में स्थित होती हैं। ये ग्रंथियां ही शरीर में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस का नियंत्रण करती हैं। इन ग्रंथियों व हृदय तथा स्नायुओं की कार्यशीलता को बनाए रखने के लिए फॉस्फोरस, कैल्शियम तथा विटामिन-डी की आवश्यकता होती है। इस ग्रंथि के द्वारा ही पुरुषों में पुरुषत्व तथा स्त्रियों में नारीत्व गुण बना रहता है।

             पैराथाइरॉइड ग्रंथि के कार्य को बनाए रखने के लिए स्त्री-पुरुष को चाहिए कि वे पर्याप्त मात्रा में भोजन में दूध से बने पदार्थ, समुद्री खाद्य पदार्थ, तिल, दालें व हरी सब्जियों आदि का सेवन करते रहें।  

थाइमस ग्रंथि

             यह ग्रंथि छाती में हृदय के ठीक ऊपर होता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बनाए रखती है। बचपन में इसका आकर बढ़ जाता है लेकिन युवावस्था के बाद इसका आकार घटने लगता है। वृद्धावस्था में यह सूखकर अधिक छोटा हो जाता है। अगर किसी तरह से बचपन में यह अपना कार्य ठीक प्रकार से करना बंद कर दे तो शरीर की वृद्धि रुक जाती है। सेक्स क्रिया करते समय इस ग्रंथि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

             थाइमस ग्रंथि की क्रिया को ठीक प्रकार से चलाने के लिए अपने भोजन में विटामिन-बी तथा विटामिन-सी युक्त पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए। इन विटामिनों की प्राप्ति के लिए अंडे की जर्दी, साबुत अनाज, दूध, सूखे मेवे, ताजी हरी सब्जियां, मछली तथा तिल का तेल आदि का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा भोजन में ताजे फलों का रस, मक्खन, आंवला, अंकुरित अनाज तथा नींबू का रस का उपयोग करना अधिक लाभदायक होता है।

एड्रिनल ग्रंथि

             यह ग्रंथि गुर्दे के पास होती है तथा इसमें से एड्रिनेलिन नामक हार्मोंस का स्राव होता है। इस हार्मोंस के द्वारा शरीर में तेज भावना तथा आवेश उत्पन्न होता है। यह अचानक से पैदा होने वाले भय का भी अनुभव कराता है। इस ग्रंथि को प्रतिरक्षा ग्रंथि भी कहते हैं। सेक्स क्रिया करते समय यह सेक्स की इच्छा को मन में उत्पन्न करता है। यदि शरीर में इसकी कमी हो जाए तो चिड़चिड़ापन, थकावट तथा यौन इच्छा में कमी हो जाती है।

             एड्रिनल ग्रंथि की क्रियाशीलता को बनाए रखने के लिए अपने भोजन में विटामिन-ए, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन-सी, प्रोटीन तथा खनिज लवण आदि का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भोजन में सूखे मेवे, ताजे फल, हरी सब्जियां, गिरीदार फल, समुद्री खाद्य पदार्थ, आंवला, साबुत अनाज तथा खट्टे-रसदार फल आदि पर्याप्त मात्रा में शामिल करना चाहिए।

गोनाड्स ग्रंथि

             इसे कामोत्तेजना को बढ़ाने वाली ग्रंथि भी कहते हैं। इस ग्रंथि के द्वारा ही शरीर में स्फूर्ति, शक्ति तथा संभोग क्षमता बनी रहती है। इसमें किसी प्रकार की निष्क्रियता आ जाने पर शरीर में कमजोरी, सौंदर्य, यौवन, लावण्यता और संभोग शक्ति की कमी आ जाती है।

             गोनाड्स ग्रंथि की क्रिया को ठीक प्रकार से बनाये रखने के लिए अपने भोजन में विटामिन-ए, विटामिन-सी, विटामिन-ई, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स तथा प्रोटीन युक्त पदार्थों का उपयोग करना चाहिए। इन विटामिनों की पूर्ति के लिए आहार में नींबू, दही, आंवला, दूध, नीबू का रस, अंडा, बिना पॉलिश किया चावल, ताजे फल, चोकरयुक्त आटा तथा ताजे फल आदि का प्रयोग करना चाहिए।

सेक्स हार्मोंस -

             सेक्स उत्तेजना को शरीर में उत्पन्न होने के लिए सेक्स हार्मोंस की जरूरत होती है तथा इन हार्मोंस का निर्माण शरीर में स्थित ग्रंथियों के द्वारा ही होता है। ये हार्मोंस ही संभोग क्रिया को सुचारू रूप से करने के लिए तथा संभोग के समय में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये हार्मोंस इस प्रकार हैं- डोपामाइन, एस्ट्रोजन, वासोप्रोशिन, डी.एच.ई.ए., प्रोलैक्टिन, टेस्टोस्टेरॉन, आँक्सीटोसिन तथा पी.ई.ए. नामक सेक्स हार्मोंस का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

टेस्टोस्टेरॉन हार्मोंन -

             यह हार्मोंन शरीर में बचपन से लेकर युवावस्था तक कई परिवर्तनों को संचालित करता है। इस हार्मोंन के द्वारा ही आवाज में भारीपन, चेहरे और शरीर के कई भागों में बाल उगना, कई अंगों में चर्बी चढ़ना, वीर्य तथा शुक्राणु का निर्माण तथा कामोत्तेजना बढ़ना आदि कार्य होते हैं। टेस्टोस्टेरॉन हार्मोंन के स्तर में कमी होने पर सेक्स उत्तेजना में कमी होने लगती है।

             मनुष्य के शरीर में सेक्स भावना उत्पन्न करने का कार्य यही हार्मोंन मुख्य रूप से करता है। इसके द्वारा ही पुरुष के अण्डकोष निर्मित होते हैं तथा पिट्यूटरी (पीयूष ग्रंथि) में बनने वाले गोनेडोट्राफिन नामक हार्मोंस द्वारा ये संचालित होते हैं। गोनेडोट्राफिन हार्मोंस के कारण ही पुरुष के अण्डकोषों में टेस्टोस्टेरान हार्मोंस का निर्माण तेजी से होता है। इसी के द्वारा ही पुरुष के शरीर में संतान पैदा करने वाले शुक्राणुओं की निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है तथा यह सेक्स संबंधी लक्षणों व व्यवहार को चालू करता है।

             इस हार्मोन का निर्माण अधिकतर लड़कों में तब शुरू हो जाता है जब वह मां के गर्भाशय में पल रहा होता है लेकिन इसकी सक्रियता यौवनावस्था की शुरुआत के समय होती है जिससे देखते ही देखते एक बालक युवक बन जाता है। इस समय ही पिट्यूटरी ग्रंथि एक विशेष प्रकार का हार्मोन उत्पन्न करती है जिसके कारण से यौनांगों का विकास होता है। उसके बाद यही हार्मोंन टेस्टोस्टेरॉन हार्मोंन को गति प्रदान करके पुरुष के अंदर की सेक्स शक्ति को विकसित करता है।

ओक्सीटोसिन हार्मोंन -

             सेक्स क्रिया को करते समय पुरुष जब पत्नी को स्पर्श करते हैं या आलिंगन करते हैं तो शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोंन की मात्रा में वृद्धि होने लगती है। इसलिए इसको हार्मोंन ऑफ टच भी कहा जाता है। इस हार्मोंन के द्वारा ही सेक्स क्रिया के समय में स्पर्श-सुख, उत्साह, आनन्द, शांति तथा प्रेम भावना का विकास होता है। इसकी वजह से ही सेक्स क्रिया के समय में चरम सुख प्राप्त होता है और मानसिक तनाव भी दूर भी हो जाता है।

डोपामाइन हार्मोन -

             इस हार्मोन के द्वारा ही शरीर में आनन्द, उत्तेजना, उत्साह और जिंदादिली की भावनाएं उत्पन्न होती हैं। मन में किसी भी तरह की इच्छा का उत्पन्न इस हार्मोंन के कार्य पर ही निर्भर करता है।

एस्ट्रोजन हार्मोन

             यह हार्मोन स्त्री के शरीर में पाया जाता है और इसके कारण ही स्त्री के शरीर से एक प्रकार की उत्तेजक गंध निकलती है। इस हार्मोन के प्रभाव के कारण ही स्त्री में ऐसा आकर्षण उत्पन्न होता है जो पुरुष को अपनी ओर आकर्षित और उत्तेजित करता है।

वासोप्रेशिन हार्मोन

             यह हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन के साथ मिलकर पुरुष की सेक्स इच्छा को बनाए रखता है। इसके द्वारा ही सेक्स क्रिया के समय में पुरुष को अधिक से अधिक आनन्द प्राप्त होता है।

प्रोलैक्टिन हार्मोंन-

             जब शरीर में इस हार्मोंन की क्रिया तेज गति से होने लगती है तो इससे सेक्स करने की इच्छा में कमी होने लगती है।

डी.एच.ई.ए हार्मोंन

             यह हार्मोन अणु क्रिया करके शरीर में अन्य सेक्स हार्मोन का निर्माण करते रहते हैं जिसके फलस्वरूप सेक्स की इच्छा, सेक्स की उत्सुकता तथा चरम सुख आदि का नियंत्रण इसी हार्मोन के द्वारा होता है।

पी.ई.ए.-

             कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके स्राव से प्रेम का अणु उत्पन्न होता है, जिस कारण से व्यक्ति का स्वभाव रोमांटिक हो जाता है। जब किसी के शरीर में इसकी मात्रा बढ़ जाती है तब पुरुष स्त्री के प्रति बहुत अधिक आकर्षित होने लगता है। वह प्यार के पीछे इतना अधिक पागल हो जाता है कि स्त्री उससे जो कुछ भी करने को कहती है वह उस कार्य को करने के लिए तैयार हो जाता है। वह फिल्मी हीरो की तरह गाना गाने लगता है और सेक्स क्रिया के दौरान अधिक उत्तेजित तथा उत्साहित रहता है।

             सभी प्रकार के हार्मोंस मिलकर स्त्री-पुरुष के शरीर में ऐसी क्रिया करते हैं जिसके कारण से दोनों के बीच में आकर्षण उत्पन्न होने लगता है तथा अन्य प्रकार की भावना उत्पन्न होती है जो इस प्रकार है- कामोत्तेजित भावना जगाना, यौनांगों में उत्तेजना पैदा होना, सेक्स क्रिया को चरम सीमा पर पहुंचाना आदि। कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि ऑक्सीटोसिन तथा वैसोप्रेसिन नामक हार्मोंस स्त्री-पुरुष दोनों को एक-दूसरे की तरफ आकर्षित करने के लिए प्रेरित करते हैं। ये हार्मोंस ही स्त्री-पुरुष दोनों के ही बीच होने वाले आलिंगन तथा चुम्बन के समय में अधिक मात्रा में स्राव होने लगते हैं। ऑक्सीटोसिन हार्मोंस के बारे में बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हार्मोंस ही स्त्री-पुरुष को साथ-साथ रहने के लिए तथा एक-दूसरे में लगाव पैदा करने का कार्य करता है।

             कुछ जांच सूत्रों से यह भी पता चला है कि स्त्री-पुरुष के बीच होने वाला सेक्स जब पूर्ण होकर ठंडा पड़ जाता है तो उनमें दुबारा सेक्स के लिए प्रेरित करने का कार्य भी इसी ऑक्सीटोसिन हार्मोंस के द्वारा होता है। इस हार्मोंस का निर्माण पिट्यूटरी ग्रंथि करती है। वैसोप्रोसिन हार्मोंन तथा ऑक्सीटोसिन हार्मोंन दोनों एक-दूसरे के साथ-साथ मिलकर क्रिया करते हैं क्योंकि जो कार्य ऑक्सीटोसिन द्वारा शुरू होता है, उस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने का कार्य वैसोप्रेसिन हार्मोंन करता है।

             इन सभी हार्मोंस के अलावा एक और हार्मोंन होता है जो मनुष्य के शरीर में महत्वपूर्ण कार्य करता है। इस हार्मोंन को फेनाइलेथैलामाइन कहते हैं। यह हार्मोंन व्यक्ति की भावनाओं तथा सोच को बदलने का कार्य करता है। सेक्स क्रिया करने के समय में यह पुरुष को स्त्री के साथ सेक्स संबंध बनाने का कार्य करता है। यह सेक्स क्रिया के समय में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की उत्तेजना को बनाए रखने का कार्य करता है।

सेक्स ग्रंथियों का पुरुष के वृषण और स्त्री के डिम्ब पर प्रभाव

             इन ग्रंथियों का स्त्री-पुरुष के शरीर और मन पर अधिक प्रभाव पड़ता है। सेक्स ग्रंथियों की कार्य क्षमता के अनुसार कई अवस्थाओं में रखा जा सकता है।  

  • किशोरावस्था यह वह अवस्था होती है जिसमें सेक्स ग्रंथियां पूर्ण रूप से कार्य करने लगती हैं।
  • युवावस्था यह वह अवस्था है जिसमें सेक्स ग्रंथियां अपना कार्य ठीक प्रकार से करती हैं।
  • वृद्धावस्था इस समय में सेक्स ग्रंथियां अपना कार्य करना बंद कर देती हैं।

             सभी प्रकार की सेक्स ग्रंथियां हार्मोंनों का निर्माण करती हैं और इन हार्मोंनों से सेक्स के अंगों को पूर्ण रूप से विकसित कर देती हैं। इन हार्मोंनों का प्रभाव न केवल प्रजनन अंगों पर बल्कि पूरे शरीर पर पड़ता है। इनका प्रभाव सेक्स क्रिया में उस प्रकार से होता है जिस प्रकार से खेत में खाद डालने का प्रभाव दिखाई देता है। इनके बिना ये अंग विकसित नहीं हो सकते और जब ये सेक्स के अंग विकसित नहीं होंगे तो प्रजनन का कार्य करने में असमर्थता उत्पन्न हो जायेगी।

             सेक्स हार्मोंनों की क्रिया पुरुषों की अपेक्षा अधिक विस्तृत और जटिल स्त्रियों में होती है। स्त्रियों के शरीर में कई प्रकार के हार्मोंस होते हैं जो निम्न हैं- पीयूष ग्रंथि के द्वारा निकलने वाला हार्मोंन, जो इनके डिम्ब को पकाने का महत्वपूर्ण कार्य करता है, गर्भ स्थापक हार्मोंन, फालीक्यूलर हार्मोंन तथा कार्पस ल्यूटियम हार्मोंन आदि।


Copyright All Right Reserved 2025, indianayurved