भोजन के चयापचय (metabolism) तथा शरीर की कोशिकाओं में लगातार होने वाली टूट-फूट और मरम्मत के कई प्रकार के व्यर्थ (बेकार) पदार्थ (waste products) पैदा हो जाते हैं, जिन्हें शरीर अपने उत्सर्गी अंगों (excretory organs) के द्वारा शरीर से बाहर निकलता रहता हैं। गुर्दे (kidneys), त्वचा (skin), फेफड़े (lungs) आदि उत्सर्गी अंगों की श्रेणी में आते हैं। इनमें से गुर्दों को मुख्य उत्सर्गी अंग माना जाता हैं, जो मूत्रीय संस्थान के अंग होते हैं।
प्रोटीन चयापचय के व्यर्थ पदार्थ मूत्रीय संस्थान के द्वारा मूत्र के साथ बाहर निकाल दिए जाते हैं। इसके अलावा मूत्रीय संस्थान शरीर में जल की मात्रा तथा रक्त में लवणों (electrolytes) की मात्रा का भी नियमन करता है।
त्वचा पसीने के रूप में कुछ लवणों तथा कुछ कार्बनिक पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करती है जैसे- यूरिया और अमोनिया।
फेफड़ों सांस के साथ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को वाष्प के रूप में बाहर निकालने का कार्य करते है। बड़ी आंत द्वारा थोड़ी मात्रा में जल, लवण और सूक्ष्मजीवाणु तथा बिना पचा भोजन बाहर निकाला जाता है। इन सबके बावजूद, मूत्रीय संस्थान शरीर में जल एवं दूसरे पदार्थों के बीच उचित संतुलन बनाए रखता है।