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नाखून

नाखून बाह्य त्वचा के आन्तरिक भाग में उत्पन्न होते हैं तथा अंगुलियों के छोर पर स्थित रहते हैं। ये कठोर, श्रृंगी तथा कुछ प्लेटे होती हैं, जो केराटिन युक्त मृत कोशिकाओं की बनी होती है। इनका कार्य अंगुलियों की रक्षा करना होता है।

हर नाखून के दो भाग होते हैं-

  1. पहला सजीव अर्थात् नखमूल (root of nail)
  2. दूसरा मृत अर्थात नखकाय (body of nail)

        मृत भाग से नाखून को काटकर अलग किया जा सकता है। यह स्वतन्त्र किनारा (Free edge) कहलाता है। नाखून की मूल (root) त्वचा में धंसी होती है तथा क्यूटीकिल (cuticle) से ढकी होती है और इससे अर्द्धचन्द्राकार क्षेत्र बनता है। इसे नख चन्द्रिका (lunula) कहते हैं। नाखून के आगे के कुछ भाग के अलावा पिछला भाग सजीव होता है, जो बाह्य त्वचा पर नख शय्या (nail bed) में जमा रहता है। नाखून का नजर आने वाला चौड़ा भाग काय (body) कहलाता है। यह एपीडर्मिस की अंकुरक परत से उत्पन्न होता है तथा नखशय्या पर स्थित रहता है और त्वचा से संलग्न होता है। नख शय्या की त्वचा में रक्त कोशिकाएं तथा तन्त्रिका तन्तु मौजूद रहते हैं। नाखून की मूल तथा काय का पाश्र्वीय भाग त्वचा की परत (folds) से आच्छदित रहता है, जिसे नाखून वलय (nail fold) कहा जाता है।

     नाखूनों के मूल (जड़) (root) की कोशिकाओं की संरचना कोमल होती है। इनमें विभाजन होता रहता है, जिससे इनकी संख्या बढ़ती जाती है। बढ़ती हुई कोशिकाएं आगे वाले भाग की कोशिकाओं को आगे की ओर धकेलती है। जैसे-जैसे ये बाहर की ओर जाती है वैसे-वैसे ही सख्त होती जाती है। इस प्रकार नाखूनों की लम्बाई बढ़ती जाती है। इसके आखिरी सख्त भाग तक पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते है इसलिए ये मृत हो जाते हैं। इस मृत भाग को आसानी से काटकर अलग किया जा सकता है।


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