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त्वग्वसीय ग्रन्थियां

परिचय-

    ये नाशपाती या फ्लास्क के आकार की छोटी-छोटी अन्तरत्वचा (डर्मिस) में स्थित ग्रन्थियां है, जिनके मुख रोमकूपों (hair follicles) के पास खुलते हैं। इन ग्रन्थियों से स्रावित होने वाले तैलीय पदार्थ को त्वग्वसा या सीबम (Sebum) कहते हैं। त्वग्वसा का निर्माण, त्वचा की वाहिकामयता के परिवर्तन पर निर्भर करता है। इस पर कोई तन्त्रिका नियन्त्रण नहीं रहता। संकोचनी पेशी (Arrector pilorum muscle) का संकुचन त्वग्वसा के निष्कासन में सहायक होता है। त्वग्वसा में वसीय अम्ल तथा कॉलेस्टोरॉल का आधिक्य रहता है, साथ ही इसमें एरगोस्टेरॉल नामक रासायनिक तत्व भी रहता है, जो सूर्य-प्रकाश या अल्ट्रावयलेट किरणों (Ultraviolet rays) के संपर्क में आने से विटामिन ‘डी’ में परिणत हो जाता है। त्वग्वसा त्वचा एवं बालों को चिकना रखता है तथा उन्हें कोमल एवं चमकीला बनाये रखता है। यह जीवाणुनाशक (Bacteriostatic) के रूप में भी कार्य करता है।

        त्वग्वसीय ग्रन्थियां हथेलियों एवं पांवों के तलवों के अलावा शरीर के सभी भागों की त्वचा में पायी जाती है। इनका सम्बन्ध बालों की सघनता से रहता है।

     इनकी अधिकता शरीर के उन भागों में होती है जिनमें बाल अधिक होते हैं। सीबम के अभाव में बाल और त्वचा शुष्क दिखाई देते हैं और इनकी अधिकता से त्वचा पर पतली परत जम जाती है, जो बाद में झड़ती रहती है। सिर के बालों में रूसी (Dandruff) इसी प्रकार पैदा हो जाती है। बाल्यकाल में त्वग्वसीय ग्रन्थियां अपेक्षाकृत कम सक्रिय रहती है। ऐसे ही वृद्धावस्था में ये कम सक्रिय हो जाते हैं, जिससे सीबम का स्रावण कम हो जाता है और त्वचा तथा बाल शुष्क रहते हैं।


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