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अग्न्याशय

अग्नाशय एक मुलायम, गुलाबी-सी- भूरी, चपटी लगभग 12 से 15 सेमीमीटर (5 से 6 इंच) लम्बी ग्रन्थि है, जो आमाशय के पीछे पश्च उदरीय भित्ति के सहारे आड़े रूप (Transversely) में स्थित होती है। यह ग्रहणी से प्लीहा तक फैली होती है।

इसके तीन भाग होते हैं-

  1. शीर्ष (head)- यह अग्नाशय का सबसे चौड़ा भाग होता है, जो उदर गुहा में दायीं ओर ड्यूडिनम की ‘C’ आकृति की अवतलता (Concavity) में स्थित रहता है।
  2. काय (Body)- यह अग्नाशय का मुख्य भाग होता है, जो आमाशय के पीछे तथा दूसरी एवं तीसरी लम्बर वर्टिब्री के सामने स्थित होता है।
  3. पुच्छ (Tail)- यह अग्नाशय का बायीं ओर को जाने वाला संकरा और नुकीला भाग होता है, जो बाएं गुर्दे के सामने स्थित होता है तथा प्लीहा तक फैला रहता है।

सूक्ष्म रचना (Microscopic anatomy)- अग्नाशयिक ऊतक बहिःस्रावी (Exocrine) एवं अन्तःस्रावी (Endocrine) दोनों तरह की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। बहिःस्रावी कोशिकाएं कोशिकाओं के समूह बनाती है, जिन्हें एसीनाई (Acini)  कहते हैं। ये अंगूरों के गुच्छों की तरह नजर आते हैं और इनसे छोटी आंत में पाचक एन्जाइम्स का स्राव होता है। अग्नाशय रोजाना लगभग 1.5 लीटर पाचक रस पैदा करता है।

एसीनाई (Acini) के बीच-बीच में विशिष्ट अन्तःस्रावी कोशिकाओं के समूह पाए जाते हैं, जो एक जालनुमा रचना बनाते हैं और जिसमें कई कोशिकाएं होती है। इन कोशिकाओं के समूह को लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएं (Islets of Langerhans) कहते हैं। ये द्वीपिकाएं इन्सुलिन (Insulin) नामक हार्मोन का स्राव करती है, जो सीधे रक्त प्रवाह में जाता है। इसलिए अग्नाशय का कार्य पाचक एवं अन्तःस्रावी दोनों ही है।

     बहिःस्रावी (एसिनस) कोशिकाएं अग्नाशय में पुच्छ से शीर्ष की ओर गुजरने वाली सूक्ष्म वाहिकाओं के चारों ओर गुच्छों में रहती है। हर एसिनस (Acinus’s) में एक केन्द्रीय ल्यूमन होता है जो मुख्य अग्नाशयिक वाहिका (Main pancreatic duct or duct of wirsung) से जुडता है। यह पाचक एन्जाइम्स को ग्रहणी के अवरोही भाग की ओर ले जाता है। अनुषंगी अग्न्याशिक वाहिका (Accessary pancreatic duct or duct of santorini) मुख्य वाहिका के लगभग एक इंच ऊपर, ग्रहणी में अग्नाशयिक एन्जाइम्स की थोड़ी-सी मात्रा को डालती है। मुख्य अग्न्याशयिक वहिका अपनी अन्तर्वस्तुओं को सीधे ग्रहणी में नहीं डालती, बल्कि यह उभय पित्त वहिका (Common bile duct) से जुड़ती है जिसे हिपेटोपेनक्रिएटिक एम्प्यूला या एम्प्यूला ऑफ वेटर (Hepatopancreatic ampulla or ampulla or vater) कहते हैं।

     बहिस्रावी कोशिकाएं एक स्वच्छ क्षारीय तरल का निर्माण और स्राव करती है, जिसे अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) कहते हैं। इसमें जल एवं लवण होते हैं तथा तीन प्रकार के एन्जाइम्स पाए जाते हैं, जो प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स एवं वसा का अन्तिम पाचन करते है-

  1. लाइपेज (Lipase)- यह वसा के बड़े-बड़े कणों (ट्राइग्लिसराइड्स) को सूक्ष्म कणों में बांट कर, ग्लिसरॉल एवं मुक्त वसीय अम्लों में बदल देता है जिससे ये आसानी से अवशोषित हो जाते हैं।
  2. एमाइलेज (Amylase)- यह पॉलीसैकेराइड्स (स्टार्च) को मोनोसैकेराइड्स एवं डाइसैकेराइड्स, विशेषकर माल्टोज में बदल देता है जिन पर लार के एमाइलेज का कोई असर नहीं होता है। माल्टोज पर माल्टेज एन्जाइम की क्रिया होने पर यह ग्लूकोज में बदल जाता है।
  3. ट्रिप्सिनोजन (Trypsinogen)- अग्न्याशयिक रस में इसका अक्रिय रूप मौजूद रहता है। ग्रहणी में पहुंचने के बाद यह छोटी आंत द्वारा स्रावित एन्ट्रोकाइनेज़ (Enterokinase) नामक एन्जाइम के प्रभाव से सक्रिय ट्रिप्सिन (Trypsin) में बदल जाता है। ट्रिप्सिन अपने सक्रिय रूप में पेप्टोन्स और प्रोटीन्स को अमीनो अम्लों में बदल देता है जिसे रक्त अवशोषित करता है।
  4. अग्न्याशयिक रस का स्त्रवण- जब मुख में स्थित स्वाद कलिकाएं (Taste buds) भोजन के सम्पर्क में आती है तो वे आवेगों को मस्तिष्क में पहुंचाती है, जो फिर वेगस तन्त्रिका के मध्यम से अग्न्याशय को उत्तेजित करता है। जब आंशिक रूप से पचित काइम आमाशय से ग्रहणी में पहुंचता है तो आंतों द्वारा स्रावित दो हॉर्मोन्स- सेक्रीटिन (Secretin) एवं कोलीसिस्टोकाइनिन (Cholecystokinin) द्वारा अग्न्याशय की क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिससे अग्न्याशिक रस का स्राव बढ़ जाता है। अग्न्याशयिक रस का स्राव केवल पाचन के समय ही होता है।


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