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मल

रोजाना शरीर से औसतन 150 ग्राम मल (लगभग 100 ग्राम जल एवं 50 ग्राम ठोस पदार्थ) का निष्कासन होता है। मल में जल एवं जीवाणु (bacteria) के अतिरिक्त वसा, नाइट्रोजन, पित्तवर्णक (bile pigments), अपचित भोज्य पदार्थ जैसे सेल्युलोज़ (cellulose) एवं रक्त अथवा आंत की भित्तियों के अन्य बेकार उत्पाद होते हैं। मल का रंग ब्राउन लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) के उत्पादों के बाइल पिगमेन्ट्स या बिलिरूबिन में परिवर्तन होने के कारण होता है। भोजन में अधिक वसा (Fat) होने से मल का रंग हल्का पीला (Pale) हो जाता है तथा रक्त एवं अन्य लौह (Iron) युक्त भोजन से मल का रंग काला सा हो जाता है।

     मल से आने वाली खास गन्ध अपचित भोजन के अवशिष्ट, अन-अवशोषित अमीनो एसिड्स, मृत जीवाणु एवं कोशिकीय कचरे (Cell debris) के सड़ने के फलस्वरूप उत्पन्न दो पदार्थों- इण्डोल (Indole) एवं स्कैटॉल (Skatole) के कारण होती है। भोजन में प्रोटीन की अधिक मात्रा भी मल की गन्ध बढ़ा देती है क्योंकि इससे इण्डोल एवं स्कैटॉल की अधिक मात्रा उत्पादित होती है।

बड़ी आंत की गतिशीलता एवं मल विसर्जन (Movements of the large intestine & defecation)- बड़ी आंत की अधिकांश पाचक गतियां धीमी तथा न खिसकाने वाली (nonpropulsive) होती है। प्रारम्भिक गतिशीलता हॉस्ट्रम में संकुचन होने से शुरू होती है, जो चिकनी पेशी कोशिकाओं की स्वायत्त तालबद्धता पर निर्भर करती है। ये गतियां छोटी आंत की खण्डीय गतियों के समान होती हैं, लेकिन इनमें होने वाले संकुचन अक्सर 20 से 30 मिनट के बाद होते हैं। इस धीमी गति के कारण ही शेष जल एवं लवणों का पूरी तरह अवशोषण होता है।

     अक्सर भोजन करने के बाद एसेण्डिंग एवं ट्रान्सवर्स कोलन में दिन में तीन-चार बार समकालिक संकुचन होने से गतिशीलता काफी बढ़ जाती है, जिससे कुछ ही सेकण्डों में कोलन की आधी से तीन-चौथाई लम्बाई में मल खिसक जाता है। ये ‘स्वीपिंग’ (Sweeping) क्रमाकुंचन तरंगे’ सामूहिक गतियां (mas movements) कहलाती है। ये मल को डिसेण्डिंग कोलन में खिसका देती है, जहां यह बाहर निकलने तक जमा रहता है।

     ड्योडीनोकोलिक प्रतिवर्त (प्रतिक्रिया) (Duodenocolic reflex) से इलियम की अर्न्तवस्तुएं बड़ी आंत में खिसक जाती है। जब भोजन आमाशय में पहुंचता है तो गैस्ट्रोकोलिक प्रतिवर्त (प्रतिक्रिया) (Gastrocolic reflex) द्वारा कोलन में सामूहिक गतियां उत्पन्न होती है। प्रतिवर्त आमाशय से कोलन में गैस्ट्रिन के स्राव एवं बाह्य एच्छिक तन्त्रिकाओं द्वारा पहुंचता है। गैस्ट्रोकोलिक प्रतिवर्त मल को मलाशय में खिसका देता है तथा ‘डेफीकेशन रिफ्लेक्स’ (defecation reflex) पैदा होकर मल गुदा द्वारा बाहर निकल जाता है।

मल विसर्जन की प्रक्रिया-

  • मलाशय में मल एकत्रित हो जाने पर वह फैल जाता है, भित्तियां तन जाती है और मलाशय में दबाव बढ़कर मलाशयी भित्तियों में मौजूद तन्त्रिका तन्त्र (रिसेप्टर्स) उत्तेजित हो जाते हैं।
  • यदि मल विसर्जित करने की इच्छा बना ली जाए तो डेफीकेशन प्रतिवर्त आरम्भ हो जाता है। डिसेण्डिंग कोलन में क्रमाकुंचन तरंगे उत्तेजित होने पर उसी समय आन्तरिक गुदीय संकोचिनी शिथिल हो जाती है तथा मलाशय एवं सिग्मॉयड कोलन शक्ति के साथ संकुचित हो जाते हैं।
  • उदरीय पेशियों एवं डायाफ्राम के संकुचित होने से तथा नीचे की ओर जोर लगाने से पेट का आन्तरिक दबाव बढ़ जाता है और धकेलने की क्रिया पैदा करता है। इससे मल के निष्कासन में सहायता प्राप्त होती है।
  • मल विसर्जन प्रतिवर्त (Defecation reflex) मेड्यूला ऑब्लांगेटा में शुरु होता है और उत्तेजनाओं को स्पाइनल कॉर्ड के सैक्रल भाग में पहुंचा देता है।
  • बाह्य गुदीय संकोचिनी एवं अन्य पेरिनियल पेशियां शिथिल होकर सिग्मॉयड हुई आन्तरिक एवं बाह्य गुदीय संकोचिनियों से मल को नीचे को धकेल देती है तथा मल गुदा से होते हुए शरीर से बाहर निकल जाता है।
  • बहुत छोटे बच्चों एवं स्पाइनल कॉर्ड (सैक्रल स्तर पर या इसके ऊपर) के रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को छोड़कर, मल विसर्जन एक ऐच्छिक क्रिया है। बाह्य गुदीय संकोचिनी को संकुचित करके मल विसर्जन को रोका जा सकता है। एक बार जब मल त्याग न करने का मन बना लिया जाए तो केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से आने वाले तन्त्रिका आवेग बाह्य गुदीय संकोचिनी के कंकालीय पेशी तन्तुओं को कसकर बन्द कर देते हैं। स्पाइनल कॉर्ड के आवेग भी मलाशय एवं सिग्मॉयड कोलन को शिथिल कर देते हैं, जिससे गुदीय भित्ति का तनाव कम हो जाता है और खिंचाव पैदा करने वाले तन्त्रिका तन्त्र (रिसेप्टर्स) क्रियाशील नहीं हो पाते। यदि मल विसर्जन को इच्छानुसार कुछ समय के लिए टाल दिया जाए तो मलाशय की भित्तियां मल में मौजूद जल को लगातार अवशोषित करती रहती है। जिसके फलस्वरूप कब्ज (Constipation) हो सकती है। 1 या 2 वर्ष से छोटे बच्चों में मल विसर्जन ऐच्छिक नियन्त्रण में नहीं होता, इनमें तो यह प्रतिवर्त क्रिया द्वारा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इनमें प्रेरक तन्त्रिका तन्त्र का समुचित विकास नहीं हो पाता है; लेकिन बड़े होने पर यह पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है, तब मल विसर्जन ऐच्छिक नियन्त्रण में होता है।


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