छोटी आंत एक कुंडलित नहीं होती है जो जठर निर्गमीय संकोचिनी से बड़ी आंत के शुरुआती भाग तक जहां इलियोसीकर वाल्व (Ileocaecal Valve) होता है, फैली रहती है। यह नली लगभग 6 मीटर लंबी होती है तथा उदरश्रोणि गुहा (Abdominopelvic Cavity) के बीच वाले भाग में सामान्यतः बड़ी आंत से घिरी हुई रहती है। इसके निम्नलिखित तीन भाग होते हैं-
ग्रहणी:
ग्रहणी छोटी आंत का लगभग 25 सेमीमीटर लंबा पहला भाग होता है तथा अग्नाशय के शीर्ष को चारों ओर से घेरकर रहता है। यह अंग्रेजी के अक्षर C के आकार में होता है। पाइलोरस से लगभग 10 सेमीमीटर की दूरी पर एक उभय छिद्र में उभय पित्त वाहिका (Common bile duct) और अग्न्याशयिक वाहिका (Pancreatic duct) खुलती है। इसे एम्पुला ऑफ वेटर (Ampulla of vater) या हिपेटी पैंक्रिएटिक एम्युला कहते हैं। यह संकोचिनी जैसी पेशियों (sphincter of odai) से घिरा रहता है।
मध्यांत्र:
यह छोटी आंत के शेष भाग का ऊपरी 2/5 भाग होता है। यह लगभग 2.5 मीटर (8 फीट) लंबा होता है।
शेषांत्र:
यह छोटी आंत का आखिरी 3/5 भाग होता है, जो बड़ी आंत के पहले भाग, सीकम तक फैला होता है। यह लगभग 3.5 मीटर लंबा होता है। सीकम से जुड़ने के स्थान पर इलियोसीकल वाल्व (Ileocecal valve) रहता है, जो सामान्यतः संकुचित रहता है तथा इलियम से बड़ी आंत में काइम के प्रवाह पर नियंत्रण रखता है और सीकम के पदार्थों को वापस में इलियम में आने से रोकता है।
छोटी आंत के मध्यांत्र और शेषांत्र दोनों भाग पेरिटोनियम की एक मुड़ी हुई परत द्वारा पेट की पश्च भित्ति से लटके रहते हैं। इसे मीजेंट्री (Mysentery) कहा जाता है।